कब है कृष्ण जन्माष्टमी ? त्रिगुणों के वाहक थे श्रीकृष्ण

कब है कृष्ण जन्माष्टमी ? त्रिगुणों के वाहक थे श्रीकृष्ण
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Shri Krishna Janmashtami: भगवान श्री कृष्ण सभी दस अवतारों में सबसे विलक्षण अवतार है। शेष अवतारों की लीलाएं एक निश्चित दायरे में है जब कि श्रीकृष्ण विलक्षण प्रतिभा के धनी दिखाई देते हैं। भगवान श्री कृष्ण पूर्ण पुरूष हैं। उनके बाल्यकाल की नटखट लीलाओं पर कवियों ने अपने मनोभावों को बहुत भावुक और प्रेमपूर्ण शब्दों में बांधा है। वही उनके युवाकाल में राधा-कृष्ण के प्रेम संबंधों पर काफी कुछ गद्य और पद्य में लिखा गया है। अंधे कवि सूरदासजी का श्रीकृष्ण लीलाओं का वर्णन अद्भुत है। एक दोहे में सूरदासजी ने अपने कृष्ण प्रेम की व्यथा को इस प्रकार से वर्णित किया है –

कोटिक कला काछि दिखराई, जल थल सुधि नहिं काल।
सूरदास की सबै अविद्या, दूरि करौ नंदलाल।।

श्री कृष्ण के जीवन की विभिन्नता के कारण ऐसा लगता है कि उनमें सतगुण, रजगुण और तमोगुण अर्थात तीनों गुणों का समावेश था। श्री कृष्ण के बारे में आदि काल से ही बहुत कुछ लिखा गया है। एक तरफ वे चक्रधारी है तो दूसरी तरफ युद्ध से भागने वाले के लिए प्रयुक्त नाम रणछोड़दास भी उन्हें कहते हैं। श्रीकृष्ण का जीवन बहुत अद्भुत और अनेकों घटनाओं से जुड़ा हुआ है। अपने लम्बे जीवन में उन्होंने अपने लिए कभी कुछ नहीं किया। धर्म की स्थापना के लिए काम करते रहे। भगवान श्री कृष्ण के दस अवतारों में श्रीराम के उपरान्त श्रीकृष्ण सबसे ज्यादा लोगों के इष्ट हैं। बहुत से उत्तरी राज्योें महिलाएं अपने 5 वर्ष से कम उम्र के बालकों को श्रीकृष्ण के रूप में सजाती हैं। यह भगवान के प्रति विलक्षण मातृ प्रेम का परिचायक है।

भगवान श्री विष्णु ने कुल दस अवतार लिये हैं जिनमें से आठवां अवतार भगवान श्री श्रीकृष्ण का है। श्री विष्णु के सभी दस अवतारों में से भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव सबसे अधिक धूमधाम से मनाया जाता है। यह समस्त भारत और दूसरे कुछ देशों में भी बहुत उत्साह और विभिन्न नामों और विभिन्न कार्यक्रमों के साथ मनाया जाता है। वृंदावन और मथुरा में कृष्ण जन्माष्टमी का विशेष आयोजन किया जाता है।

क्या है भगवान श्रीकृष्ण की पौराणिक कथा

भगवान श्री कृष्ण का जन्म कारावास में हुआ था। इसके पीछे जो पौराणिक कथा है उसके अनुसार राज कंस अपनी बहन देवकी को बहुत मानता था। देवकी का विवाह वासुदेव से संपन्न हुआ। विवाह के उपरान्त कंस अपनी बहन को उसके ससुराल छोड़ने के लिए जाते समय रास्ते में आकाशवाणी हुई कि उसका वध देवकी और वासुदेव के आठवें पुत्र के हाथों से होगा। इस बात से क्रोधित और भयभीत होकर कंस ने देवकी और वासुदेव को बंदीगृह में डाल दिया। समय के साथ देवकी के सात पुत्र उत्पन्न हुए जिनको कंस ने मार दिया। आठवें पुत्र के रूप में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। जन्म के उपरान्त देवकृपा से स्वतः ही बंदीगृह के द्वार खुल जाते हैं। ऐसा इसलिए होता है जिससे उनके पिता वासुदेव उन्हें गोकुल में ले जाकर नन्द और यशोदा की पुत्री से के स्थान पर पहुंचा सके। इस प्रकार से श्रीकृष्ण के जन्म से ही लीलाओं का दौर शुरू हुआ जो कि जीवन पर्यन्त चलता रहा।

महाराष्ट्र में होता है दही हांडी का विशेष उत्सव

महाराष्ट्र में मनाया जाने वाला दही हांडी का उत्सव श्रीकृष्ण जन्माष्टी के दूसरे दिन मनाया जाता है। इसदिन युवा दही या मक्खन से भरी हांडी को कुछ उंचाई पर लगाते हैं उसके बाद उस हांडी को फोड़ने की प्रतियोगिता होती है। एक दूसरे के उपर चढ़ कर एक मानव मीनार बनाई जाती है जिससे दही की हांडी तक पहुंचा जा सके। मुम्बई, नागपुर और पुणे जैसे महानगरों में हांडी तोड़ने के इस त्योहार पर विशेष आयोजन होते हैं। हांडी को फोड़ने की परम्परा वैदिक काल से है। भगवान श्री कृष्ण जब बालक थे तो गोपियों के घरों में घुस कर छत्त पर उंचाई पर लटकाई गई हांडी को तोड़कर उसमें से मखन चुराकर स्वयं खाते और अपने सखाओं में बांट देते थे। यह परम्परा हांडी को तोड़ने के रूप में अभी भी चली आ रही है। इस दृष्टि से कृष्ण जन्माष्टमी का यह त्योहार महाराष्ट्र में सबसे लोकप्रिय त्योहारों में सर्वोच्च है।

द्वारिकाधीश मंदिर में होता है विशेष आयोजन

भगवान श्री कृष्ण ने गुजरात में अपना राज्य अर्थात द्वारिका नगरी की स्थापना की थी। यहां पर श्री द्वारिकाधीश मंदिर है। माना जाता है कि यह मंदिर करीब 2500 वर्ष पुराना है। मंदिर प्रति वर्ष कृष्ण जन्माष्टी का भव्य आयोजन होता है। लोग विशेष पूजा में शामिल होने के लिए झांकी और जुलूस के रूप में तृत्य करते हुए द्वारिकाधीश के दर्शनों के लिए जाते हैं। यह बहुत ही अद्भुत दृश्य उत्पन्न करता है। लोगों की भगवान श्री कृष्ण के प्रति प्रेम का परिचायक है।

कैसे मनाये श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

जो लोग श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन व्रत रखते हैं वे रात्रि में श्री कृष्ण जन्म के उपरान्त ही प्रसाद ग्रहण करके अपने व्रत का समापन करते हैं। दिन में घर या मंदिर में स्थापित लड्डू गोपाल जी को स्नानादि के उपरान्त नवीन वस्त्राभूषण से सज्जित किया जाता है। लड्डू गोपाल जी को नवीन मोर पंख, मुकुट और उनके प्रिय वाद्य बांसुरी से सजाया जाता है। मेवा, फल, मिठाई और पंचामृत से भोग लगाया जाना चाहिए। हालांकि कुछ स्थानों पर श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन पंजीरी के प्रसाद से श्री कृष्ण को भोग लगाया जाता है। पंजीरी मुख्य तौर पर धनिया, घी और चीनी के मिश्रण से तैयार की जाती है। मंदिरों में पंजीरी को श्री कृष्ण जन्म के उपरान्त प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।

विदेशों में भी मनाया जाता है जन्माष्टमी का त्योहार

भगवान श्रीकृष्ण हिन्दू देवताओं में सबसे लोकप्रिय और विश्वव्यापि ख्याति प्राप्त है। श्रीकृष्ण के भक्त आपको लगभग समस्त विश्व में मिल जायेंगे। इंग्लैण्ड में श्री कृष्ण के लाखों भक्त हैं जिनके अराध्य भगवान श्रीकृष्ण हैं। विदेशों की बात करें तो नेपाल की अधिकतम आबादी हिन्दुओं की है। वहां पर भारत की तरह श्री कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार मनाएं जाने की वैदिक परम्परा है। लोग उपवास करते है और अर्धरात्रि में कृष्ण जन्म के उपरान्त प्रसाद को ग्रहण करके उपवास का समापन किया जाता है। घरों में लोग श्री कृष्ण की प्रतीक अंकन करते हैं। हालांकि यूरोप और दूसरे महाद्वीपों में भी विदेशी मूल के लोग भी श्रीकृष्ण के भक्त बड़ी संख्या में है। उनके लिए श्रीकृष्ण जन्माष्टी का त्योहार किसी वार्षिक उत्सव की तरह है। इसलिए नेपाल के अलावा सूरीनाम, त्रिनिदाद, संयुक्त राज्य अमेरिका, गुयाना, कनाडा, बंग्लादेश, म्यान्मार, फिजी और जमैका जैसे देशों में खासतौर पर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार बनाया जाता है।

कब है श्री कृष्ण जन्माष्टमी

भारतीय पंचांग के अनुसार श्री कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार प्रत्येक संवत् वर्ष के भाद्रपद मास के कष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। अंग्रेजी वर्ष 2024 में यह तिथि 26 अगस्त 2024 को है। इस दिन सोमवार है। कृतिका नक्षत्र है और व्याघात योग है। अष्टमी तिथि सूर्योदय से लेकर रात्रि 2 बजकर 20 मिनट तक रहेगी। माना जाता है कि भगवान श्री विष्णु ने इस दिन मध्य रात्रि में श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया था। इसलिए वर्तमान में भी रात्रि 12 बजे श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाये जाने की परम्परा अनवरत जारी है। इसलिए इस वर्ष दिनांक 26 अगस्त को श्री कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जायेगा।

Astrologer Satyanarayan Jangid

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