स्वामी विवेकानंद : भारतवर्ष की भूमि पर एक से बढ़कर एक महापुरुष से लेकर युगपुरुष तक ने जन्म लिया जिन्होंने ने ना सिर्फ देश में बल्कि सम्पूर्ण विश्व में अपनी अमिट छाप छोड़ी है। जिनकी विचार ना सिर्फ प्रभावित करते थे बल्कि उनकी बात को विश्व भर में कोई भी व्यक्ति नहीं काट सकता था। ऐसे ही भारत की भूमि से युगपुरुष हुए थे स्वामी विवेकानंद जिनके विचार अभी सभी वर्ग के लोगों को प्रभावित करते है। जिस समय पश्चिम सभ्यता पूरी दुनिया पर अपना राज कर रही थी। उस समय उन्होंने अमेरिका के शिकागों में सनातन धर्म को श्रेष्ट सिद्ध किया। कहा जाता है जिस समय वह अपना भाषण देते थे उस वक्त श्रोता उनकी वाणी के वशीभूत हो जाते थे। आज भी युवा स्वामी विकानंद को अपना आदर्श मानते है। उनके जन्मदिवस को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज के युवा को उनके विचारो से सीख लेकर अपने जीवन में अपनाना चाहिए। उनके विचार ना सिर्फ भारत में प्रभाव छोड़ते थे बल्कि सम्पूर्ण विश्व में एक अलग छाप छोड़ते थे। उनके विषय में ना सिर्फ हमारे देश में लिखा गया अपितु पूरे विश्व में अलग – अलग धारणाओं के साथ छापा गया। स्वामी विवकानंद अपने देश और संस्कृति के प्रति पूर्णतः समर्पित थे। कम आयु में उन्होंने अधिक ज्ञान प्राप्त किया। कम उम्र में ज्ञान प्रप्ति के साथ उन्हें जीवन के गूढ़ रहस्यों की समझ भी हो गई थी। महज 25 साल की आयु में ही उन्होंने धर्म व संयास का मार्ग चुना। जैसे उन्हें कम उम्र में ज्ञान प्राप्त हुआ वैसे ही महज 39 साल की कम उम्र में उनकी मृत्यु हो गई। लेकिन उनके विचार और नाम युगो – युगो तक जीवित रहेंगे।
स्वामी विवेकानंद को धर्म को अध्यात्म के प्रति गहरा लगाव था। महान संत और आध्यात्मिक गुरु रामकृष्ण परमहंस स्वामी विवेकानंद के गुरु थे। स्वामी विवेकानंद ईश्वर की खोज में थे और तभी उनकी भेंट रामकृष्ण परमहंस से हुई। हुआ यू एक समय स्वामी विवेकानंद की जिंदगी में बहुत कठिन दौर आया जहां उनके पिता की मृत्यु के पश्च्यात उनके घर – परिवार को आर्थिक संकटो से गुजरना पड़ा। उस समय उन्होंने रामकृष्ण परमहंस से कहा कि वे ईश्वर से प्रार्थना करें कि उनकी आर्थिक हालात में सुधर आ जाए।तब रामकृष्ण परमहंस ने कहा कि, वो स्वंय ही ईश्वर को अपनी समस्या बताए और इसके लिए प्रार्थना भी स्वयं करे। अपने गुरु के कहने पर स्वामी विवेकानंद मंदिर गए और ईश्वर से विवेक व वैराग्य के लिए प्रार्थना की। इसी दिन से स्वामी विवेकानंद को धर्म व अध्यात्म में रुचि हुई और वो तपस्यी जीवन की ओर आकर्षित हो गए। इसके बाद संन्यास एवं संतता उनके लिए संसार की चिंताओं से मुक्ति का मार्ग बन गया।
इस धर्म का संदेश लोगों को अलग-अलग धर्म-संप्रदायों के खांचों में बांटने के बजाय संपूर्ण मानवता को एक सूत्र में पिरोना है। गीता में भगवान कृष्ण भी यही संदेश देते हैं कि, 'अलग-अलग कांच से होकर हम तक पहुंचने वाला प्रकाश एक ही है।
अमेरिका के शिकागो में आयोजित होने वाले विश्व धर्म महासभा के बारे में जब स्वामी विवेकानंद को पता चला तो, उन्होंने वहां जाने की ठानी। तमाम प्रयासों के बाद विवेकानंद विश्व धर्म सम्मेलन में पहुंचे और ऐसा भाषण दिया, इतिहास के पन्नो में युगो – युगो के लिए दर्ज हो गया। शिकागो में स्वामी विवेकानंद ने वेदांत, धर्म और अध्यात्म के सिद्धांतों के बारे में उपदेश दिए।
स्वामी विवेकानंद ने 04 जुलाई 1902 को बेलूर मठ के एक शांत कमरे में महासमाधि ली। विवेकानंद अपने निधन से पूर्व कई बार अपने शिष्यों और परिचितों को कह चुके थे कि वो 40 साल के आगे नहीं जीने वाले। उनकी उम्र इससे आगे नहीं जाएगी। क्या उनका निधन किसी बीमारी से हुआ था। मार्च 1900 में उन्होंने सिस्टर निवेदिता को एक पत्र लिखा, मैं अब काम नहीं करना चाहता बल्कि विश्राम करने की इच्छा है। मैं इसका समय भी जानता हूं। हालांकि कर्म मुझको लगातार अपनी ओर खींचता रहा है। जब उन्होंने ये लिखा कि मैं अपना आखिरी समय और जगह जानता हूं तो वाकई ये जानते थे। इस पत्र को लिखने के 02 साल बाद उनका निधन हो गया।
Disclaimer : यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि Punjab kesari.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है।