भारत में स्थित इत्र नगरी, जहां गलियों से भी आती है इत्र की महक

भारत में स्थित इत्र नगरी, जहां गलियों से भी आती है इत्र की महक
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इत्र की खुशबू लोगों को मंत्रमुग्ध कर देती है। जो भी व्यक्ति इसका इस्तेमाल करता है उसके इत्र की महक दूर तक जाती है। दुनिया में महंगे-महंगे इत्र हैं लेकिन आज हम आपको भारत में स्थित इत्र की नगरी के बारे में बताने वाले है जहां दुनिया का सबसे महंगा इत्र बनता है साथ ही यहां के इत्र पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का भी पसंदीदा था।

हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के इत्र की नगरी कन्नौज की। गंगा तट पर बसा कन्नौज हर्षवर्धन के साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था। तब से लेकर आज तक इत्रों के इस शहर ने इत्र बनाने की प्राचीन कला को सहेज कर रखा हुआ है। कहा जाता है कि यहां की हवाएं भी अपने साथ इत्र की खुशबू लिए चलती  है।  इस शहर की संकरी गलियों में भी इत्र की खुशबू किसी को भी दीवाना बना लेंगी। यहां की गलियों में गुलाब, चंदन और चमेली की खुशबू आती है।

कन्नौज के लोग अपने हाथों से फूलों से रस निकाल कर शुद्ध इत्र बनाते थे। हालांकि अब इत्र बनाने के लिए मशीनें आ चुकी हैं जिनका इस्तेमाल कर इत्र व्यापारी  इस व्यापार को आगे बढ़ा रहे हैं। ऐसे में इत्र व्यापारियों ने अब अपने नए-नए तरीके से खुशबू बनाना शुरू कर दिया है। अलग-अलग खुशबुओं को टेस्ट करके एक अलग सुगंध बनाने का प्रचलन अब लगातार बढ़ रहा है।

बता दें, कन्नौज में इत्र कारोबार की करीब 200 से ज्यादा इकाइयां मौजूद हैं। इनमें ज्यादातर इकाइयों में बड़े पैमाने पर इत्र बनाया जाता है। यहां इत्र बनाने के लिए कई शहरो से यहां फूल और लकड़ियां मंगाई जाती हैं।

मिट्टी से भी बनता है इत्र

आपको बता दें कि कन्नौज की मिट्टी से भी इत्र बनाया जाता है। इसके लिए तांबे के बर्तनों में मिट्टी को पकाया जाता है। इसके बाद मिट्टी से निकलने वाली खुशबू को बेस ऑयल के साथ मिलाया जाता है। इस तरह से मिट्टी से इत्र बनाने की प्रक्रिया चलती है। कहा जाता है कि जब बारिश की बूंदें कन्नौज की मिट्टी पर पड़ती हैं, तो यहां की मिट्टी से भी खास तरह की खुशबू निकलती है।

दुनिया का सबसे महंगा इत्र

कन्नौज में बनने वाला इत्र इतना मशहूर है कि दुनिया का सबसे महंगा इत्र भी यहीं बनता है। इस महंगे इत्र का नाम 'अदरऊद' है।  इस इत्र को असम की खास लकड़ी से तैयार किया जाता है। इस एक ग्राम इत्र की कीमत लगभग 5000 रुपये है। कारोबारी बताते हैं कि 'अदरऊद' की बाजार में कीमत 50 लाख रुपये प्रति किलो तक है। वहीं गुलाब से बनने वाला इत्र भी करीब तीन लाख रुपये किलो में बिकता है।

कन्नौज में सस्ते से लेकर महंगे सब तरीके से इत्र मिलते है। यहां बनने वाले इत्र पूरी तरह से प्राकृति के गुणों से भरपूर होता है। इसमें अल्कोहल का इस्तेमाल नहीं किया जाता। आपको बता दें, यहां के इत्र की लोग बेचैनी और तनाव से बचने के लिए भी खुशबू लेते हैं।

बेला फूल भी सबसे मशहूर

वैसे तो कन्नौज में केवड़ा, बेला, केसर, कस्तूरी, चमेली, मेंहदी, कदम, गेंदा, शमामा, शमाम-तूल-अंबर, मास्क-अंबर जैसे इत्र भी तैयार किए जाते है। लेकिन इन सब फूलों के बीच लोगों के बीच गुलाब के इत्र के बाद बेला का इत्र सबसे ज्यादा डिमांड में रहता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस फूल से कई सारी क्वालिटी के इत्र तैयार किए जाते हैं, जिसमें सबसे खास बेला रूह है, इस इत्र की कीमत 8 लाख रुपए प्रति किलो के से लेकर 10 लाख रुपए प्रति किलो तक जाती है।

सबसे पहले बेला का इत्र 'संदली बेला' के नाम से बनता है। संदल तेल के बेस से बेला का यह इत्र तैयार किया जाता है। इसमें शुद्धता भी सबसे ज्यादा होती है और इसकी कीमत करीब 3 लाख रूपए प्रति किलो रहती है।

इत्र बनने की प्रक्रिया

कन्नौज में बनाए गए इत्रों की प्रक्रिया के बारे में बताए तो, सबसे पहले खेतों से तोड़कर लाए गए फूलों को भटठियों पर लगे बहुत बड़े तांबे के भपका (डेग) में डाला जाता है। एक भपके में करीब एक क्विंटल फूल तक आ जाते हैं। फूल डालने के बाद इन भपकों के मुंह पर ढक्कन रखकर गीली मिट्टी से सील कर दिया जाता है।

इसके बाद कई घंटों तक आग में पकाया जाता है। इन भपकों से निकलने वाली भाप को एक दूसरे बर्तन में एकत्र किया जाता है, जिसमें चंदन तेल होता है। इसे बाद में सुगंधित इत्र में तब्दील कर दिया जाता है।

वाजपेयी का भी पसंदीदा था कन्नौज इत्र

पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी को भी इत्र की नगरी कन्नौज में बनने वाले इत्र काफी पसंद थे। उनका इत्र गुलाब और केवड़े का बना होता था। वह इस इत्र को जन्मदिन के अलावा खास मौकों पर रुई के फाहे से कपड़ों पर जरूर लगाते थे। जब वह भी वह कन्नौज जाते थे इत्र जरुर लिया करते थे।

बाकें बिहारी को भी चढ़ता हैं यहां का इत्र

विश्व प्रसिद्ध वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में भी कन्नौज के इत्र की सबसे ज्यादा डिमांड रहती हैं। इस इत्र का नाम 'काला भूत' है। कहा जाता है कि बांके बिहारी के मंदिरों में इस इत्र की खुशबू महसूस की जा सकती है। इस इत्र की खुशबू बहुत तेज होती है और वातावरण में बहुत तेज से फैल जाती है जो की सुगंध के साथ-साथ ताजगी का भी एहसास दिलाए रहती है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, इत्र व्यापारी शिव बताते हैं कि बांके बिहारी के सभी मंदिरों में इस इत्र की बहुत डिमांड रहती है। 'काला भूत' के नाम का यह इत्र बांके बिहारी के मंदिरों में लोग बहुत पसंद करते हैं। विश्व प्रसिद्ध वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर, राजस्थान के खाटू श्याम मंदिर में भी इसकी अच्छी खासी डिमांड रहती है जो कि हम लोग पूरी तक नहीं कर पाते।  इस इत्र की कई खासियत होती है। इसमें गुलाब,मस्क, अंबर,केवड़ा,खस संदल सहित कई चीजों को मिलाकर यह तैयार किया जाता है।

मालूम हो, कन्नौज के इत्र की सप्लाई यूके, यूएस, सउदी अरब, ओमान, इराक, इरान समेत कई देशों में की जाती है।  इत्र का इस्तेमाल कॉस्मेटिक के साथ गुटखा और पान मसाला बनाने में भी किया जाता है।

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