भारत में चुनाव ईवीएम के जरिए होता है कई बार विपक्षी दलों ने इस पर आपत्ति भी जताई है। तो आइये जानते हैं ईवीएम का इतिहास, दरसल ये सब सुरु होता है 1970 के दशक से जब बूथ कैप्चरिंग और वोट धांधली हुआ करती थी। इस बूथ कैप्चरिंग और वोट धांधली के खिलाफ लड़ने के लिए ईवीएम यानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों को लाया गया। लेकिन अब, इसकी विश्वसनीयता और पारदर्शिता सवाल उठया जा रहा है।
सबसे पहले 1982 में, केरल निर्वाचन क्षेत्र में ईवीएम के जरिये चुनाव कराने का सोचा गया। इस समय भारत के 35 करोड़ मतदाता वोट डालने के लिए कागजी मतपत्रों का उपयोग किया करते थे। कागजी मतपत्रों का उपयोग करना थकाऊ, समय लेने वाला और धांधली और मतदाता धोखाधड़ी के लिए जाना जाता था। इसीलिए केरल के परवूर टाउनशिप में चुनाव आयोग ने अपना पहला ईवीएम चुनाव परीक्षण 123 बूथों में से 50 बूथों पर पारंपरिक पेपर मतपत्रों को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों से बदल कर किया।
इस चुनाव के बाद एक विवाद उठा और, पुनर्मतदान की बात हुई और पुनः मतदान कराया गया और चुनाव के फैसले को उलट दिया गया। हालाँकि, इस प्रयोग ने आज भारतीयों के वोट डालने के तरीके को बदल दिया। और आपको जानकार हैरानी होगी की 19 अप्रैल से शुरू होने वाले आगामी लोकसभा चुनावों में लगभग 55 लाख ईवीएम के उपयोग होने की उम्मीद है।
भारत में ईवीएम का इतिहास –