धरती पर रहने वाले प्रत्येक प्राणी के लिए सूरज बहुत जरूरी है। इसके बिना हम अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। वहीं, कड़ाके की ठंड में तो ये बहुत ही जरूरी बन जाता है। क्योंकि सर्दियों में सूरज की किरण के कारण ठंड से थोड़ी राहत मिल जाती है। लेकिन इतनी ठंड में अब सूरज के दर्शन भी बहुत मुश्किल से मिलते हैं। इसलिए लोग इससे बचने के लिए हीटर, अंगीठी और ब्लोअर का इस्तेमाल करते हुए दिखाई देते हैं।
ऐसे में अगर हम आपसे सवाल करते हुए पूछे कि इतनी ठंड में अगर सूरज के दर्शन 2 महीने तक न हो तो? शायद हमारे लिए ये सोचना भी मुश्किल है लेकिन इटली का एक गांव है। यहां सूरज ढाई महीने तक नहीं उगता है और इस दौरान पूरे नगर में सर्दी और अंधेरे से सन्नाटा पसर जाता है। ऐसे में इस परेशानी का हल निकालने के लिए गांववालों ने धरती पर ही सूरज उतार दिया।
दरअसल, विगनेला गांव स्विटज़रलैंड और इटली की सीमा पर पड़ता है। इस गांव में 200 लोग रहते हैं। ये गांव पहाड़ों के बीच बसा है। इसीलिए ढाई महीने यहां सूरज की सीधी रोशनी नहीं पहुंच पाती थी। बता दें, यहां सूरज 11 नवंबर को गायब हो जाता था। फिर 2 फरवरी को ही गांव वालों को दोबारा दर्शन देता था। हालात इतने खराब बन गए थे कि गांववालों को साइबेरिया जैसा अनुभव होता था।
विगनेला गांव निवासियों ने 800 सालों के इतिहास में इन हालातों से समझौता कर लिया था। लेकिन 1999 में चीजों के बदलने की शुरुआत हुई। दरअसल, उस समय विगनेला के स्थानीय आर्किटेक्ट जियाकोमो बोन्ज़ानी ने चर्च की दीवार पर एक धूपघड़ी लगाने का प्रस्ताव रखा। धूपघड़ी एक ऐसा टूल है जो सूर्य की स्थिति से समय बताता है। लेकिन तत्कालीन मेयर फ्रेंको मिडाली ने इस सुझाव को खारिज कर दिया। धूपघड़ी की जगह मेयर ने उस वास्तुकार को कुछ ऐसा बनाने के लिए जिससे नगर में पूरे साल धूप पड़ती रहे।
किसी जगह धूप लाना नामुमकिन सा लग सकता है। लेकिन इसे बेहद आसान वैज्ञानिक सिद्धांत से आर्किटेक्ट जियाकोमो बोन्ज़ानी ने सुलझा दिया। यह सिद्धांत है रिफ्लेक्शन ऑफ लाइट। यह सिद्धांत कहता है कि चिकनी पॉलिश वाली सतह से टकराने से लाइट रिफ्लेक्ट होकर लौट जाती है। इसी के आधार पर आर्किटेक्ट जियाकोमो ने नगर के ऊपर की चोटियों में से एक पर विशाल मिरर लगाने की योजना बनाई। जिससे सूरज की किरणें मिरर से रिफ्लेक्ट होकर नगर के मुख्य चौराहे पर पड़ने लगे।
आर्किटेक्ट बोन्ज़ानी और इंजीनियर गियानी फेरारी ने मिलकर आठ मीटर चौड़ा और पांच मीटर लंबा एक विशाल मिरर डिजाइन किया। यह प्रोजेक्ट 17 दिसंबर, 2006 तक तैयार हो गया और इसे बनाने में सिर्फ 1,00,000 यूरो (लगभग 1 करोड़ रुपए) की लागत आई। बता दें, मिरर में एक खास सॉफ्टवेयर प्रोग्राम भी लगाया गया है। सॉफ्टवेयर की बदौलत मिरर सूरज के पथ के हिसाब से घूमता है। इस तरह चोटी पर लगे विशाल मिरर से नगर में दिन में छह घंटे तक सूरज की रोशनी रिफ्लेक्ट होकर आने लगी
मालूम हो, इस मिरर का वजन 1.1 टन था और इसे 1100 मीटर की ऊंचाई पर लगाया गया था। आखिर में शीशे का आकार बड़ा होने के कारण पूरे गांव में पहली बार लोगों को सर्दी के मौसम में रोशनी देखने के लिए मिली। ये कंप्यूटराइज्ड शीशा पूरे दिन सूरज की चाल को फॉलो करता है और घूमता जाता है। ऐसे में ये शीशा करीब 6 घंटे गांव के एक हिस्से को रोशन करता है।
बता दें, यह आर्टिफिशियल रोशनी प्राकृतिक धूप के बराबर इतनी शक्तिशाली नहीं है। लेकिन यह योजना मुख्य चौराहे को गर्म करने और नगर के घरों को कुछ सूरज की रोशनी देने के लिए काफी है। उन्हें थोड़ी सर्दी से भी राहत मिल जाती है। वहीं, गर्मी के मौसम में अगर ऐसी व्यवस्था रहेगी, तो विशाल मिरर की वजह से नगर में तेज धूप पड़ेगी। इसलिए, मिरर को केवल सर्दियों में इस्तेमाल किया जाता है। साल के बाकी समय उस मिरर को ढक दिया जाता है।
बता दें, चीन भी अपना आर्टिफिशियल सूरज तैयार कर चुका है। इसे बनाने में चीन ने 1 लाख करोड़ रुपये खर्च किए हैं। वहीं, इटली के विगनेला गांव के लोगों ने महज एक करोड़ रुपये खर्च कर अपने लिए रोशनी का इंतजाम कर लिया। इसके अलावा 2013 में दक्षिण-मध्य नॉर्वे की एक घाटी में मोजूद रजुकन में भी ऐसा ही मिरर लगाया गया।