क्या है शनि और उसकी साढ़ेसाती का रहस्य, शनि के प्रकोप से कैसे पाएं मुक्ति

क्या है शनि और उसकी साढ़ेसाती का रहस्य, शनि के प्रकोप से कैसे पाएं मुक्ति

साढ़ेसाती

शनि के प्रकोप से कैसे पाएं मुक्ति?

ज्योतिष में शनि सबसे चर्चित ग्रह है। लोगों में शनि और उसकी साढ़ेसाती का हौवा है। लेकिन वास्तव में नवग्रहों में शनि ही अकेला एक ऐसा ग्रह है जो आपके परिश्रम का पूरा फल देता है। क्योंकि शनि को ग्रहों में न्याधाीश की उपाधि प्राप्त है। लेकिन साथ में यह भी सच्चाई है कि यदि आप परिश्रम नहीं करते हैं और आपने पूर्व जन्म में पाप किये हैं तो शनि आपके जीवन को नर्क बना सकता है। लेकिन इसके बाद भी यदि आप परिश्रम करने की इच्छा शक्ति और सामर्थ्य रखते हैं तो शनि आपके पूर्व जन्म के पापों को स्थगित करने की क्षमता भी रखता है। इसलिए परिश्रम करना और अपने धंधे-पानी पर लगातार लगे रहना शनि की प्रसन्नता का बहुत सस्ता और कारगर उपाय है।

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शनि एक नेचुरल पाप ग्रह है। इसलिए यह बाधा और शोक का प्रतीक है। शनि का कार्यों को लटकाने पर बहुत विश्वास है लेकिन शनि चीजों को नष्ट नहीं करता है केवल विलम्ब करता है। जब कि मंगल और राहु जैसे ग्रह चीजों को नष्ट कर देते हैं। शनि अपनी विंशोत्तरी दशा या साढ़ेसाती में आपको अपनी स्थिति से परिचित करवाता है। मैंने ज्योतिषीय अनुभव में शनि के संबंध में बहुत से आश्चर्यजनक बातें देखी हैं, जिस बात ने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित कि शनि का प्रभाव कमजोर तबके पर ज्यादा होता है या आप कह सकते हैं ज्यादा दिखाई देता है और उसकी वजह उनका बैकग्राउंड है। शनि का प्रभाव कमजोर तबके के लोगों पर इसलिए भी ज्यादा दिखाई देता है, क्योंकि उनके जन्मांग चक्र में दूसरे ग्रह बलहीन होते हैं। जिसके कारण शनि हावी हो जाता है। जैसे चंद्रमा या बुध जैसे छोटे प्लेनेट यदि मारकेश हों और कुंडली में उन पर शनि का प्रभाव हो तो शनि उनको मारकेश से हटाकर स्वयं मारकेश बन जाता है और अपनी दशा-अंतर्दशा में मृत्यु देता है।

साढ़ेसाती किसे कहते हैं?

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कुछ लोगों के जीवन में शनि की विंशोत्तरी महादशा नहीं आती है जिसके कारण उनके जीवन में शनि की भूमिका को गोचर की साढ़ेसाती से देखा जाता है। लेकिन हमारे लिए पहले यह जान लेना महत्वपूर्ण है कि वास्तव में साढ़ेसाती होती क्या है। जैसा कि पाठकोें को विदित होगा कि उदय लग्न की तरह ही भारतीय ज्योतिष में चन्द्रमा जिस राशि में पड़ा हो उसे भी लग्न की संज्ञा दी जाती है। इस प्रकार से आप कह सकते हैं कि चन्द्र लग्न भी उदय लग्न की ही तरह महत्वपूर्ण है। जब गोचर का शनि, चन्द्रमा को प्रभावित करे तो उसे साढ़ेसाती कहा जाता है। दूसरे सरल शब्दों में आप इस बात को इस तरह से भी समझ सकते हैं कि जब गोचर में शनि, चंद्रमा से द्वादश, चन्द्रमा के साथ या चन्द्रमा की राशि से द्वितीय होता है तो वह चन्द्रमा को पूरी तरह से प्रभावित करता है। और इस काल खण्ड को साढेसाती कहते हैं। साढेसाती इसलिए कहा जाता है, क्योंकि शनि एक राशि में 30 माह रहते हुए तीन राशियों में 90 माह रहते हैं। 90 माह अर्थात 7 वर्ष 6 मास, यानि साढ़े सात वर्ष। इस प्रकार साढ़े सात वर्ष का अपभ्रंश रूप ही साढ़ेसाती है।

साढ़ेसाती में क्या परिणाम होते हैं?

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साढ़ेसाती के दौरान व्यक्ति बेकार में घूमता रहता है। उसकी नौकरी छूट जाती है या फिर बिजनेस बंद हो जाता है या बहुत मंदा चलता है। साढ़ेसाती के दौरान मित्र और रिश्तेदार भी शत्रु जैसा व्यवहार करते हैं और दूरी बना लेते हैं। जो भी काम किया जाता है उसमें नुकसान होता है। बहुत कोशिशों के बाद भी व्यक्ति अपना वादा पूरा नहीं कर पाता है। जिसके कारण समाज में प्रतिष्ठा नष्ट हो जाती है। अनावश्यक यात्राएं होती हैं जिसके कारण खर्च बढ़ जाते हैं लेकिन यात्रा से पर्याप्त लाभ नहीं हो पाता है।

क्या कुछ लोग साढ़ेसाती के प्रभाव से बचे रहते हैं?

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कुछ लोग कहते हैं उन पर शनि की साढ़ेसाती का कोई असर नहीं है। जब कि आमतौर पर ऐसा नहीं होता है। शनि की साढे़साती सभी पर असर करती है। लेकिन उसका रूप बदल जाता है। जो व्यक्ति पैसों वाला होगा उसको भी शनि की साढ़ेसाती में आर्थिक नुकसान हो सकता है लेकिन लोगों के सामने सच नहीं आ पाता है। इसके अलावा यह पूरी तरह से जरूरी नहीं है कि शनि की साढ़ेसाती में आपको आर्थिक नुकसान ही हो, जो लोग संपन्न है वे धन समस्या का सामना चाहे न करें लेकिन मान-सम्मान में कमी, पारिवारिक कलह या बीमारी आदि से परेशान रह सकते हैं। लेकिन यह भी संभव है कि जो लोग हमेशा सत्कर्माें में लगे रहते हैं, उनके जीवन पर शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव बहुत कम होता है।

क्या उपाय करें?

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साढ़ेसाती के लिए शनि के बीज मंत्रों का छोटा सा अनुष्ठान संपन्न करवाना चाहिए। जिसमें शनि के 23000 बीज मंत्रों का जाप, दशांश हवन, शनि की पूजा और अंत में शनि के दान होते हैं। यदि कोई यह अनुष्ठान नहीं करवा सकता है तो कुछ विशेष बातों को ध्यान में रखते हुए शनि के बीज मंत्रों का रात्रि में नियमित जाप करने से भी लाभ मिलता है। यदि यह भी नहीं कर सके तो शनिवार को तेल और काले तिल का दान करने से भी कुछ हद तक शनि की शान्ति होती है। भगवान श्री कृष्ण की उपासना और पूजा से भी शनि का शान्ति होती है। अपनी लम्बाई के बराबर काला कपड़ा या अपने वजन के बराबर कोई अनाज शनिवार की रात्रि को दान करने से भी शनि प्रसन्न होता है। इसके अलावा हमेशा सत्य बोलने, धर्म का पालन करने और बिजनेस छोड़ कर नौकरी करने से भी शनि के बुरे प्रभावों से मुक्ति मिलती है।

Astrologer Satyanarayan Jangid

WhatsApp – 6375962521

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