होलिका दहन: आगामी 24 मार्च को होली का त्यौहार है। होली परस्पर भाईचारे और रंगों का अद्भुत त्योहार है। जहां तक मुझे जानकारी है इस तरह का रंगों का त्योहार किसी और देश में नहीं है। पूरे विश्व में इस तरह का यह अकेला त्योहार है। किसी जमाने में पूरे फाल्गुन मास में होली के तौर पर हंसी मजाक और मनोरंजन का वातावरण रहता था और होली के अंतिम दिन पूर्णिमा को होलिका दहन और उसके दूसरे दिन रंगों का त्यौहार मनाया जाता था। हालांकि रंगों का यह त्यौहार वर्तमान में अपने स्वरूप में बदलाव के बाद लगभग 2 दिन का उत्सव रह गया है। पहले दिन होलिका दहन होता है और दूसरे दिन एक दूसरे पर रंग लगाकर सभी को होली की शुभकामनाएं दी जाती हैं। वास्तव में यह त्योहार अधर्म पर धर्म की विजय के उपलक्ष्य मनाया जाता है।
अब मैं आपको बताउंगा कि इस त्योहार के पीछे हमारे शास्त्रों में क्या लिखा है और यह त्योहार क्यों मनाया जाता है। दरअसल यह कथा सतयुग से जुड़ी हुई है। सतयुग में हिरण्यकश्यप नाम का एक राक्षस राजा था जिसे कई तरह के वरदान मिले हुए थे। जिसके कारण उसे अहंकार हो गया कि वह तो अजेय है और अमर है उसे कोई मार नहीं सकता है। इस अंहकार के कारण वह निरंकुश और निर्दयी हो गया। और उसने अपने नगर में यह घोषणा करवा दी कि वही वास्तविक भगवान है और उसी की पूजा होनी चाहिए। उसके डर से प्रजा उसकी पूजा करने लगी लेकिन उसका स्वयं का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। पिता हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को श्री विष्णु की भक्ति से विमुख करने के लिए अनेक कष्ट और यातनाएं दीं। जब किसी भी तरह से बालक प्रहलाद अपनी भक्ति से विमुख नहीं हुए तो हिरण्यकश्यप ने अपनी समस्या पर अपनी बहन होलिका से बात की। कहा जाता है कि होलिका को वरदान के रूप में एक चादर मिली हुई थी जिसको ओढ़ कर बैठने से वह अग्नि से बची रह सकती थी। भाई-बहन ने योजना बनाई कि कि चादर के कारण होलिका तो बची रहेगी और प्रहलाद जलकर राख हो जायेगा।
अन्ततः योजना अनुसार होलिका ने बालक प्रहलाद को अपनी गोद में बैठा लिया और आग लगा दी गई। लेकिन भगवान श्री विष्णु की भक्ति के कारण आंधी चली और होलिका की चमत्कारी चादर हवा में उड़ गई और होलिका स्वयं जलकर नष्ट हो गई जबकि प्रहलाद सुरक्षित अग्नि से बाहर आ गए। इस घटना के बाद आज भी गोबर से होलिका का प्रतीक बनाकर जलाया जाता है। हालांकि होलिका दहन के संदर्भ में और भी बहुत सी कथाएं हैं लेकिन यह सबसे लोकप्रिय और व्याप्त है।
यह कथा भगवान श्रीविष्णु ने नृसिंह के अवतार के उपरान्त पूर्ण होती है। इसलिए कुछ स्थानों पर भगवान नृसिंह की भी पूजा की जाती है। वैस में अपने प्रिय दर्शकों को एक रहस्य की बात बता दूं कि जो लोग दिमागी रूप से परेशान है। मानसिक परेशानी ज्यादा रहती है। या जिन लोगों को लगता है कि उनमें डिसीजन पावर कम है। और वे जो भी डिसिजन लेते हैं वह गलत हो जाता है। और बाद में पछताना पड़ता है। उनको होली के दिन भगवान श्री नृसिंह की पूजा करनी चाहिए।
होली का त्यौहार हिन्दू धर्म में बहुत मान्यता रखता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि जैन धर्म में भी होली का त्यौहार मनाया जाता है। जैन धर्म में होली के त्यौहार को भगवान महावीर के जन्म से जोड़ा गया है। जैन धर्म के मुताबिक, भगवान महावीर चैत्र कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को जन्में थे इसलिए जैन धर्म के लोग होली के इस पावन त्यौहार को महावीर भगवान के जन्मदिन के तौर पर सेलिब्रेट करते हैं। इसके अलावा जैन धर्म के लोग होली के त्योहार को भगवान ऋषभदेव के मोक्ष से भी जोड़ते हैं और उनको याद करके भी यह त्यौहार मनाते हैं।
जैसा कि मैं बता चुका हूं कि फाल्गुन पूर्णिमा को होली का त्यौहार मनाया जाता है। अंग्रेजी वर्ष 2024 में 24 मार्च को पूर्णिमा तिथि है। लेकिन होली पर होलिका पूजा और होलिका दहन करना भद्रा में मना किया जाता है। इस पूर्णिमा तिथि को प्रातः 10 बजकर 15 मिनिट से रात्रि 11 बजकर 15 मिनिट तक भद्रा रहेगी। इसलिए होलिका दहन रात्रि 11 बजकर 15 मिनिट के उपरान्त ही हो पायेगा। होलिका दहन के दूसरे दिन अर्थात 25 मार्च को रंगों का त्योहार जिसे प्रायः धुल्लंडी कहा जाता है वह मनाया जायेगा।