जानिए क्यों और कब लाया गया वीवीपैट,आखिर कैसे ये मशीन करता है काम

जानिए क्यों और कब लाया गया वीवीपैट,आखिर कैसे ये मशीन करता है काम
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विपक्षी दल लोकसभा में मतदान को अधिक पारदर्शी बनाने के लिए अधिक मतदान केंद्रों के सत्यापन की मांग कर रहे हैं। इसके लिए विपक्षी पार्टियों ने वीवीपैट पर्चियों के 50% से लेकर 100% तक सत्यापन की मांग की है। उनका तर्क है कि चुनाव की पवित्रता और निष्पक्षता ज्यादा महत्वपूर्ण है ना कि चुनाव के परिणामों की घोषणा में देरी की चिंता। हालाँकि, अभी तक चुनाव आयोग ऐसा करने में सहज नहीं लग रहा है।

दरसल, सुप्रीम कोर्ट में वीवीपैट पर्चियों के 100% सत्यापन की मांग करने को लेकर मार्च 2023 में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी,जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट (एससी) ने कहा कि इस याचिका पर जल्द ही सुनवाई की जाएगी। इस याचिका में कहा गया है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के मिलान को वीवीपैट से सत्यापित किया जाना चाहिए।

क्या होता है वीवीपैट और कैसे काम करता है ये –
वीवीपीएटी मशीन, ईवीएम मशीन से जुड़ी होती है और ये वीवीपीएटी मशीन कागज की एक पर्ची प्रिंट करके मतदाता द्वारा डाले गए वोट का दृश्य सत्यापन करता है। इस कागज की पर्ची में उम्मीदवार का क्रमांक, नाम और पार्टी का प्रतीक होता है और ये सब एक कांच की खिड़की के पीछे मशीन में दिखाई देता है। मतदाता को अपना वोट सत्यापित करने के लिए सात सेकंड का समय मिलता है।इसके बाद, पर्ची नीचे एक डिब्बे में गिर जाती है। कोई भी मतदाता वीवीपैट पर्ची घर वापस नहीं ले जा सकता, क्योंकि बाद में इसका उपयोग पांच चयनित मतदान केंद्रों में डाले गए वोटों को सत्यापित करने के लिए किया जाता है।

क्यों लाया गया ये वीवीपैट मशीन –
सबसे पहले 2010 में भारत के चुनाव आयोग (ईसी) ने ईवीएम आधारित मतदान प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी बनाने के वीवीपीएटी मशीन पर विचार करने के लिए राजनीतिक दलों के साथ एक बैठक की। जिसके बाद जुलाई 2011 में एक प्रोटोटाइप तैयार होने के बाद,लद्दाख, तिरुवनंतपुरम, चेरापूंजी, पूर्वी दिल्ली और जैसलमेर में फील्ड परीक्षण आयोजित किया गया। उसके बाद डिज़ाइन को बेहतर बनाने, अधिक परीक्षण करने और राजनीतिक दलों से फीडबैक लेने के बाद, ईसी विशेषज्ञ समिति ने फरवरी 2013 में डिज़ाइन को मंजूरी दे दी। उस वर्ष बाद में, चुनाव संचालन नियम, 1961 में संशोधन किया गया ताकि ईवीएम के साथ ड्रॉप बॉक्स वाले प्रिंटर को जोड़ने की अनुमति दी जा सके। 2013 में नागालैंड के नोकसेन विधानसभा क्षेत्र के सभी 21 मतदान केंद्रों पर पहली बार वीवीपीएटी का उपयोग किया गया , जिसके बाद चुनाव आयोग ने वीवीपीएटी का उपयोग करना शुरू किया। 2017 तक वीवीपैट को 100% अपनाया लिया गया।

क्यों किया जाता है पांच ही बूथों के वीवीपैट का मिलान ?
चुनाव आयोग को ये अधिकार है कि वो चुनाव की सटीकता को जांचने के लिए कितने भी प्रतिशत वीवीपैट मशीनों की पर्चियों को गिने सकते हैं और मिलान कर सकते हैं। फरवरी 2018 में, चुनाव आयोग ने प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में एक चयनित मतदान केंद्र की वीवीपैट पर्चियों की गिनती अनिवार्य कर दी। उसके बाद अप्रैल 2019 में टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक चयनित मतदान केंद्र की वीवीपैट पर्चियों की गिनती के बजाय बढ़ाकर प्रति विधानसभा सीट पर पांच मतदान केंद्रोंकी वीवीपैट पर्चियों की गिनती अनिवार्य कर दी। इन पांच मतदान केंद्रों का चयन संबंधित रिटर्निंग अधिकारी द्वारा उम्मीदवारों/उनके एजेंटों की उपस्थिति में लकी ड्रा द्वारा किया जाता है।

कितना क़ानून-सम्‍मत है ये वीवीपैट ?
वीवीपीएटी एक कानूनी मामलों का विषय रहा है, जिसकी शुरुआत सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत चुनाव आयोग (2013) केस से हुई है। इस मामले में, SC ने फैसला सुनाया कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के लिए पेपर ट्रेल आवशयक था और सरकार को VVPATs के रोल-आउट के लिए धन उपलब्ध कराने का आदेश दिया।
2019 में, चंद्रबाबू नायडू ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर न्यूनतम 50% वीवीपीएटी पर्चियों की गिनती की मांग की। हालाँकि, चुनाव आयोग ने तर्क दिया कि यदि ऐसा हुआ, तो नतीजों में पाँच से छह दिन की देरी होगी। चुनाव आयोग का दावा है कि चुनाव अधिकारियों को एक मतदान केंद्र में वीवीपैट पर्चियों का ईवीएम गणना से मिलान करने में लगभग एक घंटे का समय लगता है। चुनाव आयोग ने जनशक्ति की उपलब्धता सहित बुनियादी ढांचे की चुनौतियों को भी उन मतदान केंद्रों की संख्या बढ़ाने में बाधाओं के रूप में उजागर किया है जहां वीवीपैट पर्चियों की गिनती की जाती है। बहरहाल, अदालत ने चुनाव आयोग को इसके बजाय पांच मतदान केंद्रों में वीवीपैट की गिनती करने का आदेश दिया।

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