महेन्द्रगढ़: क्षेत्र में मंगलवार को गांव देवास व बूचावास में महिलाओं के बाल कटने की हुई घटना के पश्चात 4 और महिलाएं भी ऐसी ही घटनाओं से पीडि़त होकर महेंद्रगढ़ के उपनागरिक अस्पताल में अपना प्राथमिक उपचार कराने के लिए आई थी। प्राप्त जानकारी के अनुसार इन चार महिलाओं मे नांवा की लगभग 57 वर्षीय वीरमती, लगभग 20 वर्षीय प्रियंका, नारनौल की लगभग 27 वर्षीय आशा तथा माजरा कलां की 57 वर्षीय चमेली शामिल थी। इनमें से दो महिलाएं मंगलवार देर शाम एवं दो महिलाएं आज सुबह इलाज के लिए महेंद्रगढ़ आई थी। अस्पताल आने वाले ऐसी पीडि़त महिलाओं के स्वास्थ्य की विभिन्न जांचों के पश्चात नॉर्मल पाए जाने पर उन्हें किसी हायर सेंटर में फिजिसियन के पास जाकर सला लेनी की सलाह दी जाती है। चिकित्सकों का मानना है कि ऐसी महिलाओं को मनोरोग विशेषज्ञों से परामर्श लेने की आवश्यकता है।
बीते एक सप्ताह में जिले में चर्चित हुई महिलाओं के बाल कटने की घटनाओं को लेकर भले ही प्रशासन उनके झूठे होने के लाख दावे करता हो और इन घटनाओं को अफवाहों की संज्ञा देकर निराधार और बेबुनियाद बताता हो लेकिन घटनाओं से क्षेत्र व शहर की महिलाओं में जो दहशत का माहौल उभरा है महिलाएं उससे अभी तक उभर नहीं पाई है। यहीं कारण है कि ग्रामीण क्षेत्रों के साथ-साथ अब शहर के वार्डों व मौहल्लों के अधिकतर घरों के मुख्य दरवाजों के आस-पास महिलाओं ने अपने परिवार की सुरक्षा के मध्य नजर मेहंदी, रोली व गोबर के उल्टे सीधे थापे लगाए हुए है। कुछ महिलओं का कहना है कि ये थापे लक्ष्मण रेखा बनकर किसी भी अनहोनी से उनके परिवार की सुरक्षा करते है। उनका कहना है कि परिवार की बड़ी बुजुर्ग महिलाए भी किसी भी देवी आपती से सुरक्षा के लिए ऐसे ही प्रबंध किया करती थीं। सावन माह में शहर के लगभग सभी शिव मंदिरों में विशेषकर शहर के सैकड़ों वर्ष प्राचीन मौदाश्रम में स्थित शिव मंदिर में सुबह शाम शिव आरती के समय श्रद्धालु महिलाओं का जमावड़ा देखने को मिला करता था। लेकिन बीते दो दिनों से महिला श्रद्धालुओं की संख्या में मंदिरों में भी कमी देखने को मिली है।
इसी प्रकार से कई छात्राएं जिन्होंने इन चर्चाओं के बारे में सुना उन्होंने ने भी किसी न किसी बहाने के चलतेे स्कूलों से छुट्टी कर ली। कुछ लोगों में बिना अपना नाम बताएं हुए कहा कि प्रशासन ने उक्त घटनाओं को अभवाह व निराधार साबित करने के लिए आखिर कार ऐसा क्या कर दिया है? जिसे लोग आधार मानकर घटना से पीडि़त महिला व उनके परिजनों की बातों को मिथ्या कह सके। चर्चा है कि बिना आग के धूआं कभी नहीं निकलता। महिलाओं के साथ घटित इन घटनाओं ने भी आखिरकार कुछ न कुछ तो अवश्य होगा। भले ही प्रशासन वैज्ञानिक युग का वास्ता देकर इन सभी बातों को शरारती तत्वों द्वारा की गई हरकतें बता रहा हो लेकिन अभी तक प्रशासन ऐसा कुछ लेश मात्र भी सिद्ध नहीं कर पाया है जिसपर लोग विश्वास कर ले। माना की देश 21 वीं सदी में प्रवेश कर चुका है, लेकिन आज भी देश में साक्षरता की कमी के चलते अंधविश्वास का बोलबाला है।
– प्रताप शास्त्री, राजेन्द्र ढींगरा