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बीरेंद्र सिंह ने किया चुनावी राजनीति से संन्यास लेने का फैसला

बीरेंद्र सिंह का कहना है कि भाजपा ने अब तक उनके इस्तीफे पर फैसला नहीं किया है लेकिन उन्होंने चुनावी राजनीति से संन्यास लेने का निर्णय कर लिया है।

हिसार : केन्द्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अब तक उनके इस्तीफे पर फैसला नहीं किया है लेकिन उन्होंने चुनावी राजनीति से संन्यास लेने का निर्णय कर लिया है और वह ‘‘संन्यास के बाद कोई पद’’ नहीं चाहते हैं। सिंह ने साथ ही कहा कि कांग्रेस के ‘‘फिर से उभरने’’ की कोई संभावना नहीं दिखती। केन्द्रीय इस्पात मंत्री और राज्यसभा सदस्य सिंह ने 14 अप्रैल को भाजपा की ‘‘वंशवाद विरोधी राजनीति’’ का हवाला देते हुए दोनों पदों से इस्तीफा देने की पेशकश की थी उन्होंने कहा, ‘‘अब चुनाव चल रहे हैं, कई बार इस्तीफों को दूसरी तरह से भी देखा जाता है लेकिन मैंने स्पष्ट कर दिया है कि मैं दोनों पद छोड़ने के लिए तैयार हूं।’’

बड़े किसान नेता छोटू राम के पोते ने कहा कि भाजपा की नीति हमेशा ‘‘वंशवाद विरोधी’’ रही है और ‘‘जहां तक मेरे वंश की बात है तो यह सौ साल से भी पुराना है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मेरे दादा छोटू राम 1922 में देश का पहला चुनाव लड़े थे। इसलिए हमारे परिवार की विरासत है जो किसी भी संगठन के लिए फायदेमंद हो सकती है।’’ बीरेंद्र सिंह ने कहा, ‘‘मैंने चुनावी राजनीति से संन्यास लेने का फैसला किया है और साफ कर दिया है कि मैं (राजनीति से) संन्यास के बाद कोई पद नहीं चाहता हूं, चाहे वह राज्यपाल का पद हो या इस तरह का कुछ और।’’ वर्ष 2014 में भाजपा में शामिल होने से पहले करीब चार दशकों तक कांग्रेस में रहे सिंह एक समय हरियाणा के मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे। सिंह का मानना है कि कांग्रेस ‘‘खुद ही सिकुड़ती’’ जा रही है।

उन्होंने कहा, ‘‘सबसे पुरानी पार्टी होने के नाते कांग्रेस की पूरे भारत में उपस्थिति थी लेकिन जैसे ही उसने विभिन्न स्थानों पर गठबंधन करना शुरू किया, वे खुद ही सिकुड़ने लगे। अब, कई महीनों बाद, उन्होंने अकेले चलने का फैसला किया। कांग्रेस के फिर से उभरने की कोई गुंजाइश नहीं दिखती।’’ हालांकि, सिंह का मानना है कि भाजपा को भी हरियाणा में बहुत कुछ करना है।उन्होंने कहा, ‘‘भाजपा हरियाणा के अस्तित्व में आने के बाद 50 साल में पहली बार सत्ता में आई है लेकिन बहुत कुछ किया जाना है, खासकर कुछ क्षेत्रों में। मैं चाहता हूं कि वे हरियाणा के ग्रामीण क्षेत्रों में अपना पहचान स्थापित करें।’’ हरियाणा की दस लोकसभा सीटों पर 12 मई को मतदान होना है।

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