नारनौल : एक तरफ प्रदेश सरकार बेटी बचाओ पढ़ाओ अभियान के तहत करोड़ों रुपये खर्च करके बेटी बचाओ का संदेश देकर प्रदेश में घटते लिंगानुपात को बढ़ाने में लगी हुई है। दूसरी तरफ नारनौल में नवजात बेटियां इलाज के अभाव में सरकारी अस्पताल के गेट पर दम तोड़ रही है। इसका एक प्रमाण रविवार को सुबह नारनौल के सिविल अस्पताल में देखने को मिला। जब दो दिन पहले एक नवजात की तबीयत खराब होने पर नवजात को उपचार के लिए यहां के सिविल अस्पताल में लाया गया तो अस्पताल में बच्चों का चिकित्सक उपलब्ध ना होने की बात कहकर नवजात का करीब डेढ़-दो घंटे तक उपचार ही शुरू नहीं किया गया। आरोप है कि बच्ची इलाज शुरू नहीं करने के कारण बच्ची ने दम तोड़ दिया।
हैरानी तो उस समय हुई जब पीडि़त की शिकायत को अस्पताल परिसर चौकी प्रभारी लेने से ही मना कर दिया। पुलिस की इस कार्यशैली से भी पीडि़त परिवार में भारी रोष व्याप्त है। बता दें कि आम लोगों के मरीजों को नारनौल के सिविल अस्पताल में ठीक से ट्रीट ना करने की घटनाएं तो आये दिन सुनने को मिलती है लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि रविवार को इलाज के अभाव में जो नवजात मौत के आगोश में सो गई वो गांव धानौता के सक्रिय भाजपा कार्यकर्ता एवं हाल ही में सरकार द्वारा नियुक्त किए गए मार्केट कमेटी के सदस्य ओमप्रकाश की पौत्री थी। जिसने दो दिन पहले इसी अस्पताल के जच्चा-बच्चा वार्ड में जन्म लिया था।
इस मामले में नवजात के पिता बिजेंद्र कुमार ने नारनौल के सीएमओ को एक लिखित शिकायत देकर इस मामले में लापरवाही बरतने वाले ड्यूटी पर तैनात चिकित्सक के खिलाफ कार्रवाई की जाये। अपनी शिकायत में बिजेंद्र कुमार ने लिखा है कि उसकी पत्नी कांता ने दो दिन पहले 9 मार्च को सिविल अस्पताल में नार्मल डिलीवरी से एक बच्ची को जन्म दिया था। रविवार को सुबह बच्ची की नाक से अचानक खून आने लगा तो वे बच्ची को सिविल अस्पताल लेकर आये, लेकिन यहां करीब डेढ़ दो घंटे तक बच्ची का इलाज ही शुरू नहीं किया गया। जिसके चलते उसकी बच्ची की मौत हो गई। बिजेंद्र ने इस मामले में दोषी डॉक्टर के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।
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– रामचन्द्र सैनी