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स. जसविंदर सिंह संधू का राजकीय सम्मान के साथ हुआ अंतिम सस्कार

सरदार जसविंदर सिंह संधू को रविवार को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई। अपने प्रिय नेता के अंतिम दर्शनों के लिए हजारों की संख्या में कार्यकर्ता पहुंचे।

पिहोवा : पूर्व कृषि मंत्री इनेलो विधायक सरदार जसविंदर सिंह संधू को रविवार को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई। अपने प्रिय नेता के अंतिम दर्शनों के लिए हजारों की संख्या में कार्यकर्ता पहुंचे। इस दौरान उनके पैतृक गांव गुमथलागड़ू में इतनी भीड़ हुई कि पांव तक रखने की जगह नहीं मिली। संधू के बड़े पुत्र जसतेज ने उन्हें मुखाग्नि दी।

अंतिम विदाई देने पहुंचे हरियाणा सरकार के मंत्री कृष्ण पंवार ने कहा कि जसविंदर सिंह संधू अपने क्षेत्र के जनप्रिय नेता होने के साथ-साथ विधानसभा में भी एक सहयोगी व्यक्तित्व की पहचान रखते थे। उन्होंने कई दशक संधू के साथ अपने राजनीतिक करियर के रूप में बिताए। पक्ष विपक्ष को लेकर संधू के मन में कभी एक दूसरे के प्रति द्वेष भावना नहीं रही। वह सभी से मिलनसार थे और दूसरे दलों के अपने मित्रों से भी अपने क्षेत्र और परिवार की बातें साझा करते थे।

राज्य मंत्री कृष्ण कुमार बेदी ने पुष्प चक्र अर्पित करते हुए कहा कि उन्होंने जसविंदर सिंह संधू को हमेशा अपनी आवाम की लड़ाई लड़ते हुए देखा। उनकी हमेशा सरकार से यही मांग रहती थी कि यहां के लोगों को सरकार की ओर से दी जाने वाली मूलभूत सुविधाएं प्राथमिकता के आधार पर मिले। शिक्षा मंत्री रामविलास शर्मा ने भी संधू को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि जसविंदर सिंह संधू उनकी प्रतिद्वंदी पार्टी से होने के बावजूद उनके साथ भाई की तरह संबंध रखते थे।

उन्होंने कभी इस बात का एहसास नहीं होने दिया कि हम दोनों अलग पार्टी से हैं। लेकिन विधानसभा में प्रवेश करते ही वह एक विधायक के रूप में अपने क्षेत्र की लड़ाई लड़ते थे। नेता प्रतिपक्ष अभय चौटाला ने भी जसविंदर सिंह संधू को अंतिम विदाई दी। उन्होंने कहा कि संधू केवल पार्टी का ही नहीं। बल्कि उनके परिवार का एक हिस्सा थे और परिवार के किसी सदस्य के चले जाने पर कितनी असहनीय पीड़ा होती है इसका अहसास उन्हें आज हो रहा है।

इनेलो के प्रदेश अध्यक्ष अशोक अरोड़ा ने कहा कि जसविंदर सिंह के चले जाने उन्हें ऐसा लग रहा है जैसे वे अकेले पड़ गए हैं। एक दोस्त और मार्गदर्शक के रूप में संधू ने हमेशा उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। संधू के रहते उन्हें किसी बात की कोई चिंता नहीं थी। मुखाग्नि देने से पूर्व डेरा उदासीन ब्रह्म अखाड़ा मंडी के मुखी संत बाबा गुरविंदर सिंह ने अरदास की।

– सतपाल रामगढ़िया

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