चंडीगढ़ : हरियाणा सरकार में सीआईडी विभाग को लेकर छिडे विवाद का समाधान कैबिनेट बैठक में किए जाने के आसार दिखाई दे रहे है। यह समाधान सीआईडी को पुनः मुख्यमंत्री के अधीन लाने के फैसले से किया जा सकता है। सूत्रों का कहना है कि अब सीआईडी को मुख्यमंत्री के अधीन लाने के लिए कैबिनेट बैठक में नियमों में संशोधन को मंजूर कराया जा सकता है। इसके बाद इसे विधानसभा में पारित करवा लिया जाएगा।
गृहमंत्री विज ने सीआईडी के कामकाज पर असंतोष जताते हुए इसमें सुधार के लिए अपने विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव विजयवर्द्धन की अध्यक्षता में तीन सदस्यों की एक कमेटी गठन भी किया है। मुख्यमंत्री और गृहमंत्री के बीच सिर्फ सीआईडी पर अधिकार को लेकर ही नहीं बल्कि पुलिस अधिकारियों के तबादलों को लेकर भी विवाद रहा है। मुख्यमंत्री द्वारा सहमति के बिना तबादले किए जाने पर गृहमंत्री ने विरोध व्यक्त किया था।
प्रदेश में चौधरी देवीलाल और बंसीलाल की सरकार के समय अलग गृृहमंत्री बनाए जाने पर भी सीआईडी को मुख्यमंत्री के अधीन रखा गया था। कुछ अन्य राज्यों में भी सीआईडी एवं विजिलेंस मुख्यमंत्री के अधीन रहने के उदाहरण मौजूद है। बंसीलाल सरकार के बाद गृृहमंत्रालय लगातार मुख्यमंत्री के पास ही रहने से सीआईडी को लेकर कोई विवाद पैदा नहीं हुआ। लेकिन अब मुख्यमंत्री मनोहर लाल की दूसरी सरकार में गृहमंत्री अलग बनाए जाने पर यह विवाद पैदा हो गया।
गृहमंत्री अनिल विज ने लगातार यह दावा किया है कि कार्य बटवारा नियम के अनुसार सीआईडी उन्ही के पास रहेगी। उन्होंने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री हालांकि सर्वोच्च है और वे कैबिनेट की मंजूरी से विधानसभा में संशोधन पारित कर सीआईडी को अपने अधीन ले जा सकते है। हाल में सीआईडी के विवाद पर मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा था कि यह तकनीकी मामला है और इसे सुलझा लिया जाएगा। मुख्यमंत्री के इस बयान से यही अर्थ लिया गया है कि कैबिनेट बैठक में सीआईडी को मुख्यमंत्री के अधीन ले जाने के लिए नियम में संशोधन को मंजूरी ले सकते है।
हाल में सरकार की दो वेबसाइटों पर सीआईडी को मुख्यमंत्री के अधीन दिखाया गया था। इस पर अनिल विज ने कडी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा था कि सरकार नियमों से चलती है। वेबसाइटों से सरकार नहीं चलती है। विज ने कहा था कि हरियाणा सरकार के कार्यविभाजन नियम 1974 के अनुसार सीआईडी गृृहमंत्री के अधीन है।