हरियाणा में शिवालिक एरिया के जिलों में गेहूं की फसल पीला रतुआ (येलो रस्ट) बीमारी की चपेट में आ गई है। इसे लेकर जहां किसानों की चिंताएं बढ़ गई है, वहीं कृषि विभाग ने किसानों के लिए इसी से संबंधित एडवाइजरी भी जारी कर दी है। चूंकि ये एक वायु जनित रोग है, लिहाजा चल रही तेज हवाओं के साथ इस बीमारी के अन्य जिलों तक पहुंचने की भी पूरी आशंका है। उधर, विशेषज्ञों ने खेतों में सैंपल लेने का काम भी शुरू कर दिया है।
अभी तक गेहूं में इस बीमारी का प्रभाव शिवालिक बेल्ट के दायरे में आने वाले जिलों पंचकूला, अंबाला, यमुनानगर, कुरुक्षेत्र व करनाल के कुछ एक हिस्से में ही देखा जा रहा है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अभी ये बीमारी प्रारंभिक स्टेट पर है लेकिन चूंकि हवाओं का रुख तेज है, इसलिए इस बीमारी के आगे बढ़ने की भी आशंका है। दरअसल, ये बीमारी अचानक बदले मौसम की वजह से होती है। अत्यधिक ठंड और कई दिनों तक सूरज न निकलने के बाद जैसे ही तेज सूरज निकलता है तो ऐसा वातावरण इस बीमारी को पनपने में मददगार बनता है।
खेतों में सैंपलिंग शुरू अभी तक ये बीमारी गेहूं की डब्ल्यूएच-711 और एचडी-2967 किस्म में देखने को मिल रही है। सूचना मिलने के बाद केंद्र सरकार के गेहूं एवं जौ अनुसंधान निदेशालय करनाल से विशेषज्ञों की टीमों ने बीमारी ग्रस्त पौधे के सैंपल जुटाने शुरू कर दिया है। इसके अलावा हरियाणा कृषि विभाग की टीम भी अपने स्तर पर सैंपल जुटाकर उन्हें हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के पौधा सरंक्षण विभाग को भेज रही है, ताकि मालूम चल सके कि संबंधित किस्म में इस बीमारा का कितना असर है।
िकसान प्रतिदिन खेतों में जाए कृषि उपनिदेशक गिरीश नागपाल ने बताया कि कृषि विभाग ने किसानों को एडवाइजरी जारी कर दी है। इसके अंतर्गत किसानों को सलाह दी गई है कि वे रोजाना अपने खेतों का दौरा करें। ये एक वायु जनित रोग है। इसलिए बीमारी के लक्षण दिखते ही किसान एक लीटर पानी में एक एमएल प्रोपीकोना जोल का घोल बनाकर खेतों में इसका छिड़काव करें।
गिरीश नागपाल के अनुसार एक एकड़ खेत में 200 लीटर पानी के हिसाब से घोल तैयार करें। इस बीमारी से ग्रस्त पौधा अचानक पीला होने लगता है और उसे छूते ही हाथ में पीले रंग का फंगस पाउडर की तरह लग जाता है।