चंडीगढ : हरियाणा की पूर्व हुड्डा सरकार की नियमितीकरण नीति का दंश झेल रहे हजारों कर्मचारियों के भविष्य का फैसला अब सुप्रीम कोर्ट में होगा। प्रदेश सरकार ने इस मामले में जहां हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर ली है वहीं सरकार ने विधानसभा में बिल लाकर कर्मचारियों की सेवाओं को नियमित करने की संभावनाओं को भी अभी पूरी तरह से खारिज नहीं किया है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जाने का फैसला बृहस्पतिवार को आनन-फानन में हुई बैठक में लिया है। इस बैठक में विपक्ष व कर्मचारी संगठनों ने भी अपनी सहमति दी है।
क्या है पूरा विवाद : बीती 31 मई को हाईकोर्ट ने वर्ष 2014 में अधिसूचित रेगुलाईजेशन की सभी नीतियों को रद्द करने के आदेश दिए थे। हाईकोर्ट ने 6 माह में सभी रिक्त पदों को नियमित भर्ती से भरने और इन पदों पर कार्यरत सभी अनियमित कर्मचारियों को नौकरी से बाहर करने के भी आदेश दिए थे। हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद कर्मचारी संगठनों ने संघर्ष शुरू कर दिया और सरकार इस मुद्दे पर बीच का रास्ता निकालने में जुटी हुई है। इस विवाद को सुलझाने के लिए कर्मचारी संगठनों की मुख्यमंत्री मनोहर लाल तथा उनके प्रधान सचिव राजेश खुल्लर के साथ कई बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन किसी का भी कोई परिणाम सामने नहीं आया है।
हापुड़ में पीटकर हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट का UP सरकार को नोटिस
दो दिन में लिए दो फैसले : इस उठापटक के बीच हरियाणा के मुख्य सचिव ने बीती 27 जुलाई को एक पत्र जारी करके कर्मचारियों की चाईल्ड केयर लीव, शिशु शिक्षा भत्ता, वार्षिक वेतन बढोतरी, प्रमोशन, एलटीसी व लोन देने पर रोक लगा दी है। यह पत्र सार्वजनिक होते ही कर्मचारी संगठनों ने जहां सरकार को घेर लिया और विपक्ष भी इस मुद्दे पर आक्रामक हो गया। नए विवाद के बाद कर्मचारियों द्वारा जहां बैठकों का दौर शुरू कर दिया गया वहीं दो दिन बाद सरकार इस मुद्दे पर बैकफुट पर आ गई और आदेश वापस ले लिए।
(राजेश जैन)