चंडीगढ़ : गीता हमें संकुचन से विस्तार की ओर और सूक्ष्म से विराट की ओर ले जाती है। गीता का केवल अध्ययन, श्रवण ही नहीं उस पर मनन और उसके अनुरूप आचरण भी करना चाहिए। कृषि एवं ग्रामीण विकास मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ ने चरक्चाी दादरी में अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव का शुभारंभ करते हुए ये उद्गार व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि गीता ज्ञान, आस्था और आचरण तीनों का स्त्रोत है। जीवन में ये तीनों ही तत्व आगे बढने के लिए आवश्यक है, किंतु इनका अनुपात संतुलन में होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत पर विदेशी हमलों का बार-बार होना इस बात का द्योतक है कि हमने आक्रमणकारियों के खिलाफ एकजुटता नहीं दिखाई और लड़ने का काम कुछ विशेष वर्गों पर ही छोड़ दिया।
यदि मिलकर मुकाबला करते तो हमें गुलामी के दौर से गुजरना नहीं पड़ता। इसका अर्थ यह है कि केवल आस्था के भरोसे नहीं रह सकते, प्रयास और परिश्रम भी आवश्यक है। धनखड़ ने कहा कि गीता हमें यह सिखाती है कि पहले हम जीवन का लक्ष्य तय करें और फिर उसे प्राप्त करने के लिए पूरे मनोबल से आगे बढ़ें।
जब तक हमें अपने स्वधर्म या ध्येय का भान नहीं होगा, सही दिशा में नहीं चल पाएंगे। उन्होंने कहा कि गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को यह भी कहा कि पार्थ तू मुनि हो जा। इसका आशय यह है कि मानव के दायरे से निकलकर एक ऋषि की तरह सबके कल्याण की सोच। यह जीवन का विराट दर्शन है और किसी महापुरूष के सानिध्य में ही इसकी अनुभूति हो सकती है।
ओमप्रकाश धनखड़ ने कहा कि अब हमें दुनिया के सुधार के लिए किसी अवतार की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए, अपितु सभी को सामूहिक रूप से क्चाुद का अवतरण कर मानव हित में कार्य करना चाहिए। मात्र एक व्यक्ति से बदलाव की उम्मीद रखने की बजाय मिलकर समाज, देश और विश्व को बदलने का संकल्प लें। यही गीता का सार है।
(आहूजा)