शनि को जनमानस में एक पाप ग्रह की संज्ञा दी गई है। माहौल ऐसा क्रियेट कर दिया गया है कि शनि की दशा से बचना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है। जब कि ऐसा कुछ नहीं है। ग्रहों में शनि ही एक ऐसा ग्रह है जिसे न्यायाधीश की पदवी प्राप्त है। यदि आपने जीवन में सत्कर्म किये हैं तो आपको घबराने की आवश्यकता नहीं है। शनि के बारे में प्रसिद्ध है कि वह मनुष्य जैसे कर्म करता है उसी के अनुसार फल देता है। हालांकि यह भी संभव है कि यदि हमने पूर्व जन्म में कुछ पाप किये हों तो उसके भुगतान के स्वरूप हमें शनि कष्ट दे सकता है। लेकिन हमेशा याद रखें कि शनि कभी भी चीजों को पूरी तरह से नष्ट नहीं करता है। वह डिले कर सकता है। लेकिन अपनी दशा में कुछ न कुछ देगा अवश्य।
यह विचारणीय है कि हम कैसे पता करें कि हम शनि के कुप्रभाव में चल रहे हैं। इसके किए नीचे लिखे कुछ सूत्र देखें। यदि आपके जीवन में ऐसा कुछ हो रहा है तो निश्चित तौर पर आप पर शनि की कुदृष्टि अवश्य है।
जब जन्म कुंडली में या गोचर में शनि अशुभ फल दे रहा हो तो घोड़े की नाल या किसी पुरानी नाव के लोहे की कील से एक छल्ला बनाया जाता है। इसको शनि की लोहे की रिंग कहा जाता है। माना जाता है कि इस अंगूठी को शनिवार को मध्यमा अंगुली में पहन लेने से शनि की शान्ति होती है। इसे ही शनि का छल्ला या अंगुठी कहा जाता है। अपनी सुविधा के अनुसार आप घोड़े की नाल के लोहे से या नाव की कील से, जो भी आपके पास उपलब्ध हो उसकी अंगूठी बना कर धारण कर सकते हैं। दोनों का समान ही महत्व है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि की महादशा, अन्तर्दशा, शनि की साढ़ेसाती या शनि की ढैय्या में इसको धारण किया जाता है। शनि हमेशा स्नायु तंत्र के रोग देता है। जब शरीर में इस प्रकार की बीमारी हो तो भी छल्ला धारण करने से लाभ होता है।
शनि के छल्ले को हमेशा दाहिने हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करने की सलाह दी जाती है। इसे शनिवार को संध्या के समय धारण करना चाहिए। यदि शनिवार को शनि के नक्षत्र का योग भी बने तो और भी शुभ होता है। विशेष रूप से शनि-पुष्य को यदि अंगूठी धारण कर ली जाए तो शनि प्रसन्न होकर स्थाई संपत्ति देता है। धारण करते समय शनि महाराज के बीज मंत्र का जाप करना चाहिए।
ज्योतिर्विद् सत्यनारायण जांगिड़
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