यदि हम दीपावली के शब्दों के अनुसार देखे तो एक पंक्ति में रखें हुए दीपों को दीपावली कहा जाता है। लेकिन अक्षरों या भाषा विज्ञान की गहराई में नहीं जाएं तो दीपावली का अर्थ होता है वह दिन जब भगवान श्रीराम अपना 14 वर्ष का वनवास पूर्ण करके पुनः अयोध्या लौटे थे। आम जनता इसी अर्थ को समझती है और इसी अर्थ को अपने व्यवहार में प्रकट भी करती है। शायद 5000 वर्ष पूर्व भारत की जनसंख्या इतनी नहीं रही होगी और घी के दीपक भी केवल अयोध्या में ही जलाएं गएं होंगे। लेकिन आज श्रीराम का स्वागत करोड़ों लोग करते हैं जिनके हृदय में राम बसे हुए हैं। यही कारण है कि आज दीपावली का त्योहार समस्त भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा त्योहार कहा जा सकता है। केवल इसलिए नहीं कि यह हिन्दुओं का उत्सव है बल्कि इसलिए भी कि इस त्योहार पर बिजनेस में बड़ा उछाल आता है। जहां तक मेरी जानकारी है समस्त विश्व में शायद ही ऐसा कोई त्योहार हो जिसके तैयारी न केवल व्यक्तिगत स्तर पर बल्कि घरों की साफ सफाई और तैयारी में करीब दो माह पहले ही लोग व्यस्त हो जाते हैं। यदि आप व्यापारिक दृष्टि से देखें तो दीपावली एक आर्थिक त्योहार भी कहा जा सकता है। दीपावली के कुछ माह पूर्व ही भारत में आर्थिक गतिविधियां बहुत तीव्र गति से चलने लगती हैं। क्योंकि दीपावली के त्योहार पर लोगों में खरीदारी की एक प्राचीन परम्परा चली आ रही है। सभी भारतीय अपनी आर्थिक स्तर पर स्वर्ण और चांदी की खरीदारी से लेकर साधारण वस्त्रों या कोई घरेलु बर्तन की खरीदारी तक एक कड़ी का स्वतः ही निर्माण होता है। क्योंकि प्रत्येक भारतीय अपनी आवश्यकता और आर्थिक क्षमता के अनुसार दीपावली पर खरीदारी जरूर करता है। हिन्दुओं के अलावा जैन, सिख और मुस्लिम भी दीपावली के आर्थिक पक्ष का पूरा लाभ लेते हैं। चूंकि दीपावली पर सभी कंपनियां ऑफर, डिस्काउंट या गिफ्ट आदि की अनेक योजनाएं चलाते हैं जिसका लाभ सभी भारतीयों को समान रूप से प्राप्त होता है। भारत में हजारों-लाखों ऐसे बिजनेस प्लेस हैं जो कि दीपावली पर आधारित हैं। ये बिजनेस दीपावली से कुछ माह पूर्व आरम्भ होते हैं और दीपावली पर्व के समापन के साथ ही बंद भी हो जाते हैं। इतनी छोटी समयावधि में ये बिजनेस अपने पूरे साल की धन अर्जित कर लेते हैं। इस लिए दीपावली को शॉपिंग सीजन कहा जाता है।
वास्तव में दीपावली के पर्व को एक ही त्योहार नहीं कहना चाहिए। दरअसल यह पर्वों का समूह है जो लगातार दशहरे से लेकर भैया दूज तक चलता है। दशहरा, धनत्रयोदशी, छोटी दीपावली, दीपावली, गोवर्धन पूजा और भैया दूज जैसे पर्व लगातार मनाए जाते हैं।
सामान्यतः दीपावली के त्यौहार की शुरुआत दशहरे से होती है। दशहरे का त्योहार आश्विन मास की दशमी को मनाया जाता है। मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने रावण वध इसी दिन किया था। यही कारण है कि सभी रामलीलाओं का समापन भी दशहरे के दिन ही होता है। हालांकि दशहरे का महत्व रावण वध के अलावा भी बहुत सी घटनाओ से जुड़ा हुआ है जैसे जिन देवी-देवताओं की प्रतिमाओं की नवरात्रा में पूजा की जाती है उन्हें दशहरे के दिन समीप की नदियों या समुद्र में विसर्जित किया जाता है। विसर्जन से पूर्व एक जुलूस के रूप में प्रतिमाओं को ले जाया जाता है। विभिन्न वाद्य यंत्रों की गूंज के साथ धार्मिक उल्लास के साथ इस जुलूस में बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं। वास्तव में दशहरे के साथ ही पटाखे फोड़ने का आगाज हो जाता है। वर्तमान में रावण का जो पुतला बनाया जाता है उसमें बड़ी मात्रा में पटाखों को रखा जाता है जिससे रावण दहन के कार्यक्रम में उत्साह और उमंग का संचार हो सके। शस्त्र पूजा भी विजयदशमी या दशहरे को की जाती है।
धन त्रयोदशी का त्योहार दीपावली से दो दिन पहले आता है। इस साल धनतेरस या श्री धन्वन्तरि जयंती का त्योहार 29 अक्टूबर को मनाया जायेगा। इस दिन खरीदारी का बहुत महत्व है। सभी लोग अपनी क्षमताओं के आधार पर खरीदारी करते हैं। आमतौर पर सोने या चांदी की खरीदारी को शुभ माना जाता है। यदि आपकी आर्थिक स्थिति बेहतर हो तो चांदी से बनी हुई श्री लक्ष्मी गणेश की प्रतिमा अवश्य खरीदनी चाहिए। यदि अपने बजट के अनुसार खरीदारी करना चाहते हैं तो कोई बर्तन अवश्य खरीदें और उसे खरीद कर रखने की बजाए दीपावली के दिनों में इसका प्रयोग भी करना चाहिए। धनतेरस के दिन वाहन खरीदना, दुकान या किसी भी फैक्ट्री या बिजनेस प्लेस का श्रीगणेश करना भी शुभ माना जाता है। गृहारम्भ और गृह प्रवेश का मुहूर्त भी धनतेरस के दिन किया जाना विशेष शुभ फलदायी होता है।
घर या बिजनेस प्लेस में पड़ा हुआ कबाड़ श्रीलक्ष्मी की बहन और दरिद्रता की देवी अलक्ष्मी का प्रतीक है। जो दुःख और क्लेश को देने वाली है। इसलिए दीपावली से कम से कम 10 दिन पूर्व ही जो भी कबाड़ या भंगार इकट्ठा है उसे बेच देना चाहिए। कबाड़ से घर की उत्तर दिशा को बचा कर रखना चाहिए। यदि आपका कबाड़ उत्तर दिशा में बने किसी रूम में रखा है और आप किन्हीं अपरिहार्य कारणों से उसे बेच पाने में सक्षम नहीं है तो उसे उत्तर दिशा से हटा देना चाहिए। क्योंकि उत्तर दिशा कुबेर की दिशा है जो देवताओं के खंजाची हैं। उत्तर दिशा में पड़ा हुआ कबाड़ को उसी तरह से ब्लॉक कर देता है जिस तरह से अग्नि कोण में बना हुआ अण्डरग्रांउड वॉटर टैंक करता है।
त्योहारों के इस क्रम में दीपावली से पहले छोटी दीपावली का त्योहार मनाया जाता है। कुछ राज्यों में इसे कानी दीपावली भी कहते हैं। इस वर्ष 2024 में छोटी दीपावली का त्योहार 31 अक्टूबर को मनाया जायेगा।
दीपावली प्रत्येक विक्रम संवत् के कार्तिक मास की अमावस्या को मनाई जाती है। इस वर्ष कार्तिक अमावस्या विक्रम संवत् 2081, तद्नुसार अंग्रेजी दिनांक 1 नवम्बर 2024, शुक्रवार को है। माना जाता है कि कार्तिक अमावस्या का गोधुली बेला में आना आवश्यक होता है। यह योग 1 नवम्बर को बन रहा है इसलिए दीपावली का त्योहार भी 1 नवम्बर को ही मनाया जाना शास्त्र सम्मत है।
वैसे तो श्री महालक्ष्मी के पूजा का मुहूर्त सभी शहरों में अलग-अलग होता है। इसलिए बेहतर तरीका तो यह है कि आप अपने स्थानीय ज्योतिषी से इस संबंध में जानकारी प्राप्त करें। मैं यहां जो मुहूर्त दे रहा हूं वह राजधानी क्षेत्र या कुछ हद तक उत्तर भारत में मान्य किये जा सकते हैं। गोधूलि और प्रदोष काल की स्थूल गणना के अनुसार सायं 5 बजकर 52 मिनट से रात्रि 8 बजकर 15 मिनट का समय सामान्य शुभ समय है। यदि हम और सूक्ष्मता से ज्ञात करें तो लग्न शुद्धि के आधार पर श्री महालक्ष्मी की पूजा में हमेशा स्थिर लग्न का प्रयोग किया जाता है। वृषभ, सिंह और मकर लग्न स्थिर लग्न है। कार्तिक मास में संध्या के समय वृषभ लग्न रहता है। 1 नवम्बर को वृषभ लग्न दिल्ली में सायं रात्रि 6 बजकर 20 मिनट से 8 बजकर 18 मिनट तक रहेगा। दिल्ली में 1 नवम्बर को सूर्यास्त 5 बजकर 36 मिनट पर होगा। इस आधार पर प्रदोष काल 7 बजकर 6 मिनट तक रहेगा। हालांकि अमावस्या तिथि की समाप्ति रात्रि 6 बजकर 16 मिनट पर हो जायेगी लेकिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक जो तिथि होती है वही तिथि अहोरात्र मानी जाती है। इसलिए 6 बजकर 20 मिनट से 7 बजकर 5 मिनट तक का समय श्री महालक्ष्मी पूजा का सबसे श्रेष्ठ मुहूर्त है।
दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। जिसमें घर के बाहर गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की रचना करके उसकी पूजा की जाती है और प्रसाद लगाया जाता है। गोवर्धन पूजा अंग्रेजी दिनांक 2 नवम्बर को है।
कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भैया द्वितीया या भाई दूज कहा जाता है। इस लिए बहन अपने भाइयों को भोजन करवा कर उनका तिलक करती है। इस तिथि को श्री विश्वकर्मा पूजा का भी विधान है। इसके अलावा भैया दूज को यम द्वितीया भी कहा जाता है।
Astrologer Satyanarayan Jangid
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