सिंघाना : व्यापारिक दृष्टि से जिले के चिड़ावा के बाद दूसरा बड़ा कस्बा होने के बावजूद आज भी सिंघाना मुलभूत सुविधाओं को तरस रहा है। आबादी के हिसाब से कस्बा नगरपालिका बनने की सारे नियम पुरे करता है लेकिन जनप्रतिनिधियों ने वोट बैंक की राजनीति करके कस्बे को चार पंचायतों में बांट रखा है जिसके चलते आज भी कस्बे की जनता मुलभूत सुविधाओं के लिए तरस रही है। करीब 15 से 20 हजार की आबादी समेटे कस्बे को पंचायत के हिसाब से माकड़ों मोड से लेकर नारनौल सर्किल व बाजार में खानपुर मोड तक का एरिया माकड़ों पंचायत में पड़ता है। खानपुर रोड से पोस्ट ऑफिस व पिठोला मौहल्ला जो मैन बाजार में है वो गुजरवास पंचायत में पड़ता है।
उससे आगे चलो नारनौल सड़क जो कस्बे के बीचों-बीच गुजरती है उससे आगे का एरिया नव-निर्मित पंचायत ढाणा में शामिल कर दिया गया जिससे पंचायतों के फेर में फंसकर ना तो कोई विकास कार्य होता है और ना ही ग्रामीणों को कोई सुविधाएं मिल पाती है। ग्रामीणों ने कई बार कस्बे को नगरपालिका बनाने की मांग उठाई है। सिंघाना में आयोजित रात्रि चौपाल के दौरान तत्कालीन जिला कलेक्टर एसएस सोहता ने भी ग्रामीणों की समस्याओं को देखते हुए कस्बे को नगरपालिका बनाने की बात कही थी और प्रपोजल बनाकर भी भेजा गया था।
दो पुलिस थानों के बीच भटकते ग्रामीण: क्राइम के हिसाब से भी कस्बे को दो भागों में बांटकर ग्रामीणों की मुसीबतें बढ़ा रखी है। मैन बाजार में स्थित सिंघाना थाने से सौ मीटर की दूरी पर स्थित राज अस्पताल से लेकर नारनौल सर्किल,चिड़ावा बाईपास व हरिदास मार्केट खेतड़ीनगर थाने में पड़ता है जिससे थाने से सौ मीटर की दूरी पर भी कोई वारदात हो जाती है तो पीडि़तों को रिपोर्ट लिखवाने के लिए तीन किलोमीटर दूर खेतड़ीनगर थाने में जाना पड़ता है। जब तक रिपोर्ट की कार्रवाई पुरी हो और पुलिस हरकत में आए तब तक अपराधी पुलिस पकड़ से कोसों दूर जा चुका होता है। इसके लिए कई बार ग्रामीणों ने सीएलजी की बैठक में भी मुद्दा उठाया है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।
स्थाई बस स्टैंड नहीं: कस्बा दो प्रमुख राजमार्गों से जुड़ा होने के बावजूद भी कोई स्थाई बस स्टैंड नहीं होने से यात्रियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। दिल्ली से झुंझुनूं और सिंघाना से जयपुर जाने वाले दो प्रमुख राजमार्ग होने से दिनभर लम्बी दूरी की बसों का आवागमन होता है लेकिन बसें नारनौल सर्किल पर सड़क किनारे खड़ी होकर सवारियां भरती है जिसके चलते हर समय दुर्घटना होने का अंदेशा बना रहता है। ग्रामीणों की मांग के बावजूद काफी दिनों बाद सिंघाना को उप तहसील का दर्जा दिया गया लेकिन उप तहसील कार्यालय भी माकड़ों पंचायत में बना दिया जिससे ग्रामीण काम करवाने के लिए करीब दो किमी चलकर जाते है।
कस्बा रह चुका है नगरपालिका: राजनीतिक कारणों के चलते राजनेताओं ने अपने वोट बैंक के खातिर कस्बे को कई भागों में बांट रखा है नहीं तो कस्बा नगरपालिका बन सकता है। नगरपालिका बनने के बाद जनता को मुलभूत सुविधाओं से मरहुम नहीं रहना पड़ेगा।
पहले भी कस्बा नगरपालिका रह चुका है। ग्रामीण निरंजन लाल शर्मा ने बताया कि पंचायतीराज शुरू होने से पहले कस्बा नगरपालिका था जिसका सबूत उन्होंने सन् 1951 में म्यूनिसिपल बोर्ड सिंघाना का जारी किया हुआ राशन कार्ड दिखाया। उसके बाद पंचायतीराज बनने के बाद कस्बे को ग्राम पंचायत बनाया गया।
– कृष्ण कुमार गांधी