भोपाल: मध्यप्रदेश के जावरा में एक ऐसी जगह है जहां एक रूहानी ताकत के आगे भूत-प्रेत हाजरी भरते है। भूत प्रेत की बाधा से पीडि़त लोग हुसैन टेकरी आकर गंदे पानी के नाले में नहाते हैं और फिर कीचड़ लपेटकर कब्र में लेट जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे भूत प्रेत भाग जाते हैं। घुटी-घुटी चीखें, हर तरफ सिसकियों की आवाज, रोना-चीखना-चिल्लाना, यह भयावह मंजर है जावरा की हुसैन टैकरी का।
कई लोगों ने मुझे बताया कि मध्यप्रदेश का जावरा शहर भूत प्रेत भगाने का सबसे बड़ा गढ़ है, जहां आकर लोग गंदे नालों में पड़े रहते हैं, जंजीरों में बंधे रहते हैं। सोचा, क्यों न सबसे पहले जायजा लिया जाए इस टेकरी का, जहां भूत-प्रेत भगाने के नाम पर लोगों को मल मूत्र पिलाया जाता है। मैं हुसैन टेकरी पहुंचा।
टेकरी का मुख्य द्वार आया ही था कि मुझे पागलों की तरह झूमती प्रेत आत्माओं से बंधित 3 औरतें मिलीं। नूरजहां, देवकी और रानी नामक ये औरतें लगातार अरे बाबा रे कहते हुए अजीब-अजीब आवाजें निकाल रही थीं। इनकी चीखें सुन अच्छे-अच्छों की घिग्घी बंध जाना स्वाभाविक था। इनके बारे में जानने के लिए मैंने इनके साथ आए लोगों से बातचीत की। नूरजहां के पति ने बताया कि पिछले कई दिनों से नूरजहां का व्यवहार बदल गया था। वह पागलों की तरह हरकतें करती थी। बहुत इलाज कराया, लेकिन वह ठीक नहीं हो पाई।
हारकर तांत्रिक और बाबाओं के पास पहुंचा, जहां गांव के मौलवी ने बताया कि नूरजहां पर पिशाच और डायन का साया है, उसे हुसैन टेकरी ले जाओ। उसके पति ने बताया कि मैं 3 महीने पहले उसे यहां लेकर आया हूं। यहां धागा बांधते ही नूरजहां को हाजिरी (कथित तौर पर उसके अंदर की बला बात करने लगी) आने लगी है। ( नूरजहां ने अजीब तरह से चीखना-चिल्लाना शुरू कर दिया)। हमें लगता है कि यहां पांच जुम्मे बिताने के बाद वह ठीक हो जाएगी। इनसे बातचीत कर मैं हजरत इमाम हुसैन के रोजे में दाखिल हुआ। वहां का मंजर देख मैं भौंचक रह गया। हर तरफ औरतें चीख-चिल्ला रही थीं, अपना सिर पटक रही थीं, धूप से तपते फर्श पर लोट लगा रही थीं, बेडिय़ों से जकड़े आदमी सिसक रहे थे।
क्या यहां ऐसा ही होता है? बात की तह तक पहुंचने के लिए मैंने टेकरी के सैकड़ों लोगों से बात की, जिसका वीडियो भी मेरे पास है। लोगों ने बताया कि भूत, प्रेत और पिशाच जैसी बाधाओं से मुक्त होने के लिए यह स्थान बहुत महत्वपूर्ण है। यहां आने से लोग ठीक होते हैं। डॉक्टरों की दवाइयां जब काम करना बंद कर देती है तो इस मौला, ख्वाजा की दवाई लोगों के लिए दुआ के रूप में फरिश्ता बनकर आती है। यहां के लोगों ने बताया कि किसी भी तरह की प्रेत बाधा से पीडि़त व्यक्ति को यहां के पानी से नहलाया जाता है। उसके बाद वह एक धागा यहां बनी जालियों पर बांधता है और दूसरा अपने गले में। कहते हैं, यह धागा बांधने के कुछ समय बाद पीडि़त लोग झूमने लगते हैं। ऐसे लोगों को यहां पास गंदे पानी के तालाब में नहाने की हिदायत दी जाती है।
यह सुनकर मेरे कदम खुद-ब-खुद तालाब की तरफ उठ गए। तालाब का मंजर देख मेरी रूह कांप गई। तालाब के नाम पर यहां गंदे पानी का नाला था, जिसमें यहां बनी सराय का मल-मूत्र लगातार आकर मिल रहा था। मानसिक रोगियों की तरह नजर आने वाले ये लोग लगातार इस पानी में नहा रहे थे, कुछ तो कुल्ला तक कर रहे थे। कुछ लोग इस पानी को पी रहे थे, जिसमें मल मूत्र था।
खुदा जाने इस गंदगी में नहाने से ये लोग ठीक होंगे या बीमार, लेकिन यह सोचने का वक्त किसके पास है। मैंने गंदे पानी में खेल रही एक बच्ची रुबीना से पूछा बेटा आपको क्या तकलीफ है, आप यहां क्यों नहा रही हो? बच्ची ने मासूमियत से जवाब दिया मेरी मां पर एक पिशाचनी और डायन का साया है। मां का असर मुझे भी आ जाएगा, इसलिए नहाती हूं। इतना कहकर बच्ची नाले में कूद गई। फिर मैं रुबीना की मां से मुखातिब हुआ। मैंने पूछा, रुबीना बीमार पड़ गई तो, मां ने जवाब दिया पिछले चार सालों से तो नहीं पड़ी। चार साल? मुझे यह शब्द हथौड़े की तरह लगे। मैं आश्चर्यचकित हो गया कि 4 साल से यहां पर है। उसने कहा कि बाबा का हुक्म है और जब तक वह यहां से रुखसत नहीं करते हम नहीं जा सकते।
तभी पता चला कि दोपहर का पहला लोबान होने वाला है। यह सुनते ही सभी लोगों ने रोजे की तरफ दौड़ लगा दी। रोजा लोगों से ठसाठस भरा था। हर तरफ ऐसे लोग, जिन पर ऊपरी हवा या जादू-टोने का असर था, झूम रहे थे। अजीबोगरीब आवाजें निकाल रहे थे। तभी लोबान शुरू हुआ। लोबान का धुआं लेते ही झूमते हुए लोग एकाएक गिरने लगे। यहां उपस्थित लोगों ने मुझे बताया कि ऐसे ही इन लोगों का इलाज होता है।
ऊपरी हवा से पीडि़त लोगों को सुबह-शाम लोबान लेना बेहद जरूरी है। इलाज की इस अजीबोगरीब प्रकिया को जानने के बाद मैंने यहां के मुतवल्ली पहले रोजे के नवाब अली से मुलाकात की। नवाब साहब का कहना था कि हमारे यहां कोई मौलवी, तांत्रिक या पुजारी नहीं हैं। जो कुछ भी होता है, हुसैन साहब की रज़ा से होता है। गंदे पानी से गुसल करने, लोगों को जंजीर से बांधने को वो खुदा की ओर से गंदी हवाओं को मिलने वाली सजा बताते हैं। कहते हैं इससें आम इनसान को कोई तकलीफ नहीं होती, सिर्फ गंदी ताकतों को तकलीफ होती है।
टेकरी पर पूरा दिन बिताने के बाद मैंने महसूस किया कि यहां आने वाले रोगियों में से अस्सी प्रतिशत महिलाएं हैं और ये सभी निम्न वर्ग से संबंधित हैं। वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो ऊंची तालीमयाफ्ता होने के बाद भी मानते हैं कि उन पर जादू-टोना किया गया है, बदरूहों का साया है।एक तरफ कोने में एक शिक्षित युवक असलम मुझे दिखाई दिया, जो ऑस्ट्रेलिया में पढ़ाई करते हैं, लेकिन जादू-टोने के कारण लंबे समय से यहां की सराय में रह रहे हैं। वे दिन-रात रोजों में दुआ मांगते और हुसैन साहब का मातम मनाते हैं। इनका मानना है कि यहां आने के बाद रूहानी सुकून मिलता है।