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डॉ. राजेंद्र प्रसाद की 137वीं जयंती आज, जानें देश के प्रथम राष्ट्रपति से जुड़ी कई बातें

संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले राजेंद्र प्रसाद बचपन से ही बहुप्रतिभा के धनी थे। उनकी मां उन्हें बचपन से हर सुबह भजन तथा रामायण सुनाया करती थीं।

स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की आज 137वीं जयंती है। उनका जन्म तीन दिसंबर, 1884 को बिहार में हुआ था। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि वह एक अनूठी प्रतिभा थे, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में विशिष्ट योगदान दिया।
संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले प्रसाद बचपन से ही बहुप्रतिभा के धनी थे। उनकी मां उन्हें बचपन से हर सुबह भजन तथा रामायण सुनाया करती थीं। इसका प्रभाव उनके जीवन पर काफी पड़ा। राजेंद्र प्रसाद कभी भी अपनी गलती का भान होने पर माफ़ी मांगने से पीछे नहीं हटते थे।
हिन्दी के अलावा अन्य कई भाषाओं का था ज्ञान
राजेंद्र प्रसाद की प्रारंभिक शिक्षा छपरा (‍बिहार) के जिला स्कूल से हुई थीं। उन्होंने महज 18 वर्ष की उम्र में कोलकाता विश्वविद्यालय की प्रथम स्थान से पास की और फिर कोलकाता के सिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लेकर लॉ के क्षेत्र में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की। राजेंद्र प्रसाद हिन्दी के अलावा अंग्रेजी, उर्दू, बंगाली एवं फारसी भाषा से पूरी तरह परिचित थे।
13 साल की उम्र में शादी के बंधन में बंधे थे राजेंद्र प्रसाद
देश के प्रथम राष्ट्रपति का बाल विवाह हुआ था। उनकी महज 13 साल की उम्र में राजवंशीदेवी से शादी कर दी गई थी। उनका वैवाहिक जीवन सुखी रहा है। शादी से उनके अध्ययन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उन्होंने एक वकील के रूप में अपने करियर की शुरुआत की और इसके बाद वह स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए।
जीवन पर्यन्त महात्मा गांधी के पदचिन्हों पर किया राष्ट्रोत्थान
1930 में शुरू हुए नमक सत्याग्रह आंदोलन में डॉ. राजेंद्र एक आक्रामक कार्यकर्ता के रूप में नजर आए।  उन्होंने स्वतंत्रता के आन्दोलन में अपने आप को अर्पण कर दिया था और वे जीवन पर्यन्त महात्मा गांधी के पदचिन्हों पर राष्ट्रोत्थान के लिए लगे रहे। 
उनके नेतृत्व में असहयोग आंदोलन काफी सफल रहा। इसके लिए उन्होंने पूरे प्रान्त का दौरा किया और बैठकों को सम्बोधित किया। जिससे जनता में जागृति आई। आज हमको एक ऐसे भारतवर्ष के निर्माण में सहयोग देना है, जहां पर सभी को उन्नति का समान अवसर मिले, गरीब व अमीर में कोई भेद भाव न हो, कोई अशिक्षित न रहे और न ही कोई भूखा मरे। हमारे देश में एकता का स्वर गूंजे और भाईचारे को बढ़ावा मिले।
 इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर हमें अपने देश की रक्षा करनी है जो कि हम स्वर्गीय राजेन्द्र प्रसाद द्वारा किए गए त्याग एवं बलिदान की प्रेरणा से प्राप्त कर सकते हैं।राजेन्द्र बाबू का जीवन एक राजनीतिक संत के जीवन जैसा था। उनका कोई शत्रु नहीं था, सब उनके मित्र थे।
बेहद सादगी भरा था जीवन
भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का नाम महान देशभक्त, सादगी, सेवा, त्याग और स्वतंत्रता आंदोलन में में अपने आपको पूरी तरह समर्पित करनेवाले महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी के रूप में लिया जाता है। राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति भवन में जब 12 वर्षों तक प्रथम राष्ट्रपति के तौर पर रहे थे, तो इस दौरान यह आलीशान इमारत सादगी की मूरत बन चुका था। 
आंगन में तुलसी, द्वार पर रंगोली, भवन में आरती और दीपमाला, इसके अलावा सादा जीवन-सादा भोजन। प्रथम राष्ट्रपति के साथ देश की प्रथम महिला नागरिक की जिम्मेदारी निभाने वाली राजवंशी देवी ने भी कभी अपने पद और मान पर रत्ती भर का अहंकार नहीं किया। राष्ट्रपति भवन में जब कभी विदेशी अतिथि आते तो उनके स्वागत में उनकी आरती की जाती थी और राजेंद्र बाबू चाहते थे कि विदेशी मेहमानों को भारत की संस्कृति की झलक दिखाई जाए।

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