रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 1971 युद्ध में भारत की जीत के 50 साल पूरे होने पर ‘वॉल ऑफ फेम-1971 इंडो पाक वॉर’ का उद्घाटन किया और ‘स्वर्णिम विजय पर्व’ के उद्घाटन समारोह में सैन्य उपकरणों के प्रदर्शन का जायज़ा लिया। 1971 के युद्ध के दौरान इस्तेमाल किए गए प्रमुख हथियारों और उपकरणों को प्रमुख लड़ाइयों के अंशों के साथ प्रदर्शित किया गया।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने संबोधन सीडीएस बिपिन रावत को याद करते हुए कहा, जनरल बिपिन रावत,उनकी पत्नी तथा 11 बहादुर जवानों के असामयिक निधन के बाद इस पर्व को सादगी के साथ मनाने का निर्णय लिया गया। मैं सभी को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
रक्षा मंत्री ने की ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह के जल्द स्वस्थ होने की कामना
उन्होंने कहा, ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह का इलाज कमांड अस्पताल में चल रहा है। मेरा संपर्क लगातार अस्तपाल और उनके पिताजी से बना हुआ है, हम सभी प्रार्थना करते हैं कि वो जल्दी स्वस्थ होकर अपने दायित्व का निर्वहन करे।
पाकिस्तान को रक्षामंत्री राजनाथ की दो टूक
समारोह संबोधन में पाकिस्तान को दो टूक जवाब देते हुए रक्षा मंत्री ने कहा कि पाकिस्तान भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देना चाहता है। 1971 में भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान की योजनाओं को विफल कर दिया और अब हम आतंकवाद को जड़ से खत्म करने की दिशा में काम कर रहे हैं।
राजनाथ सिंह ने कहा, मैं आज भारतीय सेना के उन सभी सैनिकों के बलिदान को नमन करता हूं जिनकी वजह से 1971 के युद्ध में भारत ने विजय हासिल की थी। भारत ने बांग्लादेश में लोकतंत्र की स्थापना में योगदान दिया है। आज हम बहुत खुश हैं कि पिछले 50 वर्षों में बांग्लादेश विकास के पथ पर आगे बढ़ा है।
क्यों हुआ था 1971 युद्ध?
पाकिस्तान में हुए पहले आम चुनाव के नतीजे 7 दिसंबर 1970 को घोषित हुए थे और अवामी लीग को बहुमत मिला था लेकिन इस जनादेश को लागू नहीं किया गया। इसके बाद पूरे देश में बांग्ला राष्ट्रवादी स्वतंत्रता आंदोलन मार्च 1971 से शुरू हो गया था। इसके नेता शेख मुजीबुर्रहमान ने ‘अहिंसक असहयोग आंदोलन’ का आह्वान किया था मगर गैर-बंगाली उर्दू भाषी बिहारी मुसलमानों के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा हुई और पूर्वी पाकिस्तान सूबे का प्रशासन ठप हो गया।
पश्चिम पाकिस्तान के वर्चस्व वाली सरकार ने कानून का शासन बहाल करने और चुनावी जनादेश को लागू करने की जगह बंगालियों को सबक सिखाने का फैसला किया। 25/26 मार्च 1971 की रात से ‘ऑपरेशन सर्चलाइट’ के नाम से बर्बर नरसंहार शुरू कर दिया, जो 14 दिसंबर 1971 तक चला।
अवामी लीग के कार्यकर्ताओं/समर्थकों, बुद्धिजीवियों, सेना/अर्द्धसैनिक बलों के बंगाली जवानों और हिंदू आबादी को निशाना बनाया गया। जातीय और धार्मिक आधार पर सफाए के इस नरसंहार ने ऐसे हालात पैदा कर दिए कि पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गए।