दिल्ली से चंडीगढ़ का सफर करते हुए नेशनल हाईवे 44 (NH-44) पर करीब 300 रुपए का टोल टैक्स लगता है लेकिन, किसान आंदोलन के कारण पिछले आठ महीनों से ये टोल टैक्स नहीं लिया जा रहा है। ऐसे में केंद्र सरकार के लिए राजस्व घाटा लगातार बढ़ रहा है।
केंद्र सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि टोल टैक्स न देने के कारण सरकार को 2,000 करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है। पंजाब और हरियाणा में लगभग 50 टोल प्लाजा छह से आठ महीने से बंद हैं। रोजाना पांच करोड़ रुपए से अधिक का घाटा हो रहा है। केंद्रीय अधिकारी ने कहा कि एक बार में इतने सारे टोल प्लाजा बंद होने की यह शायद सबसे लंबी अवधि है।
पानीपत टोल प्लाजा पर आंदोलन का हिस्सा किसान सतनाम सिंह का कहना है कि हम लोगों को नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं। लोग मुफ्त में आवाजाही कर रहे हैं। लोग हमारे प्रति कृतज्ञ भी हैं क्योंकि उनके टोल के पैसे तब बच रहे हैं जब ईंधन के दाम 100 से ऊपर पहुंच गए है। आम पब्लिक में से कोई भी शिकायत नहीं कर रहा है। हम सरकार को नुकसान पहुंचा रहे हैं जो बीते आठ महीने से हमारी मांगें नहीं स्वीकार कर रही है।
बीते मार्च महीने में केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने संसद में कहा था कि 16 मार्च तक पंजाब में 427 करोड़ और हरियाणा में 326 करोड़ का नुकसान हो चुका है। वहीं 2 जुलाई को नेशनल हाईवे अथॉरिटी ने कहा है कि टोल प्लाजा ऑपरेटर अपने नुकसान की भरपाई के लिए क्लेम कर सकते है। माना जा रहा है कि जितने दिनों तक आंदोलन की वजह से टोल प्लाजा बंद रहेंगे उतने दिनों तक कॉन्ट्रैक्ट बढ़ा दिया जाएगा।
टोल प्लाजा पर शुल्क वसूली बहाल करने के लिए पंजाब और हरियाणा सरकारों से केंद्र की अपील अब तक विफल रही है। राज्यों का कहना है कि इस तरह के कदम से किसानों को हटाने के दौरान कानून और व्यवस्था की परेशानी का खतरा होता है। केंद्र के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने खेद व्यक्त करते हुए कहा कि यह इन दोनों राज्यों ने किसानों की गैरकानूनी हरकतों के आगे घुटने टेक दिए हैं।
किसानों ने यहां तंबू, कुर्सियां, पंखे, कूलर और खाना पकाने के उपकरण लगाए हैं। एक कार लेन के ठीक बीच में बैठे किसानों के एक समूह ने बताया कि उन्होंने 26 नवंबर को इस टोल प्लाजा को बंद कर दिया था. पंजाब के कुछ टोल प्लाजा पर अब किसानों द्वारा खुद को गर्मी से बचाने के लिए कंक्रीट के ढांचे बनाए जाने की भी खबरें हैं। पानीपत टोल प्लाजा पर बैठे कुछ किसानों ने कहा कि वे अब सिंघू सीमा पर जाने की तैयारी कर रहे हैं क्योंकि उन्हें पता था कि 19 जुलाई को मानसून सत्र शुरू होने पर संसद के बाहर धरने पर किसानों की योजना है।