मंगलवार को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण वित्त वर्ष 2022-23 के लिए लोकसभा में आम बजट पेश किया। जिसपर देश के 60 फीसदी लोगों का मानना है कि इस बार का बजट मासिक खर्चे को बढ़ाने वाला है। वोटर के बजट पश्चात सर्वेक्षण में शामिल 60 प्रतिशत लोग बजट के कारण मासिक खर्चा बढ़ने की बात कही जबकि 25.5 प्रतिशत लोगों का कहना था कि इससे उनकी बचत बढ़ेगी और 9.8 प्रतिशत का कहना था कि इससे मासिक व्यय में कोई बदलाव नहीं होगा।
सर्वेक्षण में शामिल करीब 44.1 प्रतिशत प्रतिभागियों ने कहा कि बजट के कारण अगले एक साल में उनके जीवन की गुणवत्ता घटेगी, 39.7 प्रतिशत ने कहा कि जीवन की गुणवत्ता बढ़ेगी जबकि 12.4 प्रतिशत ने कोई बदलाव न होने की बात की। गत साल सर्वेक्षण में शामिल हुए करीब 46.6 प्रतिशत प्रतिभागियों ने बजट के कारण बीते एक साल में उनके जीवन की गुणवत्ता घटी, 24.5 प्रतिशत ने कहा कि जीवन की गुणवत्ता बढ़ी जबकि 25.5 प्रतिशत ने कोई बदलाव न होने की बात की।
बजट के बाद वस्तुओं के दाम घटने यानी महंगाई कम होगी या नहीं, इस सबंध में पूछे गये सवाल पर 44.1 प्रतिशत प्रतिभागियों ने कहा कि इसके कारण वस्तुओं के दाम नहीं घटेंगे , 26.7 प्रतिशत ने कहा कि महंगाई में थोड़ी कमी आ सकती है जबकि 22.6 प्रतिशत ने दामों में भारी कमी आने की बात की। यह सर्वेक्षण लोकसभा में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा बजट पेश किये जाने के तत्काल बाद किया गया। सर्वेक्षण के दौरान अलग-अलग स्थानों पर रहने वाले करीब 1,200 लोगों से सवाल पूछे गये।
केंद्रीय बजट में आयकर के स्लैब में कोई बदलाव नहंी किया और किसी प्रकार की राहत नहीं दी गयी जिससे कोरोना संकट के कारण परेशानी का सामना करने वाले मध्यम वर्ग के लिए यह निराशाजनक बजट रहा। बजट में निजी उपभोग क्षमता को बढ़ाये जाने के उपाय भी सीमित थे। आयकर में राहत और मनरेगा के आवंटन में बढ़ोतरी से उपभोग क्षमता पर तत्काल सकारात्मक प्रभाव पड़ता।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनावी दबाव में आते नहीं दिखे क्योंकि बजट में इस बार क्षेत्रीयता को ध्यान में रखकर या बजट को लोकलुभावन बनाने के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है। इस माह देश के पांच राज्यों में चुनाव होने हैं लेकिन फिर भी वित्त मंत्री आर्थिक पहलू पर ही जोर देती दिखीं। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में विधानसभा चुनाव होने के बावजूद उसके लिए कोई लोकलुभावन घोषणा नहीं की गयी।