प्रदर्शनकारी किसानों के साथ अगले दौर की वार्ता आठ जनवरी को होनी है जबकि सरकार कानूनों का समर्थन करने वाले विभिन्न किसान समूहों के साथ बैठक कर रही है। तोमर ने कहा, " मुझे विश्वास है कि विरोध करने वाले संगठन भी कृषि सुधार कानूनों के पीछे की भावनाओं को समझेंगे और किसानों के हितों पर ध्यान केंद्रित करेंगे और रचनात्मक बातचीत के माध्यम से समाधान तक पहुंचने में निश्चित रूप से हमारी मदद करेंगे।"
इससे पहले दिन में मंत्री ने पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नाती संजय नाथ सिंह की अगुवाई वाले ऑल इंडिया फार्मर्स एसोसिएशन (एआईएफए) के सदस्यों से मुलाकात की थी। इस संगठन ने नए कृषि कानूनों के समर्थन में सरकार को एक ज्ञापन सौंपा था। समूह ने प्रदर्शनकारी किसान संघों और सरकार के बीच चल रही बातचीत को लेकर कुछ सुझाव भी दिए हैं।
एआईएफए ने सुझाव दिया है कि कृषि संबंधी अनुबंधों पर नजर रखने के लिए एक स्वतंत्र नियामक निकाय स्थापित किया जाए। साथ में कृषि उपज की खरीद और बिक्री कीमत पर नजर रखने के लिए मूल्य नियामक प्राधिकरण गठित हो और अनुबंध पर खेती को लेकर एक प्रारूप बनाया जाए।
बैठक में तोमर ने छोटे और हाशिये के किसानों के लिए नए कानूनों के फायदे गिनाए। साथ में भी यह बताया कि किसान उपज संगठनों (एफपीओ) और 'फार्म-गेट' बुनियादी ढांचे को स्थापित करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं जिस पर एक लाख करोड़ रुपये का खर्च आएगा।
उधर, प्रदर्शनकारी किसानों ने अपनी प्रमुख मांगे नहीं माने जाने पर आंदोलन तेज करने की धमकी दी है। उनकी प्रमुख मांगों में तीनों कानूनों को निरस्त करना और एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी शामिल है। इस बीच उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह कृषि कानूनों को चुनौती देने वाली और दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन के संबंध में दायर याचिकाओं पर 11 जनवरी को सुनवाई करेगा।