पर्यटन के क्षेत्र में भारतीय संस्कृति की पुरानी परंपराओं को रेखांकित करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आज कहा कि भारत में पर्यटन को रोजगारोन्मुखी बनाने के लिये समाज के हर तबके को जोड़ा जाना चाहिए। राष्ट्रपति ने विश्व पर्यटन दिवस पर पुरस्कार प्रदान करने के बाद अपने संबोधन में कहा, भारत में 65 प्रतिशत युवा आबादी 35 वर्ष से कम आयु की है। हमें इस युवा आबादी का लाभ लेना है। युवाओं की कुशलता और प्रतिबद्धता के बल पर देश का भविष्य मजबूत होगा। उन्होंने कहा कि हमारे देश में एक बहुत बड़े वर्ग की रोजी रोटी इस उद्योग से जुड़ी है।
ऐसे में अब हम एक नयी रूर्जा के साथ भारतीय संस्कृति की पुरानी पंरपराओं को पर्यटन के क्षेत्र में आधुनिक विश्व से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। 21वीं सदी में इन्हीं प्रयासों से भारत पर्यटन के आर्थिक पक्ष के बुनियादी महत्व को रेखांकित कर रहा है। समावेशी पर्यटन विकास के जरिये समावेशी आर्थिक पर्यटन को बल मिल सकता है। इसके लिये पर्यटन को समाज के हर तबके से जोडऩा चाहिए। उन्होंने कहा कि हर भारतवासी को पर्यटकों को अपने अपने स्तर पर अच्छे अनुभव से जोड़ने का प्रयास करना चाहिए। इससे पर्यटकों की संख्या में वृद्धि हो सकती है और रोजगार के अवसर बढ़ सकते हैं।
कोविंद ने कहा कि जिन देशों में पर्यटन ही मुख्य व्यवसाय है, उन देशों का प्रत्येक व्यक्ति पर्यटकों की प्रसन्नता के लिये सक्रिय रहता है। पर्यटन के प्रति जागरूकता में सरकार का काम दिशा देना और समुचित वातावरण प्रदान करना है। उन्होंने कहा कि ऐसे में सरकार ने अतुल्य भारत के माध्यम से स्थानीय और विदेशी पर्यटकों को स्थानीय लोगों के साथ रहने का अनुभव प्रदान करने की पहल की है। इससे पर्यटकों को आत्मीय अनुभव मिलता है, साथ ही अंतरराष्ट्रीय बंधुत्व का माहौल बनता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि सरकार ने पिछले 3 वर्षाे के दौरान 100 से अधिक देशों के पर्यटकों को आगमन पर वीजा सुविधा प्रदान की है जो पहले गिने चुने देशों के पर्यटकों को मिलता था। इससे पहल से विदेशी पर्यटकों की संख्या बढ़ी है। कोविंद ने कहा कि हमारे देश में प्रकृति के वरदान, सांस्कृतिक विरासत और लोगों की प्रतिभा के बल पर मेडिकल पर्यटन, धरोहर पर्यटन, सांस्कृतिक पर्यटन, वन्यजीव पर्यटन, रोमांचकारी गतिविधि पर्यटन, खेल पर्यटन के विकास की अपार संभावनाएं हैं।
इस क्षमता के विकास के संबंध में कुछ प्रशंसनीय प्रयास किये जा रहे हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि विश्व स्तर पर पर्यटन सबसे बड़े उद्योगों में से एक है । इसके विकास का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पूरे विश्व में अंर्ताष्ट्रीय पर्यटकों की संख्या 1950 में ढाई करोड़ से बढ़ते हुए 2016 में 123 करोड़ तक पहु०५च गई। पर्यटन और भ्रमण उद्योग का विश्व की जीडीपी में 10.2 प्रतिशत का योगदान है। ऐसा अनुमान है कि दुनिया का हर दसवां व्यक्ति पर्यटन उद्योग में काम करता है। उन्होंने कहा कि हमारे देश में भी एक बहुत बड़े वर्ग की रोजी-रोटी इसी उद्योग से जुड़ी हुई है।
वर्ष 2016 के दौरान भारत में इस उद्योग का जीडीपी को कुल 9.6 प्रतिशत तथा कुल रोजगार को 9.3 प्रतिशत योगदान था। कोविंद ने कहा कि कम लागत से, अधिक लोगों के लिए स्थायी रूप से रोजगार के अवसर पैदा करने और गरीबी दूर करने में पर्यटन उद्योग बहुत अधिक योगदान कर सकता है। एक आकलन के अनुसार पर्यटन उद्योग में 10 लाख रूपये का निवेश करने से लगभग 90 लोगों को रोजगार मिलता है जबकि कृषि क्षेत्र में लगभग 45 और विनिर्माण क्षेत्र में लगभग 13 लोगों को। उन्होंने कहा कि हमारे देश में पर्यटन का तेजी से विकास करने के लिए सभी क्षेत्रों के लोगों को एक-जुट होकर काम करना चाहिए।
उदाहरण के लिए नागर विमानन मंत्रालय द्वारा छोटे शहरों को हवाई यात्रा से जोडऩे की जो पहल की गयी है । इससे उन शहरों में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। रेल सेवा की गुणवथा और पहुंच को बढाने से भी पर्यटन का विकास होगा। घरेलू पर्यटन के विकास के साथ-साथ, हमें एक बार फिर भारत को विश्व पर्यटन का आकर्षण केंद्र बनाना चाहिए। राष्ट्रपति ने आज इंक्रेडिबल इंडिया 2.0 अभियान का शुभारम्भ किया। इसके अलावा पर्यटन मंत्रालय, संस्कृति मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संयुक्त प्रयास से धरोहर को अपनायें पहल की शुरूआत हुई है।
राष्ट्रपति ने कहा कि इस पहल से सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की भागीदारी से स्मारकों के रख-रखाव को बढ़ावा मिलेगा। उत्तराखंड में केदारनाथ और बद्रीनाथ की अपनी यात्रा का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि देश को एक सूत्र में बांधने वाले आदि-शंकराचार्य केवल एक आध्यात्मिक विभूति ही नहीं थे, वे राष्ट्र निर्माता भी थे।
उन्होंने कहा कि शंकराचार्य से भी पहले, भगवान महावीर और भगवान बुद्ध ने अहिंसा, करुणा और ज्ञान के आधार पर हमारे समाज और देश का निर्माण किया और विश्व के अनेक देशों में उनकी प्रेरणा से मानव कल्याण और विश्व-बंधुत्व के आदर्शों को बल मिला। उनके अनुयायियों ने भारत सहित अनेक देशों में मनोरम साधना-स्थल, विहार और शिक्षण संस्थान विकसित किये। इस प्रकार प्राचीन भारत में पर्यटन के कई केंद्र बन गए थे।