वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई को पत्र लिख कर कहा कि अदाणी कंपनी समूह के दो मामले शीर्ष अदालत की परंपरा और प्रक्रिया का उल्लंघन करते हुए सूचीबद्ध करके निपटाए गए। दवे ने पहला मामला-पारसा केंट कोलियरीज लिमिटेड बनाम राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड का जिक्र किया।
विशेष अवकाश याचिका (एसपीएल) से पैदा हुई वर्ष 2018 की सिविल अपील को न्यायमूर्ति रोहिंटन नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने 24 अगस्त 2018 को अवकाश प्रदान किया। अदालत ने ग्रीष्मावकाश के दौरान सुनवाई होने वाले मामलों की सूची नौ मई को प्रकाशित किया।
दवे ने पत्र में कहा कि रजिस्ट्रार आर. के. गोयल के 14 मार्च 2019 के आदेश के अनुसार, सिविल अपील सुनवाई के लिए तैयार नहीं थी।
मामले को न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष 21 मई को सूचीबद्ध किया गया जहां मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार की दलील सुनी गई। मामले को फिर अगली सुनवाई के लिए 22 मई को सूचीबद्ध किया गया। उस दिन अदालत ने सुनवाई पूरी की और फैसला सुनाया।
दवे का आरोप है कि मामले में कई अन्य वकील शामिल थे लेकिन उनको इसकी सूचना नहीं दी गई। दवे ने अपने पत्र में पूछा, ‘क्या पीठ ने जल्दबाजी की जांच की? यह स्पष्ट नहीं है।’ आखिरकार, सिविल अपील में 27 मई को सुनाए गए फैसले के जरिए आंशिक अनुमति प्रदान की गई।
दवे ने अदाणी पावर (मुंद्रा) लिमिटेड बनाम गुजरात विद्युत विनियामक आयोग व अन्य से संबंधित एक और मामले का जिक्र किया। इस मामले में 24 मई को न्यायमूर्ति अरुण कुमार मिश्रा, बी. आर. गवई और सूर्यकांत की पीठ में सुनवाई हुई। बाद में पीठ ने फैसला सुनाया।
दवे का कहना है कि मामले को शीघ्र सुनवाई के लिए नहीं लिया जाना चाहिए क्योंकि यह 29 अप्रैल और सात मार्च को जारी सर्कुलर के दायरे में नहीं आता है। उनका दावा है कि इन दोनों फैसलों से अदाणी समूह को हजारों करोड़ का फायदा हो सकता है।