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अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में न्याय विभाग सहित सभी हितधारक ठोस प्रयास करें: संसद समिति

संसद की एक समिति ने न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित अनुशंसाएं लंबित रहने पर चिंता व्यक्त करते हुए न्याय विभाग सहित सभी हितधारकों को न्यायाधीशों की नियुक्ति की दिशा में ठोस प्रयास करने को कहा है ताकि रिक्तियां भरी जा सकें।

देश की सभी अदालतों में न्यायाधीशों की कमी है, इसके चलते करोंड़ों मामले लंबित पड़े हुए है। इसी गंभीर विषय पर चिंता जाहिर करते हुए संसद की एक समिति ने अपनी रिपोर्ट पेश की है। संसद की एक समिति ने न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित अनुशंसाएं लंबित रहने पर चिंता व्यक्त करते हुए न्याय विभाग सहित सभी हितधारकों को न्यायाधीशों की नियुक्ति की दिशा में ठोस प्रयास करने को कहा है ताकि रिक्तियां भरी जा सकें।
विधि एवं न्याय मंत्रालय से संबंधित स्थायी समिति के एक सौ सातवें प्रतिवेदन पर कार्रवाई रिपोर्ट संसद में शुक्रवार को पेश की गई। इसमें समिति ने कहा कि उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों के 34 स्वीकृत पद में से 8 सितंबर 2021 तक 33 न्यायाधीश पदस्थ हैं। उच्च न्यायालयों में 1098 न्यायाधीशों के स्वीकृत पदों की संख्या के विरूद्ध केवल 633 न्यायाधीश पदस्थ हैं और 465 पद रिक्त हैं। इसमें कहा गया है कि उच्च न्यायालय कोलेजियम द्वारा की गई 196 सिफारिशों में से 54 (लगभग 29 प्रतिशत) उच्चतम न्यायालय में और 131 (लगभग 71 प्रतिशत) सरकार के पास लंबित हैं। 
समिति का मानना है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति में शामिल सभी हितधारकों को, विशेष रूप से न्याय विभाग को ठोस प्रयास करना चाहिए क्योंकि न्यायाधीशों के लिये 71 प्रतिशत अनुशंसाएं उसके पास लंबित हैं जो कि देश में उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की रिक्तियों के कारणों में से एक हो सकता है। 

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न्याय विभाग ने समिति को बताया कि उच्च न्यायालयों में रिक्तियों को भरना कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच एक सतत, एकीकृत और सहयोगात्मक प्रक्रिया है। इसके लिये राज्य और केंद्र दोनों स्तरों पर विभिन्न संवैधानिक प्राधिकरणों से परामर्श और अनुमोदन की जरूरत होती है। विभाग ने कहा कि मौजूदा रिक्तियों को तेजी से भरने के लिये हर संभव प्रयास किये जाते हैं। उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की रिक्तियां सेवानिवृत्ति, इस्तीफे या न्यायाधीशों की पदोन्नति के कारण और न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि के कारण भी उत्पन्न होती रहती हैं। 
रिपोर्ट के अनुसार, समिति ने कहा कि त्वरित निपटान विशेष अदालत योजना शुरू में राष्ट्रीय महिला सुरक्षा मिशन के एक भाग के रूप में दो वित्तीय वर्षों (2019-20 और 2020-21) को लेकर तैयार की गई थी। इस योजना को और दो वित्तीय वर्ष (2021-22 और 2022-23) के लिये विस्तारित करने का प्रस्ताव किया गया था। समिति का कहना है कि आज की तारीख में 28 राज्य/संघ राज्य क्षेत्र त्वरित निपटान विशेष अदालत योजना में शामिल हो गए हैं। इसके अलावा, प्रस्तावित 1023 त्वरित निपटान विशेष अदालत में से केवल 635 ही चालू हुए हैं। 
रिपोर्ट के अनुसार, समिति महसूस करती है कि विभाग को महिलाओं और बच्चों से संबंधित जघन्य मामलों की जांच एवं निपटान के लिये इन त्वरित निपटान विशेष अदालत की स्थापना करने के लिये राज्य सरकारों और उच्च न्यायालयों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ने की अवश्यकता है।

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