वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को राज्यसभा में कहा कि दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता में प्रस्तावित संशोधन का मकसद ऋण निपटान प्रक्रिया में अधिक स्पष्टता लाना है। उन्होंने कहा कि दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (संशोधन) विधेयक, 2019 इस उद्देश्य से लाया गया है कि इसमें अधिक स्पष्टता लाई जा सके ताकि कानून का जो वास्तविक मकसद मौजूद है, उसके खिलाफ कानून की व्याख्या नहीं की जा सके।
मंत्री ने कहा कि आठ संशोधनों में से चार विवरणात्मक प्रकृति के हैं। सदन में विधेयक को पेश करते हुए सीतारमण ने कहा कि आशंका जताई जा रही है कि जिस मूल मकसद से संसद में यह संहिता लायी गयी थी उसे कमजोर किया जा रहा है। हम इसका विलोपीकरण नहीं होने दे सकते लेकिन हमें इसमें स्पष्टता लानी होगी।
उन्होंने कहा कि जब तक 2016 में मूल संहिता (आईबीसी) देश में नहीं लायी गयी थी, देश में रिणशोधन अक्षमता ढांचा अच्छी स्थिति में नहीं था तथा विधेयक का जो मकसद था उसके पर्याप्त नतीजे नहीं मिल रहे थे। उन्होंने कहा कि आईबीसी 2016 से पहले, किसी रिणशोधन अक्षमता मामले में लगने वाला औसत समय करीब 4.3 वर्ष था और इसमें लागत भी अधिक होती थी।
वित्त मंत्री ने कहा कि इस संहिता के आने के ढाई वर्षो के बाद हमने महसूस किया कि कुछ मामलों में स्पष्टता के अभाव में अदालतों और एनसीएलटी द्वारा दी गई व्याख्या से कई महत्वपूर्ण सवाल पैदा हुए हैं और स्पष्टता के अभाव में आईबीसी का विधायी मकसद खुद ही कमजोर हो रहा है।
उन्होंने कहा कि इस संहिता की निगरानी एक केन्द्रीय सरकारी नियंत्रण समिति द्वारा की जा रही है और जो संशोधन किये जा रहे हैं, वे अंशधारकों से उपयुक्त परामर्श के बाद बनाये गये हैं। उन्होंने कहा कि अंशधारकों के हितों के बीच संतुलन कायम करना एक मुद्दा बनता जा रहा है और इसी कारण से इन संशोधनों को लाया गया है।
चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस के कपिल सिब्बल ने कहा कि कुछ संशोधनों की दिशा सही है और सराहनीय है। हालांकि इसमें मौजूद कुछ खामियों की ओर ध्यान दिलाते हुए उन्होंने इस विधेयक को प्रवर समिति में भेजने का आग्रह किया।
उन्होंने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था संकट के दौर से गुजर रही है जहां आटोमोबाइल, इस्पात, रीयल इस्टेट और तत्काल खपत उपभोक्ता माल (एफएमसीजी) से जुड़ी कंपनियां मुश्किलों से जूझ रही हैं। उन्होंने कहा कि चिंता इस बात की है कि सरकार जिस तरह से समस्या का समाधान कर रही है, उससे देश में बेरोजगारी और बढ़ेगी।
उन्होंने कहा कि इस परिस्थिति का लाभ देश में चार पांच बड़े निगमित घरानों को ही मिल रहा है जो बेहद कम कीमत पर ऐसी संकटग्रस्त कंपनियों को कब्जे में ले रही हैं। चर्चा में भाग लेते हुए भाजपा के भूपेन्द्र यादव ने कहा कि यह देखना चिंता की बात है कि निगमित कंपनियों का रिण पांच वर्षो में इतना बढ़ा जो वर्ष 2009 में महज 12 लाख करोड़ रूपए ही था। उन्होंने जानना चाहा कि क्यों लेखा खातों का समायोजन नहीं किया गया और गैर निष्पादक आस्तियों (एनपीए) को बढ़ने दिया गया।
उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार देश की अर्थव्यवस्था को पारदर्शी बनाने के लिए कृतसंकल्प है। इसी कारण से सरकार ने काला धन पर रोक लगाने के उपाय लेकर सामने आई तथा आर्थिक अपराध करने वालों पर रोक लगाने तथा घर खरीदने वालों के लिए राहत देने वाले कानून लायी।
उन्होंने देश में पूंजी लगाने वालों को ‘व्यवसाय करने की आसानी’ का माहौल देने के लिए ऐसे मामलों के त्वरित निपटान करने की खातिर अधिक न्यायधीशों और प्रशिक्षित पेशेवरों को तैनात किये जाने की भी सलाह दी।