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पर्यावरण मंजूरी से बचने को राजमार्ग परियोजनाओं के छोटे खंड करने की रणनीति अपनाने लायक नहीं : SC

उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को एक फैसले में कहा कि पर्यावरण मंजूरी से बचने के लिये 100 किलोमीटर से अधिक लंबाई वाले राजमार्ग को छोटे छोटे हिस्सों में बांटने को एक रणनीति के तौर पर नहीं अपनाया जा सकता है।

उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को एक फैसले में कहा कि पर्यावरण मंजूरी से बचने के लिये 100 किलोमीटर से अधिक लंबाई वाले राजमार्ग को छोटे छोटे हिस्सों में बांटने को एक रणनीति के तौर पर नहीं अपनाया जा सकता है। 
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि वह इस मामले में का विशेषज्ञ नहीं है इसलिये उसका यह मानना है कि एक विशेषज्ञ समिति को छोटे खंड में बांटने की रणनीति की स्वीकार्यता का परीक्षण करना चाहिये। 
उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में मद्रास उच्च न्यायालय के पिछले साल के आदेश को भी खारिज कर दिया। मद्रास उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि विल्लुपुरम- नागपट्टीनम राजमार्ग संख्या 45-ए के लिये पर्यावरण मंजूरी लेने की आवश्यकता नहीं है। यह राजमार्ग तमिलनाडु और पुड्डुचेरी में 179.55 किलोमीटर हिस्से में है। उच्च न्यायालय ने कहा कि इस राजमार्ग के मामले में मौजूदा मार्ग पर भूमि अधिग्रहण की आवश्यकता 40 मीटर चौड़ाई से अधिक नहीं है वहीं बायपास पर यह 60 मीटर तक है। 
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और अजय रस्तोगी ने मामले में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को निर्देश दिया है कि वह एक विशेषा समिति का गठन करे। समिति यह जांच करेगी कि 100 किलोमीटर से अधिक लंबाई वाली राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना के लिये उसे हिस्सों में बांटना क्या अनुमति के योग्य है और यदि है तो किन परिस्थितियों में हो सकता है।’’ 
पीठ ने हालांकि उच्च न्यायालय के साथ इस बात को लेकर सहमति जताई कि पर्यावरण मंजूरी से बचने के लिये एक रणनीति के तौर पर पर्यावरण मंत्रालय की 14 सितंबर 2006 और 22 अगस्त 2013 की अधिसूचना के मुताबिक सड़क परियोजनाओं को हिस्सों में बांटना अनुमति योग्य नहीं है। 
शीर्ष अदालत का यह फैसला भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) की मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर आया है। मद्रास उच्च न्यायालय ने विल्लुपुरम से नागपट्टीनम के बीच राष्ट्रीय राजमार्ग 45-ए के विस्तार पर रोक लगा दी। यह राजमार्ग चार पैकेज में बांटा गया है। 
पीठ ने कहा कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाकर विकास नहीं किया जा सकता है वहीं पर्यावरण और पारिस्थितिकी को बचाने की आवश्यकता के चलते आर्थिक और अन्य विकास कार्यों को बाधित नहीं होना चाहिये। विकास और पर्यावरण संरक्षण दोनों को साथ साथ आगे बढ़ाना होगा। 
शीर्ष अदालत ने कहा कि पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की 22 अगस्त 2013 को जारी अधिसूचना 100 किलोमीटर से कम दूरी वाले राष्ट्रीय राजमार्ग को पर्यावरण मंजूरी लेने से छूट देती है। पीठ ने एनएचएआई को पर्यावरण मंत्रालय की 14 सितंबर 2006 और इसकी संशोधित 22 अगसत 2013 की अधिसूचना का पूरी कड़ाई के साथ पालन करने का निर्देश दिया और मौजूदा कानूनी व्यवस्था के तहत पुन: वनीकरण की आवश्यकता को पूरा करने को कहा। 

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