सरकार ने बुधवार को राज्यसभा में दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (संशोधन) विधेयक पेश किया जिसे ऋण समाधान प्रक्रिया को समय पर पूरा करने तथा शेयरधारकों के हितों के बारे में अधिक स्पष्टता देने के उद्देश्य से लाया गया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किए गए इस विधेयक में दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता में सात संशोधन का प्रावधान है। इनका उद्देश्य डूबत ऋण का समाधान करना है।
विधेयक पेश करते हुए वित्त मंत्री सीतारमण ने इस विधेयक के बारे में कुछ बोलना चाहा। किंतु नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने आसन से कहा कि जब इस विधेयक को चर्चा एवं पारित करने के लिए सदन में लाया जाए तो वित्त मंत्री उस समय कुछ बोल सकती हैं।
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वित्त मंत्री ने आसन की अनुमति से आजाद के इस सुझाव को स्वीकार कर लिया। विधेयक के कारणों एवं उद्देश्यों के अनुसार मूल कानून में प्रस्तावित संशोधनों से आवेदनों को समय रहते स्वीकार किया जा सकेगा और निगमित दिवाला समाधान प्रक्रिया को समय रहते पूरा किया जा सकेगा।
विधेयक में यह भी प्रावधान किया गया है कि यदि संबंधित प्राधिकार द्वारा किसी आवेदन को 14 दिनों के भीतर स्वीकार या खारिज नहीं किया गया तो उसे इसके बारे में लिखित में कारण बताना पड़ेगा। विधेयक में सीआईआरपी (निगमित दिवाला समाधान प्रक्रिया) के पूरा होने की एक समय सीमा तय की गयी है जिसमें 330 दिनों की कुल सीमा रखी गयी है। इसी सीमा के भीतर मुकदमे एवं अन्य न्यायिक प्रक्रिया शामिल होंगी।