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किसी व्यक्ति के वायरस से संक्रमित होने के तुरंत बाद कैंसर नहीं होता, कुछ कैंसर को टीके से रोका जा सकता है : विषाणु विज्ञानी

किसी व्यक्ति के इन वायरस से संक्रमित होने के तुरंत बाद उसे कैंसर नहीं होता, लेकिन ये वायरस संक्रमित कोशिकाओं को सिखाते हैं कि कोशिका के नष्ट होने की प्राकृतिक जैविक प्रक्रिया से कैसे बचा जा सकता है।

किसी व्यक्ति के इन वायरस से संक्रमित होने के तुरंत बाद उसे कैंसर नहीं होता, लेकिन ये वायरस संक्रमित कोशिकाओं को सिखाते हैं कि कोशिका के नष्ट होने की प्राकृतिक जैविक प्रक्रिया से कैसे बचा जा सकता है। इसके कारण ये कोशिकाएं अन्य आनुवंशिक बदलावों से गुजरती हैं और आगामी वर्षों में कैंसर का कारण बनती हैं।
उपचार के संभावित तरीकों के संदर्भ में अनूठे और दिलचस्प 
सूक्ष्म जीव विज्ञानी और विषाणुओं के अनुसंधानकर्ता होने के नाते मैं यह जानने की कोशिश करता हूं कि वायरस जीवित कोशिकाओं और संक्रमित लोगों के स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करते हैं। ये विशेष वायरस मरीजों को प्रभावित करने और उनके उपचार के संभावित तरीकों के संदर्भ में अनूठे और दिलचस्प होते हैं।
वायरल परिदृश्य
सभी ज्ञात वायरस को 22 विशिष्ट परिवारों में वर्गीकृत किया जा सकता है। इनमें से पांच परिवार किसी व्यक्ति को संक्रमित करने के बाद उसके शरीर में आजीवन रहते हैं। कैंसर का कारण बन सकने वाले सात ज्ञात वायरस हैं। इनमें से पांच वायरस शरीर में बने रहने वाले पांच परिवारों का हिस्सा हैं। ये पांच वायरस ह्यूमन पैपिलोमा वायरस यानी एचपीवी, एपस्टीन बर, कपोसी का सारकोमा-संबंधी वायरस, टी-लिमफोट्रोपिक वायरस और मर्केल सेल पोलिओमा वायरस है।
 वायरस के कारण होने वाले ये कैंसर स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा
इसके अलावा कैंसर का कारण बनने वाले अन्य दो वायरस हैं – हेपेटाइटस बी और हेपेटाइटस सी। इन वायरस से संक्रमित अधिकतर लोग अपनी रोग प्रतिरोधी क्षमता के जरिए संक्रमण से लड़ने और वायरस को खत्म करने में सक्षम होते हैं। जो संक्रमित व्यक्ति ऐसा नहीं कर पाते हैं, उन्हें यकृत कैंसर होने का खतरा होता है। वायरस के कारण होने वाले ये कैंसर स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा हैं।
सकारात्मक होने का कारण
एचपीवी संक्रमण और इससे जुड़े कैंसर से रक्षा के लिए पहला वारयल टीके के इस्तेमाल को 2006 में अमेरिका में मंजूरी मिली थी, जो एचपीवी संक्रमण को रोकने में बहुत प्रभावी साबित हुआ है। यह टीका सुरक्षित है और इसके दुष्प्रभाव बहुत मामूली है। यह टीका 11 से 12 वर्ष की आयु के बाद दिया जा सकता है और 10 साल तक कारगर रहता है। इसी तरह हेपेटाइटस बी वायरस का टीका भी दीर्घकाल में उपयोगी रहा है।
टीके जीवनरक्षक हैं।
17 वर्ष की आयु तक के 46 प्रतिशत लोगों ने एचपीवी का टीका नहीं लगवाया 
हेपेटाइटिस बी वायरस और ह्यूमन पैपिलोमा वायरस रोधी टीकों की मदद से कई लोगों को कैंसर से बचाया गया है और कई लोगों की जान बचाई गई है। यह तथ्य निर्विवाद है। इसके बावजूद लोग टीके लगाने से झिझकते हैं। वर्ष 2019 में 13 से 17 वर्ष की आयु तक के 46 प्रतिशत लोगों ने एचपीवी का टीका नहीं लगवाया था, लेकिन अमेरिका इस मामले में कुछ अन्य देशों से बेहतर स्थिति में है।
जापान में, 2013 में प्रतिकूल घटनाओं की झूठी रिपोर्ट के कारण इस समय किशोरों में टीकाकरण की दर एक प्रतिशत से भी कम है। टीकाकरण मुहिम ने चेचक को समाप्त कर दिया है और पोलियो, खसरा और कुछ अन्य संक्रामक रोगों को भी प्रभावी ढंग से खत्म कर दिया है। उम्मीद है कि टीकाकरण संबंधी मौजूदा प्रयासों के कारण एचपीवी और हेपेटाइटस बी से होने वाले कैंसर को समाप्त किया जा सकता है।

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