2019 यह साल पत्रकारिता में क्षेत्र में बेहद ही दुखद साल रहा। पंजाब केसरी दिल्ली के मुख्य संपादक एवं हरियाणा स्थित करनाल से भाजपा के पूर्व सांसद सदस्य रहे सीनियर पत्रकार श्री अश्विनी कुमार चोपड़ा उर्फ 'मिन्ना' जी का दिल्ली में देहांत हो गया था। 63 वर्षिय अश्विनी कुमार जी फेफड़ों के कैंसर की बीमारी से पीड़ित थे। और आज इस उनके देहांत को तीन वर्ष बीत चुकें हैं। और आज उनकी तीसरी पुण्यतिथि को '' सेवा- समर्पण एवं परोपकार दिवस '' के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर पंजाब केसरी, दिल्ली की डायरेक्टर एवं वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब की चेयरपर्सन श्रीमती किरण चोपड़ा की ओर से वस्तुएं, दर्दनाशक तेल, छड़ियां , स्वेटर, जुराब, फल, टोपियां, गर्म बेडशीट, वार्मर-सूट, च्यवनप्राश, कम्बल, शाल, तौलिये, अनाज व विभिन्न खाद्यान्न के साथ त्रैमासिक आर्थिक-सहायता उपलब्ध कराई गई। जिसमें पंजाब केसरी के डायरेक्टर आकाश चोपड़ा के साथ पुत्रवधुओं में क्षीमती सोनम चोपड़ा, राधिका व सन्ना चोपड़ा ने भी लोगों की सेवा के पवित्र मिशन में सेवा-कार्यों में भरपूर योगदान दिया। सहायता- कार्यक्रम के दौरान अनेक वरिष्ठ सदस्यों ने भजनों, मधुर गीतों, देशभक्ति के गीतों को सुनाकर राष्ट्रभक्त अश्विनी कुमार चोपड़ा जी को श्रद्धांजलि दी। इस अवसर पर सबके लिए बुजुर्गों की पसंद के सुन्दर भोजन का आयोजन रहा।
वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब की विभिन्न शाखाओं के शाखा अध्यक्ष, सदस्य पंजाब केसरी समाचार-पत्र समूह, जेआर मीडिया इंस्टीट्यूट के सदस्यों सहित सुप्रसिद्ध डा. सुरेश भागरा, डा. यश भागरा, भाजपा केशवपुरम के मंजलाध्यक्ष, राजकुमार भाटिया, श्रीमती नंदा अग्रवाल, अनिल भाई चूड़ीवाला त्रिनगर, मीना कपूर, चन्द्र कुमार तलवार और उनका परिवार, मंजीत पंडीर, खन्ना ब्रदर्स शाहदरा तथा आजादपुर के फल व्यापारियों का भरपूर योगदान रहा और बुजुर्गों की निस्वार्थ सेवा का भाव देखते ही बना।
सर्वगुण सम्पन्न थे अश्विनी जी
अश्विनी जी बेहद अनुभवी और ऑलराउंडर थे। वह एक अच्छे पत्रकार के साथ साथ अच्छे क्रिकेटर, सफल राजनेता भी थे, उन्हें हर विषय का ज्ञान था। उन्हें ज्योतिष शास्त्र, खगोल शास्त्र, इतिहास, राजनीति और विश्व के भूगोल की पूरी जानकारी थी
सभी राजनैतिक पार्टियों से संबंध
उनके संबंध सभी राजनैतिक पार्टियों के नेताओं से थे। चाहे मोदी जी, राजनाथ, स्व. अरुण जेतली, गुलाम नबी आजाद, स्व. शरद यादव, लालू यादव, समेत प्रियंका गांधी, सोनिया गांधी के साथ अच्छे संबंध थे। इतने बड़े कद्दावर व्यक्तित्व के स्वामी होते हुए भी उनके भीतर तिनका के समान भी घमण्ड नहीं था। कुल मिलाकर वो सर्वगुण सम्पन्न व्यक्ति थे
भविष्य के प्रती दूरदृष्टा
श्री मिन्ना जी दूरदृष्टा थे और कई बार भविष्य में होने वाली घटनाओं पर अपना स्पष्ट आकलन प्रस्तुत कर देते थे। जो आज वर्तमान के हालातों को देखकर सत्य प्रतीत भी हो रहा है। उनकी लेखनी दलगत राजनीति से कहीं ऊपर थी। यद्यपि वे भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर सांसद निर्वाचित हुए थे लेकिन उन्होंने बतौर सम्पादक अपने विचारों को व्यक्त करने में किसी दबाव को स्वीकार ही नहीं किया।
अपने तीखी कलम से करते थे जन की बात
उनकी लेखनी के आलोचक भी कोई कम न थे लेकिन उनके विरोधी भी यह स्वीकार करते थे और अक्सर कहते थे ‘‘लिखने में तो अश्विनी का कोई जवाब नहीं।’’ जिस बात को कहने में बड़े-बड़े हिम्मत नहीं दिखाते, वह उन्हें शब्दों की चाश्नी में भिगोकर आसानी से कह देते थे। उनकी स्पष्टवादी और तीखी कलम के चलते ही पंजाब केसरी दिल्ली ने बहुत जल्द ही प्रतिष्ठा हासिल कर ली। अश्विनी कुमार मिन्ना जी कैंसर से जूझते हुए भी अपनी आत्मकथा लिखते रहे। वह हमेशा से ही सत्य के मार्ग पर चले, उनकी लेखनी कभी नहीं रुकी, वे कभी नहीं झुके, यह राष्ट्र की अस्मिता की संवाहक है, यह राष्ट्र को समर्पित है।
स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा है श्री अश्विनी कुमार चोपड़ा का परिवार
श्री मिन्ना जी के परिवार का इतिहास स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा हुआ है। श्री मिन्ना जी अक्सर अपनी लेखनी के जरिए अमर शहीद लाला जगत नारायण जी और शहीद रमेश चंद्र जी की स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी बाते लिखा करते थे, जिन्हें पढ़कर हमें बेहद ही गौरव महसूस होता था। जिस प्रकार स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी अमर शहीद लालाजी और अमर शहीद रमेश जी ने पत्रकारिता को लक्ष्य बनाया था, उसे आज भी याद किया जाता है।
विरासत में मिली मिशनरी पत्रकारिता
अश्विनी कुमार जी को मिशनरी पत्रकारिता अपनी विरासत में मिली थी। जिस प्रकार उनके दादा लाला जगत नारायण कभी ब्रिटिश हुकूमत से नहीं डरे थे व उनके पिता स्व. रमेश चन्द कभी खालिस्तानी आतंकवादियों से नहीं डरे थे। उसी प्रकार श्री अश्विनी कुमार जी भी पंजाब केसरी में बेबाक लिखते रहे। अश्विनी कुमार जी ने पत्रकारिता को उसी प्रखता के साथ जारी रखा, जिसकी नींव पूजनीय अमर शीहीद लाला जगत नारायण जी एवं अमर शहीद स्व. रमेशचंद जी ने रखी थी, साथ ही जिस जद्दोजहद को उन्होंने अपना सम्पादकीय धर्म बनाया था, उतनी ही जद्दोजहद उन्होंने आत्मकथा लिखने में की थी