दोषी ठहराए गए नेताओं पर आजीवन चुनाव लड़ने की पाबंदी वाली याचिका का केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विरोध किया है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में उस याचिका का विरोध किया जिसमें आपराधिक मामले में दोषी ठहराए गए नेताओं (मौजूदा सांसद और विधायक सहित) के आजीवन चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाने की गुहार की गई है।
कानून मंत्रालय ने अपने जवाब में कहा की जनसेवक और राजनेताओं में कोई अंतर नहीं है, लेकिन जनप्रतिनिधियों के सेवा नियम में इस तरह का कोई नियम नहीं है कि उन्हें चुनाव लड़ने से वंचित किया जाए। कानून मंत्रालय ने अपना जवाब बीजेपी नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा संशोधित आवेदन पर दिया है।
याचिका में कहा गया था कि जिस तरह से अपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद जनसेवक की सेवा आजीवन खत्म कर दी जाती है उसी तरह का नियम जनप्रतिनिधियों पर भी लागू होना चाहिए। याचिका में कहा गया कि इस बिंदु पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन बनाम भारत सरकार के मामले में विचार किया जा चुका है।
इस मामले में जनप्रतिनिधियों को अयोग्य ठहराए जाने के आधार तय किए गए थे। बता दें कि फिलहाल जन प्रतिनिधित्व कानून, 1951 के अनुसार दोषी ठहराए गए नेता को 6 साल के लिए चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित किया जाता है। 6 वर्ष की अवधि बीतने के बाद वे चुनाव लड़ने के योग्य हो जाते हैं।