भारतीय अंतरिक्ष यान चंद्रयान-2 के चांद की कक्षा में प्रवेश करने के अंतिम 30 मिनट बहुत मुश्किल भरे थे। यह कहना है भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के चेयरमैन के. सिवान का। इस महत्वपूर्ण चरण के तुरंत बाद सिवान ने बताया, अभियान के अंतिम 30 मिनट बहुत मुश्किल भरे थे।
घड़ी की सुई के आगे बढ़ने के साथ-साथ तनाव और चिंता बढ़ती गई। चंद्रयान-2 के चांद की कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश करते ही अपार खुशी और राहत मिली। उन्होंने कहा, हम एक बार फिर चांद पर जा रहे हैं। भारत का पहला चांद का मिशन चंद्रयान-1 साल 2008 में सम्पन्न किया गया था।
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इस मौके पर इसरो केंद्र पर लगभग 200 वैज्ञानिक तथा अन्य कर्मी इकट्ठे थे। यान के चांद की कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश करने के बाद अधिकारियों ने उल्लेखनीय उपलब्धि पर एक-दूसरे को बधाइयां दीं। इसरो के एक अधिकारी के अनुसार, चंद्रयान-2 की 24 घंटे निगरानी की जा रही है। सिवान ने कहा कि भारत के मानव अंतरिक्ष मिशन गगनयान पर भी काम चल रहा है। इसके लिए अंतरिक्ष यात्रियों का चयन करने का काम जारी है।
7 सितंबर को चंद्रयान-2 चंद्रमा की सतह पर करेगा ‘साॉफ्ट लैंडिंग’
इसरो ने कहा कि सात सितंबर को चंद्रमा की सतह पर ‘साॉफ्ट लैंडिंग’ कराने की प्रक्रिया शुरू करने से पहले लैंडर संबंधी दो कक्षीय प्रक्रियाओं को अंजाम दिया जाएगा। बेंगलूरु के नजदीक ब्याललू स्थित इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क (आईडीएसएन) के एंटीना की मदद से बेंगलूरू स्थित ‘इसरो, टेलीमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क’ (आईएसटीआरएसी) के मिशन ऑपरेशन्स कांप्लेक्स (एमओएक्स) से यान की स्थिति पर लगातार नजर रखी जा रही है। इसरो ने कहा कि अगली कक्षीय प्रक्रिया बुधवार को दोपहर साढ़े 12 से डेढ़ बजे के बीच की जाएगी। देश के कम लागत वाले अंतरिक्ष कार्यक्रम को पंख लगाते हुए इसरो के सबसे शक्तिशाली तीन चरण वाले रॉकेट जीएसएलवी-एमके3-एम1 ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से 22 जुलाई को चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण किया था।
चंद्रयान-2 चंद्रमा की कक्षा में सफलतापूर्वक पहुंचा
प्रक्षेपण के बाद चंद्रयान-2 ने गत 14 अगस्त को पृथ्वी की कक्षा से निकलकर चंद्र पथ पर आगे बढ़ना शुरू किया था।
इसरो का यह अब तक का सबसे जटिल और सबसे प्रतिष्ठित मिशन है। यदि सब कुछ सही रहता है तो रूस, अमेरिका और चीन के बाद भारत, चांद की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने वाला चौथा देश बन जाएगा। ‘चंद्रयान-2’ मिशन भारत के लिए इसलिए भी बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि चांद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में अभी तक कोई देश नहीं पहुंचा है। इससे पहले गत 15 जुलाई को रॉकेट में तकनीकी खामी का पता चलने के बाद ‘चंद्रयान-2’ का प्रक्षेपण टाल दिया गया था। समय रहते खामी का पता लगाने के लिए वैज्ञानिक समुदाय ने इसरो की सराहना की थी।
‘चंद्रयान-2’ चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में उतरेगा जहां अभी तक कोई देश नहीं पहुंच पाया है। इससे चांद के अनसुलझे रहस्य जानने में मदद मिलेगी । यह ऐसी नयी खोज होगी जिसका भारत और पूरी मानवता को लाभ मिलेगा। पहले चंद्र मिशन की सफलता के 11 साल बाद इसरो ने भू-स्थैतिक प्रक्षेपण यान जीएसएलवी-मार्क ।।। के जरिए 978 करोड़ रुपये की लागत से बने ‘चंद्रयान-2’ का प्रक्षेपण किया। स्वदेशी तकनीक से निर्मित ‘चंद्रयान-2’ में कुल 13 पेलोड हैं। आठ ऑर्बिटर में, तीन पेलोड लैंडर ‘विक्रम’ और दो पेलोड रोवर ‘प्रज्ञान’ में हैं।
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लैंडर ‘विक्रम’ का नाम भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान कार्यक्रम के जनक डॉ. विक्रम ए साराभाई के नाम पर रखा गया है। दूसरी ओर, 27 किलोग्राम वजनी ‘प्रज्ञान’ का मतलब संस्कृत में ‘बुद्धिमता’ है। ऑर्बिटर, चंद्रमा की सतह का निरीक्षण करेगा और पृथ्वी तथा ‘चंद्रयान-2’ के लैंडर ‘विक्रम’ के बीच संकेत प्रसारित करेगा। लैंडर ‘विक्रम’ को चंद्रमा की सतह पर भारत की पहली सफल लैंडिंग के लिए डिज़ाइन किया गया है। ‘प्रज्ञान’ नाम का रोवर कृत्रिम बुद्धिमता (आर्टिफिशियल इन्टेलिजेन्स) संचालित 6-पहिया वाहन है। इसरो के अनुसार चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव रोचक जगह है जहां उत्तरी ध्रुव के विपरीत अंधकार छाया रहता है।