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मुख्य न्यायधीश ने कोविड-19 के दौरान सामाजिक दूरियां बनाने के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई के लिये जारी किये दिशानिर्देश

पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘अदालत परिसरों में सभी हितधारकों की उपस्थिति की अनिवार्यता कम करने और सामाजिक दूरी बनाने संबंधी दिशा निर्देशों के अनुरूप शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालयों द्वारा किये गये सभी उपायों को कानून सम्मत माना जायेगा।

नयी दिल्ली : कोविड-19 महामारी से उत्पन्न चुनौतियों के कारण लॉकडाउन जैसी असाधारण परिस्थितियों में बहुत सारे लोगों की मौजूदगी में मुकदमों की सुनवाई को अपवाद बताते हुये उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि सामाजिक दूरी बनाये रखने के आह्वान के जवाब में देश भर की अदालतों के लिये यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि वे इस वायरस के फैलने में अपना योगदान नहीं करें। 
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से हो रही न्यायिक कार्यवाही के संदर्भ में कहा, ‘‘यह प्रौद्योगिकी अब यहां रहेगी।’’ इसके साथ ही पीठ ने देश की सभी अदालतों को इस संबंध में व्यापक निर्देश दिये और कहा कि उच्चतम न्यायालय तथा सभी उच्च न्यायालय वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से न्यायिक कामकाज करने के उपाय अपनाने के लिये अधिकृत हैं। 
पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 142 में प्रदत्त असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल करते हुये कहा कि अदालत परिसरों में हितधारकों की उपस्थिति कम करने के लिये अदालतें सभी आवश्यक कदम उठायेंगी और उन्हें कानून सम्मत माना जायेगा। इस पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति डा धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव शामिल थे।पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता और उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विकास सिंह के पत्र का स्वत: संज्ञान लेते हुये वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से इस पर सुनवाई की। 
पीठ ने कहा कि प्रत्येक राज्य में न्यायिक प्रणाली की विशेषता और जन स्वास्थ्य की स्थिति के अनुरूप प्रत्येक उच्च न्यायालय अस्थाई रूप से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग तकनीक के इस्तेमाल के संबंध में उचित तरीका अपनाने के लिये अधिकृत होगा। पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘अदालत परिसरों में सभी हितधारकों की उपस्थिति की अनिवार्यता कम करने और सामाजिक दूरी बनाने संबंधी दिशा निर्देशों के अनुरूप शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालयों द्वारा किये गये सभी उपायों को कानून सम्मत माना जायेगा। 
न्यायालय ने कहा कि भारत सहित दुनिया के अनेक देशों में कोविड-19 महामारी फैलने की वजह से इस वायरस के प्रसार को रोकने के लिये सामाजिक दूरी बनाने के उपायों को तत्काल अपनाना जरूरी है और उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों ने लोगों की व्यक्तिगत रूप से उपस्थिति कम करने के उपायों को अपनाया है। शीर्ष अदालत ने अपने निर्देश में कहा कि प्रत्येक राज्य की जिला अदालतों को उच्च न्यायालय द्वारा बताये गये वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के तरीके अपनाने होंगे। न्यायालय ने कहा कि संबंधित अदालतें एक हेल्पलाइन भी रखेंगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कार्यवाही के दौरान या सुनवाई पूरी होने के तुरंत बाद वीडियो फीड की गुणवत्ता या श्रव्यता के बारे में कोई भी शिकायत पहुंचायी जा सके। इसमें विफल रहने पर इसके बाद इस बारे में किसी भी शिकायत पर विचार नहीं होगा। 
पीठ ने निर्देश दिया कि अदालतें बाकायदा अधिसूचित करेंगी और ऐसे प्रत्येक वादकारी के लिये वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधा उपलब्ध करायेंगी जिनके पास इस सुविधा का लाभ उठाने के साधन नहीं है। न्यायालय ने कहा, ‘‘अगर जरूर हो, उचित मामलों में अदालतें न्याय मित्र नियुक्त कर सकती हैं और ऐसे अधिवक्ता को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा उपलब्ध करा सकती है। उच्च न्यायालयों द्वारा उचित नियम बनाये जाने तक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा का उपयोग निचली अदालत या फिर अपील के दौर में बहस की सुनवाई के लिये ही किया जायेगा।’’ 
शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों की सहमति के बगैर कोई साक्ष्य दर्ज नहीं किया जायेगा। न्यायालय ने कहा कि अगर अदालत कक्ष में ही साक्ष्य दर्ज करना जरूरी हो तो पीठासीन अधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि अदालत में दो व्यक्तिों के बीच उचित दूरी बनी रहे। पीठ ने कहा कि पीठासीन अधिकारी को अदालत कक्ष में या वकीलों द्वारा बहस के लिये निर्धारित जगह पर किसी भी व्यक्ति का प्रवेश निषेध करने का अधिकार होगा। 
न्यायालय ने यह भी कहा, ‘‘कोई भी पीठासीन अधिकारी मुकदमे के किसी पक्षकार का प्रवेश निषेध नहीं करेगा बशर्ते ऐसा पक्ष किसी संक्रामक बीमारी से ग्रस्त नहीं हो। हालांकि, वादकारों की संख्या ज्यादा होने के मामलों में पीठासीन अधिकारी को इनकी संख्या सीमित करने का अधिकार होगा। अगर अदालत कक्ष में पक्षकारों की संख्या नियंत्रित करना संभव नहीं हो तो पीठासीन अधिकारी अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करके कार्यवाही स्थगित कर सकते हैं।’’ शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि ये निर्देश अगले आदेश तक प्रभावी रहेंगे। न्यायालय ने कहा कि न्याय प्रदान करने की प्रतिबद्धता को मजबूत करने के लिये ही ये निर्देश दिये गये हैं। 
पीठ ने कहा कि कोविड-19 महामारी की वजह से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने और इन निर्देशों पर सफलतापूर्वक अमल सुनिश्चित करने के लिये न्यायाधीशों, वकीलों और वादकारों जैसे सभी हितधारकों का सहयोग आवश्यक है। 
पीठ ने इस मामले को अब चार सप्ताह बाद सूचीबद्ध किया है। न्यायालय ने कहा कि कोरोनावायरस संक्रमण को फैलने से रोकने और अदालतों की सीमा में परंपरागत कामकाज घटाने के लिये इन उपायों पर अमल करने में प्रत्येक व्यक्ति और संस्था से सहयोग की अपेक्षा है। 
इस मामले की सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने पीठ से कहा कि मुद्दा यह उठ रहा है कि क्या हमारे पास सर्वाधिक सक्षम व्यवस्था है जिस तक देश भर के वकीलों की पहुंच हो सके। वेणुगोपाल ने कहा कि एनआईसी को इस पहलू पर भी गौर करना चाहिए कि कौन सी सबसे अधिक कारगर और सस्ती प्रणाली है जिसका देश के सभी वकील उपयोग कर सकें। सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि मौजूदा परिस्थितियों में यह सर्वोत्तम समाधान है और हो सकता है कि लंबी सुनवाई के लिये यह उपयुक्त नहीं हो, यह संक्षिप्त सुनवाई का समाधान है। 
न्यायालय में मौजूद एनआईसी के महानिदेशक ने पीठ से कहा कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के लिये तीन चीजें -बेहतरीन ब्राडबैंड कनेक्शन, बेहतरीन उपकरण और लोगों का व्यवहार, जब एक व्यक्ति बोल रहा हो तो दूसरा अपना उपकरण धीमा कर दे, -जरूरी हैं। उच्चतम न्यायालय ई कमेटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने पिछले सप्ताह ही सभी उच्च न्यायालयों की ई-समितियों के न्यायाधीशों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से बैठक की थी और उनसे कहा था कि लॉकडाउन के दौरान अत्यावश्यक मामलों की तत्परता सुनवाई सुनिश्चित की जाये। 

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