कांग्रेस ने कुछ राज्य, विशेष रूप से गुजरात में कोविड-19 से होने वाली मौतों की संख्या कम करके दिखाने का शनिवार को आरोप लगाया और केंद्र एवं राज्य दोनों सरकारों से स्पष्टीकरण की मांग की।
कांग्रेस नेताओं पी. चिदंबरम और शक्तिसिंह गोहिल ने संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में आरोप लगाया कि इस साल गुजरात में मौतें 2020 की तुलना में दोगुनी हो गई हैं और दावा किया कि इस पर्याप्त वृद्धि को स्वाभाविक नहीं बताया जा सकता है और इसके लिए केवल महामारी को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
कांग्रेस के दोनों नेताओं ने एक खबर का हवाला दिया जिसमें दावा किया गया था कि गुजरात ने 1 मार्च से 10 मई के बीच लगभग 1,23,000 मृत्यु प्रमाणपत्र जारी किए, जबकि पिछले साल इसी अवधि के दौरान लगभग 58,000 प्रमाणपत्र जारी किए गए थे। दोनों नेताओं ने कहा कि उन्होंने राज्य के 33 जिलों से आंकड़े एकत्रित करने के बाद इनका सत्यापन कराया।
कांग्रेस नेताओं ने कहा कि एकत्रित किये गए मृत्यु प्रमाणपत्रों की संख्या का योग प्रकाशित संख्या के साथ लगभग मेल खाता है और यह पिछले साल 58,068 के मुकाबले 2021 में 1,23,873 है।
हालांकि, एक मार्च से 10 मई की अवधि के दौरान, गुजरात सरकार ने आधिकारिक तौर पर कोविड-19 संबंधित केवल 4,218 मौतें स्वीकार की हैं।
चिदंबरम ने कहा कि मृत्यु प्रमाणपत्र की संख्या में वृद्धि (65,805) और कोविड-19 से संबंधित आधिकारिक मौतों (4,218) के बीच के अंतर को स्पष्ट किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि इसे ‘प्राकृतिक वार्षिक वृद्धि’ या ‘अन्य कारणों’ के रूप में नहीं समझाया जा सकता है।
उन्होंने कहा, ‘‘हमें संदेह है कि मौतों की बढ़ी हुई संख्या का एक बड़ा हिस्सा कोविड-19 के कारण है और राज्य सरकार कोविड-19 से संबंधित मौतों की सही संख्या को दबा रही है।’’
उन्होंने दावा किया, ‘‘हमारे संदेह की पुष्टि इस तथ्य से होती है कि गंगा नदी में सैकड़ों अज्ञात शव पाए गए हैं और लगभग 2000 अज्ञात शव गंगा नदी के किनारे रेत में दबे हुए पाए गए हैं।’’
उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘हमें संदेह है कि भारत सरकार, कुछ राज्य सरकारों के साथ मिलकर नये संक्रमणों और कोविड-19 संबंधित मौतों की सही संख्या को दबा रही है। अगर हमारा संदेह सही है, तो यह राष्ट्रीय शर्म और राष्ट्रीय त्रासदी के अलावा एक अनैतिक कृत्य है।’’
चिदंबरम ने कहा, ‘‘भारत सरकार और गुजरात सरकार को भारत के लोगों के प्रति एक स्पष्टीकरण देना बनता है। हम (कांग्रेस पार्टी) जवाब और स्पष्टीकरण मांगते हैं।’’
उन्होंने कहा कि अगर ऐसा हो रहा है तो यह शर्म की बात है।
चिदंबरम ने कहा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) को सभी राज्यों से पिछले और इस साल जारी मृत्यु प्रमाण के आंकड़े देने को कहना चाहिए।
उन्होंने उम्मीद जताई कि राज्य कांग्रेस इकाई भी अपने-अपने राज्यों के मुख्यमंत्रियों और संबंधित मंत्रियों से राज्य में मौतों की तुलनात्मक जानकारी मांगेंगी।
उन्होंने कहा कि इस संबंध में उनके बयान को उच्चतम न्यायालय के समक्ष भी रखा जाएगा जो कोविड-19 मौतों पर सुनवाई कर रहा है और अदालत से अनुरोध किया जाएगा कि वह राज्यों को नोटिस जारी कर पिछले साल और इस साल की मौतों की जानकारी हलफनामा के जरिये उपलब्ध कराए।
उन्होंने कहा, ‘‘यह मामला लंबे समय तक छिपा नहीं रह सकता। यह इतना चकाचौंध वाला है, निश्चित तौर पर यह चुप्पी की साजिश है, यह कोविड-19 से होने वाली मौतों को दबाने के लिए झूठ की साजिश है।’’
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने टीकाकरण पर सरकार की ‘ढुलमुल’ नीति की भी आलोचना की। उन्होंने कहा कि जिन्होंने कोविशील्ड की पहली खुराक ली है उन्हें 12 से 16 सप्ताह बाद दूसरी खुराक लेने को कहा जा रहा है जबकि शुरुआत में उन्हें चार सप्ताह के बाद दूसरी खुराक लेने को कहा गया था।
उन्होंने पूछा कि जिन्होंने चार सप्ताह के अंतर पर दूसरी खुराक ली है क्या उन्हें संक्रमण का खतरा है और उन्हें बूस्टर खुराक लेनी होगी।
चिदंबरम ने आरोप लगाया कि इस सरकार की केवल एक चिंता प्रधानमंत्री की छवि को चमकाना है और इस सरकार का प्रत्येक कदम और प्रत्येक जिम्मेदारी प्रधानमंत्री की छवि की रक्षा करना है।
उन्होंने कहा, ‘‘अगर कोई अच्छा कदम उठाया जाता है और उससे कोई फायदा होता है तब तत्काल उसका श्रेय केंद्र सरकार और खासतौर पर प्रधानमंत्री को जाना चाहिए। लेकिन जब टीके की खरीद की जिम्मेदारी आती है तो उसे राज्य सरकारों पर डाल दिया जाता है। जब टीके की कीमत देने की जिम्मेदारी आती है तो वह राज्य सरकारों पर डाल दी जाती है। जब टीके की वैश्विक निविदा जारी करने की जिम्मेदारी आती है तो वह राज्य सरकारों पर डाल दी जाती है।’’
कांग्रेस ने कोविड-19 महामारी की जिम्मेदारी कथित तौर पर वैज्ञानिकों पर डालने को लेकर प्रधानमंत्री की आलोचना की और कहा कि उनसे क्या उम्मीद की जा सकती है?
वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘उन्होंने राज्यों पर जिम्मेदारी डाल दी। उन्होंने खर्चे राज्यों पर डाल दिया। अब वह जिम्मेदारी बेचारे वैज्ञानिकों पर डाल रहे हैं…वैज्ञानिकों को यह बोझ वहन करना होगा क्योंकि उन्होंने प्रधानमंत्री को पर्याप्त समय रहते नहीं बताया था। कम से कम अब वैज्ञानिकों को प्रधानमंत्री को बताना चाहिए।’’