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कांटों भरा है खड़गे के सिर सजा ‘ताज’, 50 साल का सियासी सफर लेकिन आगे मुश्किल है डगर

कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच ‘सोलिल्लादा सरदारा’ (अजेय नेता) के रूप में लोकप्रिय खड़गे ने बुधवार को देश की सबसे पुरानी पार्टी के प्रमुख की जिम्मेदारी संभाल ली है।

मल्लिकार्जुन खड़गे के कांग्रेस की कमान संभालते ही पार्टी को 24 साल बाद गैर गांधी अध्यक्ष मिल गया। भले ही लंबे सफर के बाद खड़गे को पार्टी में ये सम्मान मिला लेकिन ये सफर इतना आसान नहीं होने वाला। कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच ‘सोलिल्लादा सरदारा’ (अजेय नेता) के रूप में लोकप्रिय खड़गे ने बुधवार को देश की सबसे पुरानी पार्टी के प्रमुख की जिम्मेदारी संभाल ली है। हालांकि इस जिम्मेदारी को उनके लिए ‘कांटों का ताज’ कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
बहुत साधारण पृष्ठभूमि से आने वाले खड़गे एक साधारण कार्यकर्ता से अपने सियासी सफर की शुरुआत कर इस मुकाम तक पहुंचे हैं। अपने पांच दशकों से अधिक के राजनीतिक जीवन में उन्होंने कुशलता से कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाली और राजनीति तथा सत्ता के तमाम उतार-चढ़ावों के बावजूद गांधी परिवार के प्रति पूरी दृढ़ता के साथ वफादार बने रहे। 

कांग्रेस अध्यक्ष बनते ही खड़गे का ऐलान, 50 साल से कम उम्र के नेताओं के लिए आरक्षित होंगे 50% पद

कावेरी नदी जल विवाद हो या शीर्ष कन्नड़ अभिनेता दिवंगत राजकुमार का अपहरण, खड़गे दो दशक पहले कर्नाटक के गृह मंत्री के रूप में ऐसी कई संकटपूर्ण स्थितियों से निपट चुके हैं। खड़गे (80) का सार्वजनिक जीवन अपने गृह जिले गुलबर्ग (अब कलबुर्गी) में एक यूनियन नेता के रूप में शुरू हुआ और वर्ष 1969 में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए तथा गुलबर्ग शहरी कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने। 
कबड्डी और हॉकी से सियासी खेल में पहुंचे खड़गे
अपनी युवावस्था में जाने माने कबड्डी और हॉकी खिलाड़ी रहे खड़गे दशकों तक चुनावी राजनीति में अजेय रहे और कन्नड़ के अलावा हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, उर्दू में उनकी दक्षता से उनके अपने नए पद पर अच्छी स्थिति में होने की उम्मीद है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कर्नाटक खासकर हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र में नरेंद्र मोदी लहर के बावजूद गुलबर्ग से 74 हजार मतों के अंतर से जीत हासिल की। 
2019 में मिली पहली हार
वर्ष 2009 में लोकसभा चुनाव के जरिए राष्ट्रीय राजनीति में आने से पहले उन्होंने गुरुमितकल विधानसभा क्षेत्र से नौ बार जीत दर्ज की। वह गुलबर्ग से दो बार लोकसभा सदस्य रह चुके हैं। हालांकि, वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में खड़गे को बीजेपी के नेता उमेश जाधव से गुलबर्ग में 95,452 मतों से हार का सामना करना पड़ा। अपने गृह राज्य कर्नाटक में ‘सोलिल्लादा सरदारा’ (कभी नहीं हारने वाला नेता) के रूप में मशहूर खड़गे के कई दशकों के सियासी सफर में यह उनकी पहली हार थी।
कई अहम पदों पर निभाई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी
खड़गे ने कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाली जिससे एक प्रशासक के तौर पर उनका अनुभव समृद्ध हुआ। मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार में खरगे ने केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के रूप में श्रम एवं रोजगार, रेलवे और सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण विभाग संभाला। उन्होंने कर्नाटक में कांग्रेस की लगातार कई सरकारों में विभिन्न विभागों का कार्यभार संभाला था।
खड़गे कर्नाटक विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे और कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी (केपीसीसी) प्रमुख भी नियुक्त किए गए। लोकसभा में वर्ष 2014 से 2019 तक खरगे कांग्रेस के नेता रहे। जून, 2020 में खरगे कर्नाटक से राज्यसभा के लिए निर्विरोध निर्वाचित हुए और हाल तक उच्च सदन में विपक्ष के 17वें नेता थे।
कभी राजनीतिक विवाद का हिस्सा नहीं बने खड़गे
खड़गे को कई बार कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद के शीर्ष दावेदार के रूप में देखा गया, लेकिन वह कभी इस पद पर नहीं पहुंच पाए। मिजाज और स्वभाव से सौम्य खड़गे कभी किसी बड़ी राजनीतिक समस्या या विवाद में नहीं फंसे। 
राजनीति से पहले वकालत करते थे खड़गे
बीदर जिले के वारावट्टी में 21 जुलाई, 1942 को गरीब परिवार में जन्मे खड़गे ने स्कूली पढ़ाई के अलावा स्नातक की पढ़ाई कलबुर्गी में की। विधि स्नातक खड़गे राजनीति में आने से पहले वकालत के पेशे में थे। वह बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं और कलबुर्गी में बुद्ध विहार परिसर में निर्मित सिद्धार्थ विहार ट्रस्ट के संस्थापक-अध्यक्ष हैं। उन्होंने 13 मई, 1968 को राधाबाई से विवाह रचाया और उनकी दो बेटियां और तीन बेटे हैं।
 उनके एक बेटे प्रियंक खड़गेविधायक हैं और कर्नाटक में मंत्री रहे हैं। नरेंद्र मोदी नीत सरकार के मुखर आलोचक खड़गेके कांग्रेस का नेतृत्व करने से कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहन मिलने और राज्य में पार्टी में एकजुटता की उम्मीद है, जहां अगले साल अप्रैल तक विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। खड़गे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के अध्यक्ष बनने वाले एस निजालिंगप्पा के बाद कर्नाटक के दूसरे नेता हैं। 

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