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कांग्रेस का तीखा वार : श्रम सुधार संबंधी संहिताएं मजूदर विरोधी, सरकार के ‘डीएनए में’ है निर्णय थोपना

कांग्रेस ने संसद से हाल ही में पारित श्रम सुधार संहिता संबंधी तीन विधेयकों को मजूदर विरोधी करार देते हुए शनिवार को दावा किया कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को ताक पर रखकर अपने निर्णय थोपना ‘इस सरकार के डीएनए में’ है और इन संहिताओं को लेकर भी यही किया गया है।

कांग्रेस ने संसद से हाल ही में पारित श्रम सुधार संहिता संबंधी तीन विधेयकों को मजूदर विरोधी करार देते हुए शनिवार को दावा किया कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को ताक पर रखकर अपने निर्णय थोपना ‘इस सरकार के डीएनए में’ है और इन संहिताओं को लेकर भी यही किया गया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने यह भी कहा कि इन संहिताओं के विरोध में कांग्रेस सड़क पर उतरेगी और मजदूरों के हित सुनिश्चित करने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेगी। 
राज्यसभा ने गत बुधवार को उपजीविकाजन्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशा संहिता 2020, औद्योगिक संबंध संहिता 2020 और सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 को मंजूरी दी, जिनके तहत कंपनियों को बंद करने की बाधाएं खत्म होंगी और अधिकतम 300 कर्मचारियों वाली कंपनियों को सरकार की इजाजत के बिना कर्मचारियों को हटाने की अनुमति होगी। लोकसभा ने इन तीनों विधेयकों को मंगलवार को पारित किया था 
पूर्व केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री खड़गे ने वीडियो लिंक के माध्यम से संवाददाताओं से कहा, ‘‘ सरकार का कहना है कि कारोबारी सुगमता के लिए ये संहिताएं लाई गईं। सरकार की यह बात सत्य से दूर है क्योंकि 2014 में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने कहा था कि कारोबार जगत के सिर्फ 10 प्रतिशत लोगों को कानून में थोड़े बदलाव की जरूरत लगती है और उन्हें ही मौजूदा कानूनों से दिक्कत है। 
खड़गे ने दावा किया कि सरकार ने किसानों से जुड़े विधेयकों की तरह इन संहिताओं में भी विपक्ष को संशोधन का मौका नहीं दिया। उन्होंने कहा, ‘‘ मैं तो एक मजदूर का बेटा हूं। प्रधानमंत्री भी चाय वाले थे और उनको गरीबों का दर्द समझना चाहिए। लेकिन वह नहीं समझ रहे कि अगर 8 घंटे काम करने की बजाय 12 घंटे काम करने की छूट दी गई तो फिर क्या होगा। सरकार को मजदूरों की चिंता नहीं है।’’ 
कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने आरोप लगाया, ‘‘ इस सरकार ने श्रमिकों के साथ बहुत बड़ा धोखा ठीक उसी प्रकार से किया जैसे कि किसानों के साथ किया। कारोबारी सुगमता का बहाना बनाया जा रहा है, लेकिन इन संहिताओं में श्रमिकों के लिए कोई सुरक्षा कवच नहीं है।’’ 
उन्होंने यह दावा भी किया, ‘‘लोकतांत्रिक प्रक्रिया को ताक पर रखते हुए निर्णय लेना और निर्णय देश पर थोप देना इस सरकार की आदत बन गई है। समाज पर, किसानों पर, श्रमिकों पर, नौजवानों पर निर्णय थोपना उसकी आदत है। यह उसके डीएनए में है।’’ 
श्रमिक संगठन इंटक के अध्यक्ष जी संजीव रेड्डी ने आरोप लगाया कि सरकार श्रमिकों के हितों के खिलाफ काम कर रही है और इन संहिताओं से मजदूरों के लिए बहुत मुश्किलें पैदा होंगी तथा श्रमिक संगठनों की भूमिका को भी खत्म किया जा रहा है। 
उन्होंने कहा कि सभी श्रमिक संगठन इन संहिताओं के खिलाफ देश भर में आंदोलनरत हैं और आने वाले समय में यह आंदोलन तेज होगा। 

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