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पूर्व प्रधान न्यायाधीश के राज्यसभा में मनोनयन पर उठा विवाद, विपक्षी दलों ने इसे सरकार का “निर्लज्ज” कृत्य करार दिया

भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई को राज्यसभा में मनोनीत किये जाने को लेकर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने सवाल उठाते हुए आरोप लगाया कि सरकार के इस ‘‘निर्लज्ज कृत्य’’ ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता को हड़प लिया है

भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई को राज्यसभा में मनोनीत किये जाने को लेकर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने सवाल उठाते हुए आरोप लगाया कि सरकार के इस ‘‘निर्लज्ज कृत्य’’ ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता को हड़प लिया है, वहीं गोगोई ने कहा कि वह राज्य सभा के सदस्य के तौर पर शपथ लेने के बाद मनोनयन को स्वीकार करने पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
विपक्षी दलों द्वारा उठाए जा रहे सवालों के बीच उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश कुरियन जोसफ ने हैरानगी जताई और कहा कि गोगोई द्वारा इस मनोनयन को स्वीकार किये जाने ने न्यायापालिका में आम आदमी के विश्वास को हिला कर रख दिया है। 
पत्रकारों ने जब जोसफ से इस बारे में प्रतिक्रिया मांगी तो उन्होंने आरोप लगाया कि गोगोई ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता व निष्पक्षता के ‘पवित्र सिद्धांतों से समझौता’ किया। 
पूर्व न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मेरे मुताबिक, राज्यसभा के सदस्य के तौर पर मनोनयन को पूर्व प्रधान न्यायाधीश द्वारा स्वीकार किये जाने ने निश्चित रूप से न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर आम आदमी के भरोसे को झकझोर दिया है।’’ उन्होंने कहा कि न्यायपालिका भारत के संविधान के मूल आधार में से एक है।
 
जोसफ ने गोगोई, जे चेलामेश्वर और मदन बी लोकुर के साथ सार्वजनिक रूप से जनवरी 2018 में एक संवाददाता सम्मेलन कर तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व पर सवाल उठाए थे। 
जोसफ ने इस संवाददाता सम्मेलन के संदर्भ में कहा, ‘‘मैं हैरान हूं कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिये कभी ऐसा दृढ़ साहस दिखाने वाले न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने कैसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता के पवित्र सिद्धांत से समझौता किया है।’’ 
पिछले साल नवंबर में भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) के पद से सेवानिवृत्त होने वाले गोगोई ने कहा कि शपथ लेने के बाद वह मनोनयन स्वीकार करने पर विस्तार से बात करेंगे। 
उन्होंने गुवाहाटी में संवाददाताओं से कहा, “पहले मुझे शपथ लेने दीजिए, इसके बाद मैं मीडिया से इस बारे में विस्तार से चर्चा करूंगा कि मैंने यह पद क्यों स्वीकार किया और मैं राज्यसभा क्यों जा रहा हूं।” 
राज्यसभा के लिये मनोनयन की हो रही आलोचना पर गोगोई ने एक स्थानीय समाचार चैनल को बताया, “मैंने राज्यसभा के लिये मनोनयन का प्रस्ताव इस दृढ़विश्वास की वजह से स्वीकार किया कि न्यायपालिका और विधायिका को किसी बिंदु पर राष्ट्र निर्माण के लिये साथ मिलकर काम करना चाहिए।” 
उन्होंने कहा, “संसद में मेरी मौजूदगी विधायिका के सामने न्यायपालिका के नजरिये को रखने का एक अवसर होगी।” इसी तरह विधायिका का नजरिया भी न्यायपालिका के सामने आएगा। 
पूर्व सीजेआई ने कहा, “भगवान संसद में मुझे स्वतंत्र आवाज की शक्ति दे। मेरे पास कहने को काफी कुछ है, लेकिन मुझे संसद में शपथ लेने दीजिए और तब मैं बोलूंगा।” 
कांग्रेस ने केंद्र पर संविधान के मौलिक ढांचे पर गंभीर हमला करने का आरोप लगाते हुए कहा कि यह कार्रवाई न्यायपालिका की स्वतंत्रता को हड़प लेती है। 
राजस्थान के मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत ने कहा कि इससे न्यायिक प्रणाली में जनता का विश्वास कमजोर होगा और उनके द्वारा दिए गए फैसलों की निष्पक्षता पर संदेह पैदा करेगा।
 
गहलोत ने ट्वीट किया, ‘‘राजग सरकार द्वारा न्यायमूर्ति गांगोई को उनकी सेवानिवृत्ति के बाद राज्यसभा सदस्य के रूप में मनोनीत किया जाना आश्चर्यजनक है।’’ 
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता महेश तपासे ने कहा कि सरकार को उन न्यायाधीशों को उच्च सदन में मनोनीत करने से बचना चाहिए जिन्होंने संवेदनशील मामलों की सुनवाई की हो। 
गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने अयोध्या भूमि विवाद मामले समेत कई संवेदनशील मामलों की सुनवाई की थी। गोगोई को केंद्र सरकार द्वारा सोमवार को राज्यसभा के लिये मनोनीत किया गया था। पूर्व सीजेआई ने राफेल लड़ाकू विमान सौदे और सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के मामले की सुनवाई करने वाली पीठ की भी अध्यक्षता की थी। 
माकपा ने गोगोई को राज्यसभा के लिए मनोनीत किये जाने को न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर करने का ”शर्मनाक” प्रयास करार दिया। 
पार्टी ने एक बयान में कहा, ”मोदी सरकार पूर्व प्रधान न्यायाधीश को राज्यसभा के लिये मनोनीत करके शर्मनाक तरीके से न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर कर रही है और राज्य के दो अंगों के बीच शक्तियों के विभाजन को तहस-नहस कर रही है, जोकि हमारी संवैधानिक व्यवस्था में निहित पवित्र सिद्धांत है।” 
एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने पूछा कि क्या गोगोई के मनोनयन में ‘‘परस्पर लेन-देन’’ है? 
उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘कई लोग सवाल उठा रहे हैं, न्यायाधीशों की स्वतंत्रता पर लोगों को विश्वास कैसे रहेगा?’’ 
कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि इस फैसले ने न्यायापालिका पर लोगों के विश्वास को चोट पहुंचाई है। 
कांग्रेस नेता ने कहा कि मोदी सरकार ने पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली के उस कथन का भी ख्याल नहीं रखा जिसमें उन्होंने न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति के बाद पदों पर नियुक्ति का विरोध किया था। 
सिंघवी ने जेटली की टिप्पणी का उल्लेख करते हुए कहा, ‘‘मोदीजी अमित शाह जी हमारी नहीं तो अरुण जेटली की तो सुन लीजिए। क्या उन्होंने न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति के बाद न्यायाधीशों पर दरियादिली के खिलाफ नहीं कहा और लिखा था? क्या आपको याद है?’’ 
उन्होंने ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘कांग्रेस यह कहना चाहती है कि हमारे सबसे महत्वपूर्ण और व्यापक स्तंभ न्यायपालिका पर आघात किया गया है। ’’ 
न्यायाधीश और सीजेआई के तौर पर उनका कार्यकाल विवादों में भी रहा क्योंकि उन पर यौन उत्पीड़न का भी आरोप लगा, हालांकि बाद में वह उस मामले में बेदाग बरी हुए। 
गोगोई जनवरी 2018 में न्यायालय के चार वरिष्ठ न्यायाधीशों के साथ तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश के काम करने के तरीके के खिलाफ अभूतपूर्व संवाददाता सम्मेलन करने वालों में शामिल थे। 
उनके नेतृत्व वाली पीठ ने मोदी सरकार को दो बार क्लीन चिट भी दी- पहले रिट याचिका पर और फिर राफेल लड़ाकू विमान सौदे में 14 दिसंबर 2018 के फैसले पर पुनर्विचार से जुड़ी याचिका पर। 
उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को राफेल मामले में कुछ टिप्पणियों में शीर्ष अदालत का गलत हवाला दिये जाने पर उन्हें चेतावनी भी दी थी।

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