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महीनों के लॉकडाउन के बाद भी नहीं थम रहा है कोरोना, जानिये भारत क्यों चुका रहा है भारी कीमत

राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन लागू होने के समय देश में कोविड-19 के महज 500 मामले थे, जो छह महीने बाद बढ़ कर 57 लाख पहुंच गये हैं। देश के एक छोर से दूसरे छोर तक यह वायरस तेजी से फैल रहा है, लेकिन अब तक यह सुनिश्चित नहीं हो पाया है कि महामारी कब तक काबू हो पाएगी।

राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन लागू होने के समय देश में कोविड-19 के महज 500 मामले थे, जो छह महीने बाद बढ़ कर 57 लाख पहुंच गये हैं। काफी अधिक संख्या में जांच होने और टीके के परीक्षण के बीच देश के एक छोर से दूसरे छोर तक यह वायरस तेजी से फैल रहा है, लेकिन अब तक यह सुनिश्चित नहीं हो पाया है कि महामारी कब तक काबू हो पाएगी। 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च को देश में 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा करते हुए कहा था कि कोरोना वायरस संक्रमण की ‘चेन’ तोड़ने के लिये यही एकमात्र तरीका है। उस वक्त तक देश में कोविड-19 के करीब 500 मामले सामने आये थे और 12 संक्रमितों की मौत हुई थी। इसके छह महीने के अंदर ही भारत कोविड-19 के मामलों के संदर्भ में अमेरिका के बाद विश्व में दूसरे स्थान पर पहुंच गया। 
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा बृहस्पतिवार सुबह आठ बजे जारी किए गए अद्यतन आंकड़ों के अनुसार एक दिन में कोविड-19 के 86,508 नए मामले सामने आने के बाद देश में संक्रमण के मामले बढ़कर 57,32,518 हो गए हैं। वहीं, पिछले 24 घंटे में 1,129 और मरीजों की मौत हो जाने के बाद मृतक संख्या बढ़कर 91,149 हो गई। अमेरिकी अर्थशास्त्री एवं महामारी विज्ञानी आर. लक्षमीनारायण ने कहा कि देश के सभी हिस्सों में संक्रमण तेजी से फैल रहा है, हालांकि जिन क्षेत्रों में कम जांच हो रही है वहां इस महामारी का प्रकोप कम दिख रहा है। 
वाशिंगटन में सेंटर फॉर डिजीज डायनेमिक्स, इकनॉमिक्स एंड पॉलिसी के निदेशक ने कहा, ‘‘हम उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में कुछ वृद्धि देख सकते हैं लेकिन सिर्फ आरटी-पीसीआर जांच बढ़ने पर ही। फिलहाल, देश के कई हिस्सों में महामारी का प्रकोप नजर नहीं आ रहा है, जहां स्वास्थ्य प्रणाली कमजोर है। ’’ उन्होंने कहा, ‘‘संक्रमण धीमी दर से फैल रहा है, ऐसे में यदि लोग एहतियात नहीं बरतेंगे तो निश्चित तौर पर यह बेकाबू हो जाएगा।’’ 
हालांकि, उन्होंने उम्मीद जताई कि अगले एक-दो महीनों में कोविड-19 के मामलों में कमी आनी शुरू हो जाएगी क्योंकि भारत एक तरह से ‘‘जनसंख्या प्रतिरक्षा’’ की ओर बढ़ रहा है। काफी बड़ी संख्या में जनसंख्या संक्रमित हुई है और इस रोग से बड़ी तादाद में मरीज उबरे भी हैं, उनके द्वारा वायरस को फैलाने की संभावना कम है। 
प्रधानमंत्री द्वारा लॉकडाउन की घोषणा किये जाने से एक दिन पहले और इसके लागू होने से दो दिन पहले, भारत में 18,383 नमूनों की जांच की गई थी। 22 सितंबर तक कम से कम 6,62,79,462 जांच हो चुकी थी, जिनमें आरटी-पीसीआर और रैपिड एंटीजन दोनों शामिल हैं। 
वहीं, 46 लाख से अधिक लोग संक्रमण मुक्त हुए हैं। देश में मरीजों के ठीक होने की दर 81.55 प्रतिशत हो गई है। 
प्रतिरक्षा विज्ञानी सत्यजीत रथ ने आगाह करते हुए कहा कि भारत अब भी समुदायों के बीच संक्रमण फैलाने वाले चरण में मौजूद है। 
नयी दिल्ली स्थित राष्ट्रीय प्रतिरक्षाविज्ञान संस्थान (एनआईआई) के वैज्ञानिक रथ ने कहा, ‘‘…यह महामारी अब घने जनसंख्या घनत्व वाले शहरी क्षेत्रों से देश के शेष हिस्से में फैल रही है। ’’ उन्होंने कहा कि वायरस संक्रमण का प्रसार वास्तव में कभी भी नियंत्रण में नहीं रहा। रथ ने कहा, ‘‘शुरूआत में लंबे लॉकडाउन लागू किये जाने से संक्रमण के बड़े पैमाने पर फैलने में कुछ देर की गई। लेकिन नियंत्रण की कभी संभावना नहीं रही। इसलिए हम संक्रमण की संख्या में निश्चित तौर पर वृद्धि देखने जा रहे हैं।’’ 
प्रतिरक्षा विज्ञानी विनीता बल ने रथ के विचारों से सहमति जताते हुए कहा कि भारत सरकार ने विश्व के अन्य हिस्सों के अनुभव से ज्यादा कुछ नहीं सीखा और कड़ा लॉकडाउन लागू कर दिया जो लंबे समय तक विस्तारित किया गया। पुणे के भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान से ताल्लुक रखने वाली प्रतिरक्षा विज्ञानी ने कहा, ‘‘देश के नेतृत्व में दूरदृष्टि का अभाव है और वह गरीबों की जमीनी हकीकत नहीं भांप सके, या फिर उनकी परवाह नहीं की।’’ 
बल ने कहा, ‘‘दशकों तक जन स्वास्थ्य ढांचे की बहुत ज्यादा अनदेखी किये जाने के कारण महामारी से निपटने की हमारी तैयारियां बहुत खराब थी। लॉकडाउन लागू करने के पीछे यही एकमात्र तर्कसंगत वजह रही होगी। ’’ वहीं, लक्ष्मीनारायण ने इससे अलग विचार प्रकट किये। उन्होंने कहा कि नियंत्रण करने की रणनीति के बारे में कई सकारात्मक चीजें हैं जिनमें भारत द्वारा खतरे की शीघ्र पहचान और शुरूआत में ही लॉकडाउन लागू करना भी शामिल है, हालांकि क्रियान्वयन एवं योजना कहीं बेहतर हो सकती थी। 
उन्होंने कहा कि महामारी के शुरूआती दिनों में शीघ्र जांच के अभाव की कीमत देश को चुकानी पड़ी। बेहतर और कहीं अधिक विस्तृत जांच शुरूआत में होने पर, जिसके लिये भारत सक्षम भी था, लॉकडाउन राष्ट्रव्यापी लागू किये जाने के बजाय, लक्षित क्षेत्रों तक सीमित रखा जा सकता था। रथ ने कहा कि शुरूआत में ही कड़े लॉकडाउन लागू कर दिये जाने से कहीं अधिक समस्याएं पैदा हुई, बजाय समाधान निकलने के। 
उन्होंने कहा कि इसने कुछ हद तक बड़े पैमाने पर संक्रमण में देर की लेकिन इसने आर्थिक गतिविधियों को नुकसान पहुंचाया और स्वास्थ्य प्रणाली को बाधित कर दिया। बल ने इस बात का जिक्र किया कि भारत स्वास्थ्य ढांचे को लंबे समय तक नजरअंदाज किये जाने की कीमत चुका रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘बुनियादी ढांचा तैयार करने, उसका उन्नयन करने की पिछले छह महीने में गंभीर कोशिशें की गईं लेकिन वह अब भी पर्याप्त नहीं है। ’’ 
कोविड-19 के टीके के बारे में विशेषज्ञों ने कहा कि भारत में कम कम से कम आठ टीके विकसित किये जा रहे हैं, जिनमें से दो दूसरे चरण के परीक्षण में प्रवेश कर चुके हैं। 

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