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न्यायालय ने अवमानना के दोषी वकील को तीन महीने की सजा दी, माफी मांगने पर सजा निलंबित की

उच्चतम न्यायालय ने अधिवक्ताओं को ‘वरिष्ठ अधिवक्ता’ की पदवी प्रदान करने से संबंधित मामले में न्यायाधीशों को धमकाने का प्रयास करने पर

उच्चतम न्यायालय ने अधिवक्ताओं को ‘वरिष्ठ अधिवक्ता’ की पदवी प्रदान करने से संबंधित मामले में न्यायाधीशों को धमकाने का प्रयास करने पर वकील मैथ्यूज जे नेदुम्परा को अदालत की अवमानना के अपराध में बुधवार को तीन महीने की जेल की सजा सजा सुनाई।

न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन और न्यायमूर्ति विनीत सरन की पीठ ने मैथ्यूज द्वारा बिना शर्त माफी मांगने और भविष्य में शीर्ष अदालत या बंबई उच्च न्यायालय के किसी भी न्यायाधीश को धमकाने का प्रयास नहीं करने का आश्वासन देने पर उनकी सजा निलंबित कर दी। हालांकि, पीठ ने मैथ्यूज के एक साल तक उच्चतम न्यायालय में वकील के रूप में वकालत करने पर रोक लगा दी।

इस बीच, शीर्ष अदालत ने पीठ में शामिल दोनों न्यायाधीशों के खिलाफ गंभीर आरोप लगाने को लेकर मैथ्यूज और तीन अन्य को ताजा अवमानना नोटिस जारी किया।

न्यायालय ने कहा कि प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और शीर्ष अदालत के अन्य न्यायाधीशों को प्राप्त हुए एक पत्र में पीठ के दोनों सदस्यों के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए गए हैं।

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पीठ ने प्रधान न्यायाधीश से अनुरोध किया कि वह अवमानना के ताजा मामले पर सुनवाई के लिए एक उचित पीठ बनाएं, क्योंकि मौजूदा पीठ के दोनों सदस्यों के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए गए हैं।

शीर्ष अदालत ने अधिवक्ताओं को ‘वरिष्ठ अधिवक्ता’ की पदवी प्रदान करने की मौजूदा व्यवस्था को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान मैथ्यूज द्वारा न्यायाधीशों के पुत्र-पुत्रियों को प्राथमिकता दिये जाने का आरोप लगाते वक्त एक वरिष्ठ अधिवक्ता का नाम लेने की वजह से उन्हें न्यायालय की अवमानना का दोषी ठहराया था।

शीर्ष अदालत ने कहा था कि मैथ्यूज ने अदालतों को धमकाने का प्रयास किया और इस आचरण के लिये उन्हें कठोर दंड मिलना चाहिए।
मैथ्यूज के संगठन नेशनल लायर्स कैंपेन फार ज्यूडीशियल ट्रांसपेरेन्सी एंड रिफार्म्स ने अधिवक्ता कानून, 1961 की धारा 16(2) की वैधानिकता को चुनौती दी है। इस धारा के अनुसार अधिवक्ताओं के दो वर्ग होने चाहिए।

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