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SC ने एक व्यक्ति की जमानत मंजूर करते हुए कहा- इलाहाबाद HC का रुख उचित नहीं

देश की शीर्ष अदालत, उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि वह एक व्यक्ति की जमानत याचिका इस आधार पर खारिज करने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के दृष्टिकोण की ‘सराहना नहीं कर सकता’ कि अपील को ही सुना जाना चाहिए, क्योंकि बड़ी संख्या में लंबित अपीलों के कारण जमानत याचिका की सुनवाई किसी उद्देश्य की पूर्ति नहीं करता है।  

व्यक्ति ने 14 साल से अधिक की वास्तविक सजा काट ली है 

शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय का आदेश निरस्त करते हुए अपीलकर्ता की जमानत याचिका मंजूर कर ली और कहा कि अभी तक संबंधित व्यक्ति ने 14 साल से अधिक की वास्तविक सजा काट ली है, जबकि उसकी अपील उच्च न्यायालय के समक्ष सात साल से लंबित है। व्यक्ति ने निचली अदालत के 2013 के आदेश के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था और अपील लंबित रहने के दौरान जमानत अर्जी दाखिल की थी। 

न्यायमूर्ति एस. के. कौल और न्यायमूर्ति एम. एम. सुन्दरेश की पीठ ने अपने एक अप्रैल के आदेश में कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि यह आदेश इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखा जाये और अन्य न्यायाधीशों के बीच इसे जारी किया जाए ताकि हम उनके रुख में बदलाव देख सकें। इससे लंबे समय से हिरासत में रखे गये लोगों को तो राहत मिलेगी ही, इस शीर्ष अदालत पर बेवजह का दबाव भी कम होगा।’’  

जमानत अर्जी दिसम्बर 2019 में खारिज कर दी थी 

शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय ने अपीलकर्ता की जमानत अर्जी दिसम्बर 2019 में खारिज कर दी थी और पेपरबुक तैयार करके उसकी अपील की त्वरित सुनवाई के लिए दो सप्ताह के भीतर सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया था, लेकिन पीठ को अवगत कराया गया है कि अपीलकर्ता ने याचिका सूचीबद्ध करने के लिए तीन बार अदालत से गुहार लगायी थी। 

न्यायालय ने कहा कि इसे गत वर्ष अक्टूबर में सूचीबद्ध तो किया गया परंतु सुनवाई नहीं की गयी। पीठ ने कहा कि यदि उच्च न्यायालय के आदेश में ही उल्लेखित तारीख ली जाये तो अपीलकर्ता ने तब तक 12 वर्ष जेल में काट लिये थे। न्यायालय ने कहा कि यदि अपील लंबित है तो उसे इसका कोई कारण नहीं नजर आता कि इस तरह की एकल घटना से जुड़े मामले में जमानत क्यों नहीं दी जा सकती।