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चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियों पर न्यायालय का आदेश : रीजीजू ने ‘लक्ष्मण रेखा’ की ओर ध्यान दिलाया

कानून मंत्री किरेन रीजीजू ने शनिवार को कार्यपालिका और न्यायपालिका समेत विभिन्न संस्थाओं की मार्गदर्शक संवैधानिक ‘लक्ष्मण रेखा’ की ओर ध्यान दिलाया और हैरानी जताते हुए सवाल किया कि यदि न्यायाधीश प्रशासनिक नियुक्तियों का हिस्सा बनते हैं, तो न्यायिक कार्यों को कौन करेगा।

रीजीजू ने उच्चतम न्यायालय के हाल के एक फैसले के बारे में पूछे गये सवाल के जवाब में यह बात कही। उच्चतम न्यायालय की एक पीठ ने सरकार को निर्देश दिया है कि वह नया कानून बनने तक मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और अन्य चुनाव आयुक्तों का चयन करने के लिए प्रधानमंत्री, भारत के प्रधान न्यायाधीश और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष की सदस्यता वाली एक समिति का गठन करे।

मंत्री ने ‘इंडिया टुडे कॉन्क्लेव’ में कहा, ‘‘ चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया संविधान में दी गई है। संसद को एक कानून बनाना है, जिसके अनुरूप नियुक्ति की जानी है। मैं मानता हूं कि इसके लिए संसद में कोई कानून नहीं है, यहां एक रिक्तता है।’’

रीजीजू ने कहा कि वह उच्चतम न्यायालय के निर्णय की आलोचना नहीं कर रहे हैं और ना ही इसके ‘परिणामों’ के बारे में बात कर रहे हैं।

मंत्री ने कहा कि उनका मानना है कि यदि न्यायाधीश प्रशानसिक कार्यों में लिप्त होते हैं, तो उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ेगा। रीजीजू ने कहा, ‘‘मान लीजिए कि आप प्रधान न्यायाधीश या एक न्यायाधीश हैं। आप एक प्रशासनिक प्रक्रिया का हिस्सा हैं, जिस पर सवाल उठेंगे। फिर यह मामला आपकी अदालत में आयेगा। क्या आप एक ऐसे मामले में फैसला कर सकते हैं, जिसका आप हिस्सा हैं? यहां न्याय के सिद्धांत से समझौता होगा। इसलिए, संविधान में ‘लक्ष्मण रेखा’ बहुत स्पष्ट है।’’

उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में अपने ऐतिहासिक फैसले में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को कार्यपालिका के हस्तक्षेप से अलग करते हुए कहा था कि राष्ट्रपति द्वारा एक समिति की सलाह पर की जाएगी, जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष और देश के प्रधान न्यायाधीश शामिल होंगे।

न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने आम सहमति से यह फैसला देते हुए कहा था कि यह नियम तब तक जारी रहेगा, जब तक कि संसद इस मामले में कोई कानून नहीं बना देती।

अगले साल 14 फरवरी को चुनाव आयुक्त अनूप चंद्र पांडेय सेवानिवृत्त होंगे और एक पद रिक्त होगा।

एक सवाल के जवाब में कहा लोकतांत्रिक ढांचे में मत भिन्नता और रुख में अंतर होता है, लेकिन इसे ‘टकराव’ कहना ठीक नहीं है।

रीजीजू ने यह भी माना कि न्यायाधीशों की नियुक्ति न्यायिक कार्य ना होकर ‘शुद्ध रूप से प्रशासनिक प्रकृति’ का है। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुसार न्यायाधीशों की नियुक्ति सरकार की जिम्मेदारी है।

समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर उन्होंने दोहराया कि ऐसे मुद्दों पर संसद में बहस होनी चाहिए, जो लोगों की इच्छा को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि यदि संसद द्वारा पारित कोई कानून संविधान की भावना को नहीं दर्शाता है, तो उच्चतम न्यायालय के पास इसे बदलने या इसके खिलाफ फैसला देने या इसे संसद को वापस भेजने का विकल्प है।