सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज (रिटायर्ड) जस्टिस ए.के. सीकरी ने कहा कि केवल पर्यावरण की खातिर विकास की बलि नहीं दी जा सकती। हालांकि वर्तमान और भावी पीढ़ियों के हितों को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता।
विकास और पर्यावरण के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि अदालतों को ऐसे मामलों से निपटने के दौरान दोनों के बीच मजबूत संतुलन बनाने की जरूरत है। न्यायमूर्ति सीकरी ने कहा कि सतत विकास महत्वपूर्ण है, पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली परियोजना में सुधार करने के लिए कहा जा सकता है और प्रदूषकों को पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए भुगतान करने के लिए कहा जा सकता है।
न्यायमूर्ति सीकरी ने कहा, विकास टिकाऊ होना चाहिए
उन्होंने कहा, इसका पर्यावरण पर बुरा प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। प्रदूषण फैलाने वाले भुगतान के लिए बाध्य हैं। जब हम पर्यावरण की बात करते हैं तो यह सिर्फ हमारी पीढ़ी के लिए नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी होता है। हमें सावधानी बरतनी होगी। हालांकि, केवल पर्यावरण के लिए, हम विकास का त्याग नहीं कर सकते। उन्होंने कहा, पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन बनाना न्यायपालिका का कर्तव्य है। अदालतों को प्रतिकूल प्रभाव के प्रति सचेत रहना चाहिए कि परियोजनाओं के रुकने या देरी से अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा। परियोजनाओं को केवल मानवता के आधार पर नहीं रोका जा सकता। निर्णय लेते समय न्यायपालिका को इस पर विचार करने की जरूरत है।
शुद्ध निर्यातक होने के बजाय शुद्ध आयातक बन गया
पर्यावरण संबंधी चिंताओं पर न्यायपालिका या नियामक एजेंसियों द्वारा लिए गए निर्णयों के बाद ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां आर्थिक रूप से आशाजनक परियोजनाओं को रोक दिया गया या बंद कर दिया गया। स्टरलाइट कॉपर, गोवा खनन और कोयला ब्लॉक आवंटन जैसे मामलों में फैसलों ने देश की अर्थव्यवस्था पर भारी असर डाला है। 2018 में स्टरलाइट कॉपर के तूतीकोरिन प्लांट के बंद होने के बाद से, जो देश के तांबे के उत्पादन में 40 प्रतिशत का योगदान करता था, भारत धातु का शुद्ध निर्यातक होने के बजाय शुद्ध आयातक बन गया।
न्यायमूर्ति सीकरी ने कहा कि अदालतों को रिट याचिका के आधार पर सावधानी पूर्वक निर्णय करने चाहिए। ऐसा इसलिए, मान लीजिए अगर याचिका खारिज हो जाती है, तो परियोजना और अर्थव्यवस्था दोनों को भारी नुकसान होता है।