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रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा- भारत सहायता चाहने वाले देशों को उपदेश देने में विश्वास नहीं करता

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मंगलवार को कहा कि भारत जरूरतमंद देशों को “उपदेश या पूर्व निर्धारित” समाधान देने में विश्वास नहीं करता है और यह मानता है कि बेहतर सैन्य शक्ति वाले देशों को दूसरों पर अपने समाधान थोपने का अधिकार नहीं है।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मंगलवार को कहा कि भारत जरूरतमंद देशों को “उपदेश या पूर्व निर्धारित” समाधान देने में विश्वास नहीं करता है और यह मानता है कि बेहतर सैन्य शक्ति वाले देशों को दूसरों पर अपने समाधान थोपने का अधिकार नहीं है।उनके यह बयान स्पष्ट तौर पर चीन के आक्रामक व्यवहार के संदर्भ में था।
‘एयरो इंडिया’ में लगभग 30 देशों के अपने समकक्षों और उप रक्षा मंत्रियों को संबोधित करते हुए सिंह ने कहा कि भारत हमेशा एक नियम-आधारित वैश्विक व्यवस्था के लिए खड़ा रहा है जिसमें सभी संप्रभु राष्ट्रों के बीच “सही होने की संभावना” की मौलिक प्रवृत्ति को निष्पक्षता, सम्मान और समानता से प्रतिस्थापित किया जाता है।
शेष टीम को फैसले के बारे में बताया
सिंह ने चीन या किसी अन्य देश का नाम लिए बिना कहा कि समस्याओं को हल करने के लिए “ऊपर से आदेश देने” (टॉप डाउन अप्रोच) की अवधारणा कभी टिकाऊ नहीं रही है, अक्सर यह “कर्ज के जाल, स्थानीय आबादी की ओर से प्रतिक्रिया तथा संघर्ष” की ओर जाती है।‘टॉप डाउन अप्रोच’ एक ऐसी रणनीति है जिसमें निर्णय लेने की प्रक्रिया उच्चतम स्तर पर होती है और फिर शेष टीम को उस फैसले के बारे में बताया जाता है।
पूरी दुनिया पर विनाशकारी प्रभाव डाला
सामूहिक दृष्टिकोण पर भारत की तवज्जो का उल्लेख करते हुए सिंह ने कहा कि कैसे कोविड-19 महामारी “एक देश” में उत्पन्न हुई और कैसे कुछ ही समय में इसने पूरी दुनिया पर विनाशकारी प्रभाव डाला। उन्होंने कहा कि संकट ने एक बार फिर इस बात को रेखांकित किया कि “हम सभी एक ही नाव में सवार हैं और हम या तो एक साथ डूबते हैं या एक साथ तैरते हैं।”एसपीईईडी (शेयर्ड प्रॉस्पेरिटी थ्रू एनहेंस्ड एंगेजमेंट्स इन डिफेंस) शीर्षक वाले सम्मेलन में सिंह ने आतंकवाद जैसी चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए एकजुट प्रयासों का भी आह्वान किया और कहा कि राष्ट्रों के समग्र विकास और समृद्धि के लिए सामूहिक सुरक्षा “अनिवार्य शर्त” बन गई है।
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 सुरक्षा मुद्दों से निपटने में विश्वास नहीं करता
सिंह ने सुरक्षा खतरों का मुकाबला करने के लिए नई रणनीतियों को तैयार करने की आवश्यकता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि भारत “पुराने पितृसत्तात्मक या नव-उपनिवेशवादी प्रतिमानों” में इस तरह के सुरक्षा मुद्दों से निपटने में विश्वास नहीं करता है।उन्होंने कहा, “हम सभी देशों को समान भागीदार मानते हैं। इसलिए, हम किसी देश की आंतरिक समस्याओं के लिए बाहरी या ‘सुपर नेशनल’ समाधान थोपने में विश्वास नहीं करते हैं।”
 देशों की क्षमता निर्माण का समर्थन करते हैं 
उन्होंने कहा, “हम धर्मोपदेश या पहले से निर्धारित ऐसे समाधान देने में विश्वास नहीं करते हैं जो सहायता चाहने वाले देशों के राष्ट्रीय मूल्यों और बाधाओं का सम्मान नहीं करते हैं। इसके बजाय हम अपने सहयोगी देशों की क्षमता निर्माण का समर्थन करते हैं ताकि वे अपनी नियति खुद तय कर सकें।”सिंह ने कहा, “ऐसे राष्ट्र हैं जो दूसरों की तुलना में समृद्ध, सैन्य या तकनीकी रूप से अधिक उन्नत हैं, लेकिन यह उन्हें इस बात का अधिकार नहीं देता कि वे मदद चाहने वाले राष्ट्रों पर अपने समाधान थोपें।”उनकी टिप्पणी हिंद-प्रशांत, अफ्रीका और भारत के पड़ोस में सैन्य प्रभाव बढ़ाने के चीन के बढ़ते प्रयासों की पृष्ठभूमि में आई है।

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