रक्षा मंत्रालय ने हवा से हवा में मार करने वाली अस्त्र एम के -ढ्ढ मिसाइल की खरीद के लिए बीडीएल (भारत डायनामिक्स लिमिटेड) के साथ 2971 करोड़ रूपये का करार किया है। वायु सेना और नौसेना के लिए खरीदी जाने वाली यह मिसाइल ‘बियोंड विजुअल रेंज’ यानी जहां तक नजर जाती है उससे भी आगे तक लक्ष्य को मारने में सक्षम होती है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मंगलवार को ट्वीट कर यह जानकारी दी।
रक्षा मंत्री ने किया ट्वीट
रक्षा मंत्री ने ट्वीट कर कहा, यह करार देश में ही विकसित और डिजायन श्रेणी के तहत किया गया है। उन्होंने कहा कि अब तक इस श्रेणी की मिसाइल देश में ही बनाने की प्रौद्योगिकी उपलब्ध नहीं थी। उन्होंने कहा कि, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने यह प्रौद्योगिकी बीडीएल को मिसाइल बनाने तथा उससे जुड़ प्रणालियों के लिए हस्तांतरित कर दी है। इन मिसाइलों को बनाने का काम भी शुरू हो गया है।
राजनाथ सिंह ने कहा कि यह परियोजना आत्मनिर्भर भारत की भावना को समाहित किए हुए हैं और इससे हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल बनाने की देश की यात्रा की दिशा में बड़ कदम है। इससे बीडीएल में ढांचागत सुविधाओं का विकास होगा तथा एयरास्पेस प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सूक्ष्म तथा लघु इकाईयों के लिए अवसर भी बढेंगे।
रक्षा मंत्री ने किया ट्वीट
रक्षा मंत्री ने ट्वीट कर कहा, यह करार देश में ही विकसित और डिजायन श्रेणी के तहत किया गया है। उन्होंने कहा कि अब तक इस श्रेणी की मिसाइल देश में ही बनाने की प्रौद्योगिकी उपलब्ध नहीं थी। उन्होंने कहा कि, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने यह प्रौद्योगिकी बीडीएल को मिसाइल बनाने तथा उससे जुड़ प्रणालियों के लिए हस्तांतरित कर दी है। इन मिसाइलों को बनाने का काम भी शुरू हो गया है।
यह परियोजना आत्मनिर्भर भारत की भावना को समाहित किए हुए हैंTill now, the technology to manufacture missile of this class indigenously was not available.
— रक्षा मंत्री कार्यालय/ RMO India (@DefenceMinIndia) May 31, 2022
The Transfer of Technology from DRDO to BDL for production of ASTRA MK-I missile and all associated systems has been completed and production at BDL is in progress.
राजनाथ सिंह ने कहा कि यह परियोजना आत्मनिर्भर भारत की भावना को समाहित किए हुए हैं और इससे हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल बनाने की देश की यात्रा की दिशा में बड़ कदम है। इससे बीडीएल में ढांचागत सुविधाओं का विकास होगा तथा एयरास्पेस प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सूक्ष्म तथा लघु इकाईयों के लिए अवसर भी बढेंगे।
