पटना : बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को खुला पत्र भेजा। उसके बाद सभी दलों और देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी पत्र भेंजेंगे। क्योंकि झारखंड अलग होने के बाद बिहार की स्थिति सबसे पिछड़ गया है। यह हम नहीं नीति आयोग भी बता रही है। मुख्यमंत्री अपने कार्यकाल में करोड़ों लोगों का हस्ताक्षर करके राष्ट्रपति भवन भेजा था। 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि हमारी सरकार केन्द्र में बनेगी तो बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देंगे।
मगर वे भी अपनी भाषण से मुकर गये। ये बातें आज कटिहार सांसद सह राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव तारिक अवनर अपने कार्यालय में पत्रकारों से बातचीत करते हुए कही। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री जी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा के प्रति आपकी प्रतिबद्धता की ओर आकृष्ट कराना है। जैसा कि ज्ञात है कि देश की आजादी के बाद विकास के दृष्टिकोण से राज्यों के अनुभव में काफी विभिन्नता देखी गयी।
जहॉ एक ओर कई राज्यों का तेजी से विकास हुआ, वहीं दूसरी ओर कई अन्य राज्य विकास की दौर में पीछे रह गये। स्पष्ट है कि बिहार को भी इस प्रतिकूलता का खामियाजा भुगतना पड़ा, कारण केन्द्र सरकार के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष अनुदानों का सर्वाधिक लाभ विकसित राज्यों को ही प्राप्त होता रहा, जिस वजह से क्षेत्रीय असंतुलन को भी बढ़ावा मिला।
उन्होंने कहा कि राज्यों के बीच निधि बॅटवारे के लिए 14वें वित्त आयोग ने जो फार्मूला दिया, उसके आधार पर कुल राशि में बिहार का हिस्सा 10.9 से घटकर 9.7 प्रतिशत रह गया, कारण वित्त आयोग ने क्षेत्रफल तथा प्राकृतिक वनों को अधिमानता दी जबकि बिहार जैसे अधिक जनसंख्या घनत्व एवं थलरूद्ध राज्यों की उपेक्षा हुई। इतना ही नहीं बिहार विकास के प्रमुख मापदंडों यथा गरीबी रेखा, प्रतिव्यक्ति आय, औधोगीकरण एवं सामाजिक तथा भौतिक आधारभूत संरचना में राष्ट्रीय औसत से काफी पीछे है।
उन्होंने कहा कि यूपीए सरकार के द्वारा गठित रघुराम राजन समिति की अनुशंसाओं की ओर भी आपका ध्यान आकृष्ट कराना अपेक्षित होगा, जिसमें उन्होंने राज्यों के समग्र विकास के लिए एक सूचकांक प्रस्तुत किया था इसके अनुसार देश के सर्वाधिक 10 पिछड़े राज्यों को चिन्हित किया गया था जिसमें बिहार भी शामिल है। बिहार सबसे अधिक आबादी के घनत्व वाला राज्य है जिसकी प्रति व्यक्ति आय निम्न स्तर पर है।
वर्ष 2015-16 के ऑकड़े के अनुसार बिहार की प्रतिव्यक्ति आय 26,801 रूपये है जबकि राष्ट्रीय औसत 77,435 रूपया। इस तरह राज्य की प्रतिव्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत का 34.6 फीसद है। करीब 96 फीसद जोत सीमांत और छोटे किसानों की है, वही लगभग 32 फीसद परिवारों के पास अपनी जमीन नहीं है।
बिहार के 38 में से 15 जिले बाढ़ क्षेत्र में आते हैं जहॉ हर साल कोसी, कमला, गंडक, महानंदा, पुनपुन, सोन, गंगा आदि नदियों की बाढ़ से करोड़ों की संपत्ति, जानमाल, आधारभूत संरचना और फसलों का नुकसान होता है। उन्होंने बताया कि बिहार से झारखण्ड के अलग होने के बाद खनिज सम्पदा से मिलने वाली रॉयल्टी के नुकसान के साथ जरूरी वित्तीय क्षतिपूर्ति नहीं होने के कारण विकास कार्यो में बाधायें बढ़ी है।
बिहार जैसे गरीब राज्यों के वित्तीय प्रावधानों को बदलने के लिए विशेष राज्य का दर्जा समावेशी विकास के लिए आवश्यक है। 2015 में बिहार विधान सभा चुनाव के समय प्रधानमंत्री के द्वारा बिहार को विशेष पैकेज के रूप में 1 लाख 65 हजार करोड़ रूपये देने के आस्वाशन की याद दिलाना भी युक्तिसंगत होगा। उन्होंने कहा कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलना आवश्यक है।
विशेष राज्य का दर्जा मिलने से केन्द्र प्रायोजित योजनाओं में केन्द्रांश के प्रतिशत में वृद्धि होगी, जिससे राज्य को अपने संसाधनों का उपयोग अन्य विकास एवं कल्याणकारी योजनाओं में करने का अवसर मिलेगा। वहीं दूसरी ओर प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों में छूट से निजी निवेश के प्रवाह को गति मिलेगी जिससे युवाओं के लिए रोजगार के नये अवसर भी सृजित हो सकेंगे।
इस प्रकार बिहार अपना पिछड़ापन दूर कर देश के सर्वांगीन, समावेशी, एवं सतत् विकास में योग कारक सिद्ध हो सकेगा। जब बिहार वर्ष 2000 में दो भागों, बिहार और झारखण्ड में विभाजित हुआ उस समय भी केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी जी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार थी और जेडीयू भी उस सरकार में शामिल था। आप उस सरकार में एक वरिष्ठ एवं शक्तिशाली मंत्री थे। तत्कालीन सरकार ने विभाजन के समय बिहार को हुई हानि के एवज में एक विशेष पैकेज देने की कमिटमेंट की थी, जो बिहार को आज तक प्राप्त नहीं हुआ।
2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही आपने विशेष राज्य के दर्जे को लेकर अनवरत रूप से तत्कालीन केन्द्रीय सरकार पर दवाब बनाने का काम किया। बिहार में भी आपके नेतृत्व में वीजेपी के साथ गठबंधन की सरकार चल रही है। आपके सामने अवसर है कि आप केन्द्र की सरकार पर दवाब बनाये एवं बिहार के प्रति अपनी प्रतिवद्धता एव के अनुरूप विशेष राज्य का दर्जा दिलवायें या आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की तरह नैतिक बल का परिचय देते हुए बिहार के हक में एनडीए से अपना संबंध विच्छेद कर विशेष राज्य के दर्जे को लेकर अपनी नीतियों एवं प्रतिवद्धताओं के अनुरूप संघर्ष को आगे बढ़ायें।
श्री अनवर ने बताया कि नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के बयान की ओर भी दृष्टिपात करना युक्तिसंगत होगा, जिसमें उन्होंने देश के पिछड़ेपन के लिए बिहार के पिछड़ेपन को कारण बताते हुए इसे मानव विकास सूचकांक पर काफी नीचे बताया था। इसके मद्वेनजर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिले यह और भी आव,यक प्रतित होता है। केन्द्र सरकार के द्वारा यह कहना कि 14वें वित्त आयोग की अनुशंसाओं के बाद विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता, तथ्यों से परे है।
कारण न तो संविधान और ना ही वित्त आयोग के इस बात की संपुष्टि नहीं करते प्रतीत होते है। वित्त आयोग का काम राज्यों की वित्तीय एवं खर्च के बीच असंतुलन से उत्पन्न असुविधाओं का आकलन करने के पश्चात केन्द्र के द्वारा प्रदत राज्यों के कर हस्तांतरण एवं अन्य वित्तीये सहायता उपलब्ध कराकर उन असुविधाओं को दूर करने के प्रति अपना सुझाव एवं मन्तव्य सस्तुत करना है। राज्यों के विशेष दर्जा के संबंध में आयोग का कुछ लेना देना नहीं, यह एक कार्यकारी निर्णय है जिसके तहत विशेष राज्य का दर्जा देना या ना देना केन्द्र सरकार का निर्णय है।
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