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एनआरसी के मसौदे को मजहब और भाषा के चश्मे से ना देखें – भाजपा

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नयी दिल्ली : असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) में करीब 40 लाख लोगों के शामिल नहीं होने के मुद्दे पर विपक्ष की आलोचनाओं के बीच भाजपा ने आज कहा कि यह पहल उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर हो रही है और इस विषय को मजहब और पार्टी से जोड़ना ठीक नहीं है। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सैयद शाहनवाज हुसैन ने कहा, ‘‘ इसे मजहब से जोड़ना ठीक नहीं है, यह देश का विषय है। ’’  उन्होंने जोर दिया कि हमारी सरकार किसी के साथ अन्याय नहीं करेगी और इस मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्देश का पालन हो रहा है।
हुसैन ने कहा कि गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने स्थिति स्पष्ट कर दी है। 23 अगस्त के बाद सभी को अपनी बात रखने का मौका मिलेगा। इसके बाद भी लोग विदेशी न्यायाधिकरण में जा सकते हैं । भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि 1955 के नागरिकता अधिनियम में इस बात का प्रावधान है कि केंद्र सरकार भारतीय नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर बनायेगी । इसके लिये केंद्र सरकार पर देश में हर परिवार और व्यक्ति की जानकारी जुटाने की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 14ए में साल 2004 में संशोधन किया गया था जिसमें हर नागरिक के लिये अपने आप को नेशनल रजिस्टर आफ सिटिजन यानी एनआरसी में पंजीकृत कराना अनिवार्य बनाया गया है।

हुसैन ने कहा कि असम और मेघालय को छोड़कर पूरे देश के लिये जनसंख्या रजिस्टर को 2015..16 में अपडेट किया गया था । इसके लिये आंकड़े 2011 की जनगणना के साथ ही जुटाये गए थे । भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि असम में नागरिकता और बांग्लादेशी मुस्लिमों का मुद्दा 1979 से ही राजनीतिक तौर पर उठने लगा था । 2005 में 1951 के नेशनल रजिस्टर आफ सिटिजनशिप को अपडेट करने का फैसला किया गया और 2015 में असम में कांग्रेस की तब की सरकार ने इस कार्य को आगे बढ़ाया । उन्होंने कहा कि यह मामला उच्चतम न्यायालय में गया । 20 फरवरी 2018 को उच्चतम न्यायालय ने कहा कि एनसीआर का काम नहीं रूकेगा । उन्होंने कहा कि यह कार्य उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर हो रहा है और हमारी सरकार किसी के साथ अन्याय नहीं करेगी ।

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