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PM मोदी के ‘‘परजीवी’’ कहने से किसान समुदाय को गहरा दुख पहुंचा : किसान नेता

केंद्र के नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसान संगठनों के नेताओं ने शनिवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किसानों को ‘‘परजीवी’’ कहे जाने से किसान समुदाय को बहुत गहरा दुख पहुंचा है।

केंद्र के नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसान संगठनों के नेताओं ने शनिवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किसानों को ‘‘परजीवी’’ कहे जाने से किसान समुदाय को बहुत गहरा दुख पहुंचा है। 
किसान नेताओं ने समुदाय का आह्वान किया और कहा कि वह ‘‘कूटनीतिक गाली गलौज’’ का जवाब ‘‘कूटनीतिक दंड’’ के जरिए सरकार को खारिज करके दे। 
दिल्ली-उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित गाजीपुर में संवाददाताओं से बातचीत में किसान नेताओं दर्शन पाल, बलबीर सिंह राजेवाल, गुरनाम सिंह चढूनी और राकेश टिकैत ने यह बात कही। 
किसान नेताओं ने रविवार को देशभर में कैंडल मार्च और टॉर्च जुलूस निकालने की भी घोषणा की। 
उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम ड्यूटी के दौरान शहीद होने वाले जवानों और दिल्ली की सीमाओं पर नवंबर से चल रहे आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों को श्रद्धांजलि देने के लिए किया जाएगा। 
भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) ने एक वक्तव्य में कहा, ‘‘यह आयोजन रात सात से आठ बजे तक किया जाएगा।’’ 
पाल ने कहा कि किसान पंचायतों के जरिए वे सरकार पर अपनी मांग मानने के लिए दबाव बनाने का प्रयास कर रहे हैं ताकि प्रदर्शन खत्म हो सकें। 
उन्होंने कहा, ‘‘इस अभियान में पूरे देश के किसान शामिल हैं।’’ 
ब्रिटेन की संसद में किसान आंदोलन पर चर्चा का जिक्र करते हुए पाल ने कहा, ‘‘सरकार को हमारी समस्या को समझना चाहिए।’’ 
राजेवाल ने कहा कि प्रधानमंत्री ने संसद में किसानों को ‘‘कूटनीतिक गालियां’’ दीं। 
उन्होंने कहा, ‘‘किसानों को परजीवी बताकर उन्होंने पूरे किसान समुदाय को बहुत गहरी चोट पहुंचाई है। प्रधानमंत्री ने अपने वक्तव्य के जरिए देश के किसानों को जो जख्म दिए हैं उन्हें पीढ़ियों तक याद रखा जाएगा।’’ 
राजेवाल ने कहा कि सरकार ने किसानों के साथ ‘‘कूटनीतिक गाली गलौज’’ की है और किसानों को इसे खारिज कर ‘‘कूटनीतिक दंड’’ देना चाहिए। 
चढूनी ने कहा कि जब तक मांगें पूरी नहीं होतीं तब तक किसान दिल्ली की सीमाओं से हटने वाले नहीं हैं। 
टिकैत ने कहा कि किसान ‘‘दिल्ली के अतिथि’’ हैं जो राष्ट्रीय राजधानी में आते रहेंगे और अपने खेतों की देखभाल के लिए घर भी जाते रहेंगे। 
उन्होंने कहा, ‘‘हम सरकार से बातचीत के लिए तैयार हैं लेकिन वार्ता का माध्यम सिंघू बॉर्डर ही होना चाहिए।’’ 

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